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did the people who ate that mastodon meat owe something
क्या ऐसा हुआ कि जो लोग उस शिकार को खाते थे ,
Última actualización: 2020-05-24
Frecuencia de uso: 1
Calidad:
so you don ' t want to have the mastodon charging at you
तो आप नहीं चाहेंगे कि जब कोई हाथी आपको दौडा रहा हो ,
Última actualización: 2020-05-24
Frecuencia de uso: 1
Calidad:
he's out while she's home getting the mastodon smell out of the carpet.
does she?
Última actualización: 2019-07-06
Frecuencia de uso: 4
Calidad:
"a slingshot or maybe a spear might work. which would actually be better?" you want to know all that before the mastodons actually show up.
"शायद गुलेल काम करेगी, नहीं नहीं, भाला काम करेगा। क्या इस्तेमाल करूँ?" आप को वो सब सीखना जानना होगा इस से पहले कि हाथी आप को दिखे। और जिस तरह से विकास-क्र्म ने इस समस्या को सुलझाया है वो है काम बाँट कर। तो सुझाव ये है कि हमें शुरुवात में कुछ समय मिलता है जब हमें पूरी सुरक्षा मिलती है। हमें खुद कुछ नहीं करना होता। हमें बस सीखना होता है। और फिर व्य्स्कों के रूप में, हम वो सारी विद्या काम में ला सकते हैं जो हमने बचपन में पाई होती है और उस का इस्तेमाल कर के इस दुनिया में अपना काम चला सकते हैं। तो ये कहा जा सकता है कि शिशु और छोटे बच्चे मानवों का रिसर्च एंड डेवेलेप्मेंट विभाग हैं (शोध एवं विकास) तो वो ऐसे साइंसटिस्ट हैं जिनका काम है बस नया कुछ सीखते रहना, और नये आयडिया निकालना, और हम और आप हैं उत्पादन और विपणन (मार्केटिंग) और हमें उन सारे आयडिया को जो हमने बचपन में सीखे थे, इस्तेमाल में लाना होता है। दूसरी बात जो हो सकती है ये है कि बजाय इसके कि बच्चों को व्यस्कों के बेकार रूप माना जाये, हमें ये सोचना चाहिये कि वो हमारी प्रजाति के विकास के अगले स्तर पर हैं -- जैसे कि कैटरपिलर और तितलियाँ -- बस ये अत्यधिक बुद्धिमाल तितलियों जैसे हैं जो कि बगीचे में घूम रही हैं और खोज कर रही हैं, और हम कैटरपिलर जैसे हैं जो धीरे धीरे अपने सधे हुए व्यस्क रास्ते पर चलते जा रहे हैं। अगर ये सत्य है, अगर बच्चों को सीखने के लिये ही निर्मित किया गया है -- और विकास-क्रम की कहानी कह रही है कि बच्चे सीखने के लिये पैदा होते हैं, वो इसी लिये बने हैं -- तो हम ये उम्मीद रख सकते हैं कि वो सीखने के बहुत शक्तिशाली तरीको से लैस होंगे। और असल में, एक बच्चे का दिमाग उस सीखने वाले कंप्यूटर के समान है जो सबसे ताकतवर है इस धरती पर। मगर असली कंप्यूटर भी बहुत बेहतर होते जा रहे हैं। और एक क्रांति हो चुकी है मशीन लर्निंग को ले कर मानव की समझ में। और वो सब इस व्यक्ति के काम से आता है, रेवेरेंड थोमस बेयस, जो कि १८वीं सदी के एक सांख्यितज्ञ और गणितज्ञ थे । और कुल मिला कर उन्होंने क्या किया कि एक गणितीय तरीका निकाला प्रोबेबिलिटी थ्योरी के ज़रिये ये समझने और बताने का कैसे सांसटिस्ट दुनिया को बेहतर समझते जाती हैं। तो साइंस्टिस्ट क्या करते हैं कि एक अनुमानिति हाइपोथेसेस से शुरुवात करते हैं और तथ्यों को उस अनुमान से मिला कर चेक करते हैं। तथ्यों के हिसाब से वो अपने अनुमान में बदलाव लाते हैं। और फिर उस नये अनुमान को चेक करते है और ऐसे ही चलता रहता है। बेयस ने ये दिखाया कि इसे करने का एक गणितीय तरीका है और गणित पर ही आज के मशीन लर्निंग के सबसे अच्छे तरीके निर्भर करते हैं। और कुछ दस साल पहले, मैने सुझाया था कि बच्चे भी यही करते