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मेरा यह कुर्ता ले जाओ और इसे मेरे बाप के मुख पर डाल दो। उनकी नेत्र-ज्योति लौट आएगी, फिर अपने सब घरवालों को मेरे यहाँ ले आओ।"
emportez ma tunique que voici, et appliquez-la sur le visage de mon père: il recouvrera [aussitôt] la vue. et amenez-moi toute votre famille».
"मैं चाहता हूँ कि आप सबके विश्वास को एक धुरी पर लाएँ ।" कितना आसान सा लगता है ना । मगर विश्वास को मापा तो नहीं जा सकता । और ना ही उस पर प्रबंधन तकनीके लागू हो सकती हैं । तो आप कैसे विश्वास की आधार-शिला रखेंगे ? कैसे आप लोगों में भारतीयता के प्रति संवेदना बढाएँगे भारतीयों के लिये भी भारतीयता इतनी सहज या नहीं होती है । तो, मैनें संस्कृति का एक सर्वव्यापी ढाँचा तैयार करने का प्रयास किया, जो था - कहानियों का विकास करना, चिन्हों का विकास करना, और रीति-रिवाजों का विकास करना । और मैं ऐसे एक रिवाज के बारे में आपको बताता हूँ । देखिये ये हिन्दुओं की 'दर्शन' रीति पर आधारित है । हिन्दु धर्म में कोई धर्मादेश नहीं होते हैं । इसलिये जीवन में जो आप करते हैं, उसमें कुछ गलत या सही नहीं होता है । तो आप ईश्वर के सम्मुख पापी हैं या पुण्यात्मा, ये किसी को नहीं पता । तो आप जब मंदिर जाते है, आप सिर्फ़ ईश्वर से मिलना चाहते हैं । बस सिर्फ़ दो मिनट के लिय एक मुलाकात करना । आप सिर्फ़ उनके 'दर्शन' करना चाहती है, और इसलिये ईश्वर की बडी बडी आँखें होती हैं, विशाल अपलक टक टक ताकने वाले नेत्र, कभी कभी चाँदी के बने हुए, जिससे वो आप को देख सकें अब क्योंकि आपको भी ये नहीं पता कि आप सही थे या गलत, आप केवल देवता से समानुभूति की उम्मीद करते हैं ।
"je voudrai seulement que tu alignes les convictions ." facile à dire. mais la foi ne peut être mesurée.