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4 मिनट के वीडियो में 12 वर्ष की दीप्ति अपनी पसंदीदा गीत गुनगुनाती हुई आश्रम के अपने जीवन के बारे में बताती हैं.
dans cette courte vidéo de 4 minutes, deepti, âgée de 12 ans, chante sa chanson préférée et raconte sa vie dans le centre où elle est hébergée.
"मैं अपनी चार बेटियों को दुनियों के चार कोनों में देखना चाहता हूँ" मुझे नहीं पता की वे यही चाहते थे या नहीं परन्तु येही हुआ मैं अकेली हूँ जो भारत में बची हूँ! एक ब्रिटेन में है, दूसरी अमेरिका में और तीसरी कनाडा में तो हम चारों दुनिया के चार कोनों में है और क्योंकि मैंने कहा वे मेरे आदर्श हैं मैंने उनकी दो बातें हमेशा याद रखी एक , उन्होंने कहा , "जीवन हमेशा झुका रहता है " या तो आप ऊपर जाओगे , और या नीचे की ओर और दूसरी बात, जो मेरे साथ आज भी है , जो मेरे जीवन का मूल बनी जिसने मुझे यहाँ तक पहुँचाया वह थी अगर आपके जीवन में सौ चीज़े होती हैं अच्छी या बुरी उनमे से नब्बे आप खुद बनाते हैं अगर वे अच्छी है, आपने बनाई हैं उनका आनंद लें! और बुरी हैं तब भी आपने बनायीं हैं उनसे सीखें दस ऐसी होती हैं, जो प्रकृति बनती है , जो आपके नियंत्रण से बाहर हैं जैसे किसी रिश्तेदार की मृत्यु या कोई तूफ़ान , या कोई बवंडर या भूकंप आप इनका कुछ नहीं कर सकते आप केवल परिस्थितियों के अनुसार कार्य कर सकते हैं लेकिन वो प्रतिक्रिया उन्ही ९० प्रतिशत चीज़ों से आती है ! क्योंकि मैं इस सिद्धांत का नतीजा हूँ ९०/१० और दूसरी बात की जीवन हमेशा झुकाव रहता है मै ऐसे ही बड़ी हुई हूँ ! उन चीजों का आदर करना जो मुझे मिली है ! मैं नतीजा हूँ उन अवसरों का उन बिरले अवसरों का जो पचास और साठ के दशक में जो दूसरी लड़कियों को नहीं मिलते थे ! और मुझे इस बात का अहसास था की मुझे मेरे परेंट्स जो दे रहे हैं , वो अनोखा था! क्यूंकि मेरे सारे पक्के दोस्तों को सजाया जा रहा था , ताकि उनकी शादी हो सके बहुत सारे दहेज़ के साथ , और मैं यहाँ थी , एक टेनिस के राच्केट के साथ और स्कूल जाती हुई , और सारे तरह के खेल कूद करती हुई ! मुझे लगा मुझे ये जरूर बताना चाहिए आप लोगों को , मैंने क्यूँ कहा की ऐसा मेरा अतीत है तो ये है जो अब अगला भाग आता है मैंने भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुई एक सख्त महिला की तरह एक अजेय बलवाली महिला क्यूंकि मुझे आदत थी अपने टेनिस शीर्षक के लिए दौड़ने की .. लेकिन मैं भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुई और उसके बाद निगरानी करने में एक नए तरह का नमूना आ गया मेरे लिए निगरानी करना का मतलब था सही करने की शक्ति रोकने की शक्ति और पहचानने की शक्ति ये कुछ ऐसा था की भारत में पोलिसिंग को नयी परिभाषा दे दी गयी हो.. रोकने की शक्ति क्यूंकि जादातर के यही कहा जाता था , की पहचानने की शक्ति , और बस या दण्डित करने की शक्ति लेकिन मैंने निश्चय किया , नहीं , ये रोकने की शक्ति है , क्यूंकि यही मैंने सीखा जब मैं बड़ी हो रही थी तो मैं कैसे रोकूँ चीजों को १० (जिनपे मेरा नियंत्रण नहीं है ) पे और इससे कभी भी १० से बढ़ने ना दूं ? तो ये ऐसे मेरे सेवा में आ गया! और ये बिलकुल अलग था पुरुषो से मैं नहीं चाहती थी की यह पुरुषो से अलग हो लेकिन ये अलग था ! क्यूंकि ये वोही तरीका था जिससे मैं अलग थी और मैंने भारत में पोलिसिंग के कांसेप्ट को नयी परिभाषा दी ! मैं आप लोगों को दो यात्रयों पे ले जाउंगी , मेरी पोलिसिंग की यात्रा और मेरी जेल के समय की यात्रा . जब आप देखते हैं , अगर आप शीर्षक पढेंगे , जो कहता है , "प्रधान मंत्री की कार रोक ली गयी " ये पहली बार था की भारत के प्रधान मंत्री को एक पार्किंग टिकेट दिया गया ! हंसी भारत में ये पहली बार हुआ, और मैं बता सकती हूँ , ये आखिरी बार है आप ऐसी घटना के