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"per un uomo affamato, un pezzo di pane è il volto di dio." altri si preoccupano della pace e della sicurezza, della stabilità nel mondo. abbiamo assistito a rivolte per la fame nel 2008, dopo che quello che chiamo lo tsunami silenzioso della fame si è abbattuto sul mondo quando il prezzo degli alimenti è raddoppiato da un giorno all'altro.
"भूखे इंसान की नज़र में रोटी का टुकड़ा ईश्वर का चेहरा है." अन्य लोग चिंतित हैं विश्व की शान्ति, सुरक्षा और स्थिरता के विषय में. हमने देखा है 2008 के दंगों को जो खाने के अभाव से हुए, जब मेरे शब्दों में, भूख के एक खामोश बाढ़ ने दुनिया को लपेट लिया था, जब रातों रात खाद्य-पदार्थों के दाम दुगुने हो गए थे. भूख का अस्थिरताजनक प्रभाव मानवी इतिहास के दौरान भली-भाँति जाना गया है. सभ्यता के मूलभूत कर्तव्यों में से एक है यह सुनिश्चित करना, कि लोगों को पर्याप्त भोजन प्राप्त हो. अन्य लोग माल्थस द्वारा बताई गयी भयानक संभावनाओं को लेकर चिंतित हैं. क्या हम खिला पाएंगे ऐसी आबादी को जो मात्र कुछ ही दशकों में नौ अरब तक जा पहुंचेगी ? भूख नाम की चीज़ के साथ समझौता मुमकिन नहीं है. लोगों को भोजन तो चाहिए ही. और लोगों की संख्या कुछ ज़्यादा ही होनेवाली है. इसका एक मतलब यह है कि इससे ऊंचे और निचले स्तर दोनों में काफी नौकरियां और मौके पैदा होते हैं. मगर वास्तव में मैं इस समस्या की ओर एक अलग रस्ते से पहुँची. यह मेरी और मेरे तीन बच्चों की तस्वीर है. सन 1987 में मैं पहली बार मां बनी. मेरा पहला बच्चा हुआ, और मैं उस को दूध पिला रही थी, जब इससे बहुत मिलता-झुलता एक चित्र दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ. इथिओपिया फिर एक बार सूखे से ग्रस्त था. इससे दो साल पहलेवाले सूखे से दस लाख से अधिक लोग मरे थे. मगर मैं इस चीज़ से कभी इस तरह प्रभावित नहीं हुई जैसे मैं उस पल में हुई क्योंकि उस चित्र में एक महिला थी जो अपने बच्चे को दूध पिलाने की कोशिश में थी, और उसके पास पिलाने के लिए दूध नहीं था. एक माँ के तौर पर , उस बच्चे के रोने की आवाज़ ने मुझे भीतर तक आहत कर दिया. और मैंने सोचा, कि मन पर टिकनेवाली और गहरी वेदना नहीं हो सकती, जैसे एक बच्चे के रोने की है, जिसका जवाब खाने से नहीं दिया जा सकता