होंगे। तो अगर आप जानना चाहते है कि क्या चल रहा है इन प्यारी सी भूरी आँखों के भीतर, तो वो कुछ ऐसा दिखता है। ये रेवेरेंड बेयस की नोटबुक है। तो मुझे लगता है कि बच्चे असल में बहुत गूढ गणित में जुटे होते हैं कंडिशनल प्रोबेबिलिटी के गणित में , जिसे वो बार बार करते हैं ये समझने के लिये कि दुनिया कैसे काम करती है। ये सत्य है कि इस बात को असल में दिखा पाना बहुत कठिन काम होगा। क्योंकि, अगर आप व्यस्कों से भी सांख्यिकी पर बात करेंगे, तो वो भी बेवकूफ़ाना बातें करते हैं। तो ऐसा कैसे हो सकता है कि बच्चे साँख्यिकी करते हैं? तो इस का पता लगाने के लिये हमने एक मशीन बनाई जिसे हम ब्लिकेट डिटेक्टर कहते हैं। ये एक डब्बा है जिसमें लाइटें हैं और संगीत बजता है जब आप कुछ खास चीजें इस पर रखते हैं। और इस साधारण सी मशीन का इस्तेमाल करके, मेरी प्रयोगशाला में और बाके दर्ज़नों जगहों पर ये दिखाया जा चुका है कि बच्चे कितने कुशल होते हैं इस दुनिया के बारे में सीखने में। मैं एक ऐसे प्रयोग के बारे मे बताता हूँ जो मैने तुमार कुशनेर, मेरे विद्यार्थी, के साथ किया। यदि मैं आपको ये डिटेक्टर दिखाऊँ, तो शायद आप सोचें कि इस डिटेक्टर को चालू करने के लिये इस के ऊपर एक ब्लाक रखना होगा। मगर असल मे, ये डिटेक्टर थोडा अलग तरह से काम करता है। क्यों कि यदि आप आप ब्लाक को इस के ऊपर हिलायेंगे, जो बहुत मुश्किल है कि आप सोचें शुरुवात में, ये सिर्फ़ तीन में से दो बार चालू होगा। जबकि यदि आप ब्लाक को सीधे इसके ऊपर ही रख देंगे, तो वो सिर्फ़ छः में से दो बार ही चालू होगा। अक्सर नहीं होने वाली बात का प्रमाण ज्यादा भरोसेमंद है। ऐसा कहा जा सकता है कि ब्लाक हिलाना बेह्तर तरीका है ब्लाक रखने के मुकाबले। तो हमने बस यही किया: हमने चार साल के बच्चों को ये दिया और उनसे इसे चलाने को कहा। और चार साल के बच्चों ने इसे इस्तेमाल कर के ब्लाक को डिटेक्टर के ऊपर सिर्फ़ हिलाया। अब इस में दो बहुत रोचक बातें सामने आयीं। पहली तो ये, और ये बच्चे बस चार साल के ही हैं, अभी महज गिनती गिनना ही सीख रहे हैं। लेकिन अचेतन रूप से, ये अंदर अंदर इतनी जटिल गणनायें कर रहे हैं जो उन्हें कंडिशनल प्रोबेबिलिटी का अनुमान दे रही हैं। और दूसरी रोचक बात ये है कि वो प्रमाण का इस्तेमाल कर के इस दुनिया के बारे में एक ऐसा अनुमान लगा रहे हैं जो इतना आसान नहीं है। और ऐसे ही कई और प्रयोगों मे, हमने दिखाया है कि चार साल के बच्चे बहुत बेहतर हैं सीधे न दिखने वाले तरीकों तक पहुँचने में बजाय व्यस्कों के, जब दोनों को हूबहू वही काम दिया जाता है। तो इन स्थितियों में, बच्चे सांख्यिकी का इस्तेमाल कर के दुनिया को जान समझ रहे हैं, मगर क्योंकि साइंसटिस्ट प्रयोग करते हैं, तो हम ये जानना चाहते थे कि क्या बच्चे भी प्रयोग करते हैं। जब बच्चे प्रयोग करते हैं, हम उसे "गडबड करना" कहते हैं या फ़िर "खेलना" और कई प्रयोग हुये हैं जिन्होनें दिखाया है कि ये "खेलना" एक तरीके का असलनी का प्रयोगात्मक शोध कार्यक्रम है। ये वाल क्रिस्टीन लेगारे की प्रयोगशाला से है। क्रिस्टीन ने हमारे ब्लिकट डिटेक्टर का इस्तेमाल किया। और बच्चो को दिखाया कि पीले वाले से चलता है, और लाल वाले से नहीं, फ़िर उन्हें कुछ अलग दिखाया। और आप देखेंगे कि ये बच्च पाँच हाइपोथेसिस से गुज़रता है सिर्फ़ दो मिनट के समय में। बच्चा: ऐसे करूँ? जैसे दूसरी तरफ़ किया। ऐलिसन गोपनिक: तो ये हाइपोथेसिस गलत साबित हुई।
Última actualización: 2019-07-06
Frecuencia de uso: 4
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