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प्रजापति
prajapati
最終更新: 2021-07-09
使用頻度: 2
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यही दक्ष प्रजापति का स्थान था जिसका पुत्री यज्ञ विघ्वंस के समय अग़्नि कुड में सती नाम से अमर हो गई
this perhaps was also the domain of king daksha , whose daughter sati had burnt herself in the sacrificial fire , and was consequently immortalized as sati - lrb - the truthful one - rrb - .
उम्मीद के मुताबिक ही सागर में सुरखी से गोविंदसिंह राजपूत, खुरई से अरुणोदय चौबे, बंडा से नारायण प्रजापति को फिर प्रत्याशी बनाया गया है।
as predicted, govind singh from surkhiin sagar, arunoday chaubey from khurai and narayan prajapati from banda are candidates again.
भारत के समय की एक रिपोर्ट के अनुसार, पीड़ित ने ओधव में अपने घर पर सैनिटाइज़र का सेवन किया था। प्रजापति ने अपने अंगों को आंतरिक जला दिया था जिससे उनकी मृत्यु हो गई थी
as per a report in times of india the victim had consumed the sanitizer at his home in odhav . prajapati had suffered internal burn injuries to his organs leading to his death
最終更新: 2020-06-18
使用頻度: 3
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जो भी जीवन आदि कारण के एकांतिक प्रभाव में आकर महातत्व में विचरण करता है उसे ब्रह्मा , प्रजापति कहते हैं और उसके अन्य कई नाम और भी हैं जो हिन्दुओं के धर्म - सिद्धांत और स्मृति में दिए गए हैं .
any life which circulates in the hule under the exclusive influence of the lnst cause is called brahman , prajapati , and by many other names which occur in their religious law and tradition .
最終更新: 2020-05-24
使用頻度: 1
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लेकिन ? सांख़्य ? के उद्धरण के आधार पर हम यह जानते हैं कि यह मत सही नहीं है , क़्योंकि ब्रह्मा , इंद्र और प्रजापति किसी प्रजाति विशेष के नाम नहीं हैं बल्कि व्यक्तियों के हैं .
however , we can learn from the extract from samkhya that this view is not correct . for brahman , indra , and prajapati are not names of species , but of individuals .
最終更新: 2020-05-24
使用頻度: 1
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"ईश्वर, इन्हें अच्छा कर दो ।" और यदि ये अच्छे हो गये, तो मैं अपनी दीवार रँग दूँगा ।" और एसे उन्होंने अपनी दीवार पर रोगन किया । कल किसी व्यक्ति ने मास्लोवियन वर्गीकरण की बात की थी । उससे ज्यादा गलत कुछ हो ही नहीं सकता है । उससे ज्यादा गलत कुछ हो ही नहीं सकता है । क्योंकि इस देश में गरीब लोगों के लिये ज्ञान के द्वार खुले हैं । कालवी, रहीम, और सारे महान सूफ़ी संत, सब गरीब थे, मगर उनके पास सुलझी हुई सोच थी । कृपया ऐसा कभी मत सोचिये कि केवल जब आप अपनी शारीरिक और आर्थिक ज़रूरतें पूरे कर लेंगे, तब ही जा कर आप अपनी आध्यातमक ज़रूरतों के बारे में सोचेंगे । कोई भी व्यक्ति कहीं भी इस काबिल है कि वो अपनी उपलब्धियों के चरम पर पहुँचे, केवल यदि वो ठान ले कि उसे कुछ पाना है । इस पर ध्यान दीजिये । हमें शोध यात्रा में ये देख्ने को मिला। हर छठे महीने हम पदयात्रा करते हैं देश के विभिन्न भागों में। मैने पिछले १२ सालों में करीब ४४०० कि.