बारे में सुन रहे हैं ! ये भारत में दुबारा कभी नहीं होगा , क्यूंकि अब ये एक बार हमेशा के लिए हो गया है और नियम था , क्यूंकि मैं संवेदनशील थी मुझमे करुना थी , मैं संवेदनशील थी अन्याय के लिए और मैं बहुत बड़ी समर्थक थी न्याय की यही कारण था की , महिला होने पर भी , मैं भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुई ! मेरे पास दुसरे विकल्प भी थे लेकिन मैंने उन्हें नहीं चुना . तो अब आगे बढ़ते हैं ! ये पूरी बात है कठोर पोलिसिंग और समान पोलिसिंग की अब मैं जानी जाती थी एक महिला है जो किसी की नहीं सुनेगी तो (परिणाम स्वरुप ) मुझे सारे अविवेकपूर्ण स्थानों पर पद मिले ऐसे स्थान जहाँ जाने से दुसरे तुरंत "नहीं " कह दे मैं गयी थी एक पुलिस अधिकारी के तौर पे एक जेल के कार्य पे सामान्यतः पुलिस ऑफिसर जेल में काम नहीं करते हैं! उन्होंने मुझे जेल (के एक पद ) में भेज दिया (ताकि मैंने वहीँ रह जाऊं) ये सोचते हुए की अब कोई कारें नहीं होंगी और कोई भी vip नहीं मिलेगा (पार्किंग ) टिकेट देने को उसे वही रहने दो . तो यहाँ मुझे जेल का कार्य मिला ! ये एक जेल का कार्य था जिसमे बहुत बड़ा समूह था मुजरिमों का बिलकुल , ये था लेकिन दस हज़ार आदमी , जिसमे केवल ४०० ही महिलाये थी -- सो दस हज़ार में ९००० और ६०० करीब आदमी थे आतंकवादी , बलात्कारी चोर , गुंडे , कुछ ऐसे थे की मैंने खुद उन्हें जेल भेजा था पुलिस ऑफिसर होने के नाते . और मैंने कैसे उनका सामना किया पहले दिन जब मैं अन्दर गयी (जेल के ) मुझे नहीं पता था उनको देखू कैसे और मैंने कहा , "क्या तुम प्रार्थना करते हो ? " जब मैंने समूह की तरफ देख कर कहा , "क्या तुम प्रार्थना करते हो ? " उन्होंने देखा की एक नयी महिला , छोटी (ऊंचाई ) में भूरे कपडे पहने हुए और मैंने कहा , "क्या तुम प्रार्थना करते हो ?" और उन लोगों ने कुछ नहीं कहा ! मैंने कहा , "तुम तुम प्रार्थना करते हो ?" , "क्या तुम प्रार्थना करना चाहते हो ?" उन्होंने कहा "हाँ " , और मैंने कहा " बढ़िया , चलो प्रार्थना करते हैं " मैंने उनके लिए प्रार्थना की और चीज़ों में बदलाव की शुरुआत होने लगी . ये एक दृश्य था जेल के अन्दर शिक्षा का! दोस्तों , ये कभी नहीं हुआ , जहाँ हर एक आदमी जेल में पढता है मैं इसे समाज के सहारे से शुरू किया सरकार के पास कोई budget नहीं था ये अपने आप में एक बहुत ही उम्दा , और बड़ी स्वयं सेवा थी दुनिया के किसी भी दुसरे जेल की तुलना में इसकी शुरुआत हुई थी देल्ही जेल में तुम एक नमूना देख सकते हो की एक मुजरिम एक कक्षा को पढ़ा रहा है और वो सौ की संख्या में कक्षाए थी ९ से ११ , हर एक मुजरिम शिक्षा प्रोग्राम में आ गया उसी अद्ददे (जेल ) में जहाँ कभी वो लड़ते थे वो मुझे सलाखों के पीछे छोड़ देते और चीज़ें हमेशा के लिए भुला दी जाती (ऐसा भी हो सकता था) हमने इसे आश्रम में बदल दिया एक जेल से आशरम में शिक्षा के सहारे मैं सोचती हूँ ये एक बड़ा बदलाव है ! ये बदलाव की शुरुआत है! शिक्षक ही मुजरिम थे ! शिक्षक स्वयम सेवक थे ! किताबें दान में दी हुई स्कूल किताबों से आती थी stationary भी दान से आती थी ! हर चीज़ दान से आती थी ! यूँ की इस जेल के लिए कोई budget नहीं था (सरकार के पास ) अब अगर मैंने ये नहीं किया होता तो ये नरक का घर ही रहता . ये दूसरा चिह्न है! मैं आप लोगों को मेरी यात्रा के अतीत के कुछ पलो को दिखाना चाहूंगी जो शायद तुम्हे कहीं , कभी भी किसी दूसरी जगह इस दुनिया में देखने को ना मिले पहला तो जो आंकड़े हैं जो आपको कभी देखने को ना मिले दूसरा ये कांसेप्ट ये जेल के अन्दर एक ध्यान का कार्यक्रम था ! जिसमे हजारों मुजरिम थे !
"je vais éparpiller mes quatre filles aux quatre coins du monde." je ne sais pas s'il le voulait vraiment, mais c'est arrivé. je suis la dernière à être restée en inde.