मी. की यात्रा पद-यात्रा की है । और इस दौरान, हमने गोबर के उपले देखे, जो कि ईंधन की तरह इस्तेमाल होते है । इस स्त्री ने, उपलों के ढेर की दीवार पर चित्रकारी की है । इसके पास यही इकलौती जगह है जहाँ ये अपनी रचनात्मक्ता को अभिव्यक्त कर सके । और ये स्त्री बेहतरीन कलाकार है । एक और स्त्री, राम तिमारी देवी, अनाज़ के ढेर पर, चम्पारन में शोध-यात्रा के दौरान वहाँ चलते समय, उस भूमि पर जहाँ गाँधीजी गये थे दुख, दर्द सुनने नील की खेती करने वालों का भाभी महतो, पुरिलिया, बनकुरा से । देखिये इन्होंने क्या किया है । ये पूरी दीवार इनका चित्रपटल है । और ये वहाँ एक झाडू ले कर बैठी हैं । ये कारीगर हैं या कि एक कलाकार ? बिलकुल ये एक कारीगर हैं, एक रचनात्मक व्यक्ति । यदि हम इन कलाकारों के लिये बाज़ार बना सकें, तो हमें इनसे गड्ढे खुदवाने और पत्थर तोडने के काम नहीं करवाने होंगे । उन्हें उस चीज़ के लिये पैसे दिये जाएँगे जिसमें वो पारंगत है, उसके लिये नहीं जो उन्हें नहीं आता । अभिवादन देखिये, रोज़ादीन ने क्या किया है । मोतिहारी, चम्पारन में, कई लोग हैं जो छोटे-मोटे ढेलों पर चाय बेचते हैं और ज़ाहिर है, कि चाय की बाज़ार सीमित है, हर सुबह आप चाय पीते है, और कॉफ़ी भी । तो उसने सोचा, कि क्यों न मैं एक प्रेशर-कुकर को कॉफ़ी मशीन में बदल दूँ । तो ये रही आपकी कॉफ़ी मशीन, जो कि सिर्फ़ कुछ सौ रुपये में उलपब्ध है । लोग अपना कुकर ले कर आते हैं, रोज़ादीन उसमें एक वाल्व और भाप की एक नली जोड देता है, और अब वो आपको एस्प्रेसो कॉफ़ी मुहैया करवाता है । और देखिये, ये सब वास्तविक है, और जेब-खर्च के भीतर कॉफ़ी मशीन जो कि गैस पर काम करती है । अभिवादन देखिये शेख़ जहाँगीर का कमाल । कई गरीब लोगों के पास इतना अनाज़ नहीं होता है कि वो उसे पिसवाने जायें । तो जहाँगीर क्या करते हैं कि आटा पीसने की एक चक्की को एक दुपहिया वाहन पर ले कर आते हैं । अगर आपके पास ५०० ग्राम, या एक किलो अनाज़ है, तो वो आपके लिये उसे पीस देगा; चक्कीवाला इतने कम अनाज़ को नहीं पीसेगा। कृपया गरीब लोगों के समस्या को समझिये । उनकी आवश्यकताएँ हैं जिन्हें रूप से पूरा करना है बिजली, कीमत, गुणवत्ता आदि को ध्यान में रख कर । उन्हें खराब स्तर के उत्पाद नहीं चाहिये । लेकिन अच्छी क्वालिटी के उत्पाद बनाने के लिये आपको अपनी तकनीक को उनके अनुसार बदलना होगा । और यही शेख़ जहाँगीर ने किया । पर ये काफ़ी नहीं है । यहाँ देखिये क्या हुआ है । अगर आपके पास कपडे हैं, मगर उन्हें धोने का समय नहीं है, तो वो आपके लिये वाशिंग-मशीन लाये हैं ठीक आपके दरवाजे पर, दुपहिया वाहन पर लगी हुई । ये एक ढाँचा है जो कि दुपहिया वाहन पर... वो आपके दरवाजे पर आपके कपडे धो और सुखा रहा है । (अभिवादन) आप अपना पानी लाइये, साबुन दीजिये । मैं आपके कपडे धो देता हूँ, पचास पैसे या एक रुपये में एक गट्ठर । व्यवसाय का एक नया प्रारूप निकल सकता है । और ये ही हमें चाहिये । और इसके आगे, वो लोग जो कि इसे कई गुना बडे स्तर पर कर सकें । आगे देखिये । ये एक सुंदर तस्वीर है । पर ये क्या है ? कोई पहचान सकता है ? भारतीयों को तो पता ही होगा । ये एक तवा है । मिट्टी से बना हुआ तवा । देखिये, इसकी खासियत क्या है ? जब आप नॉन-स्टिक तवा लेते हैं, तो उसकी कीमत आती है, करीब २५० रुपये, पाँच, छः डॉलर । और ये एक डॉलर से कम का है । और ये भी 'नॉन-स्टिक' है । इस पर परत चढाई गयी है खाद्य-स्तर के पदार्थ की । और सबसे बढिया बात ये है कि, जब आप महँगा नॉन-स्टिक तवा इस्तेमाल करते हैं, तो आप टेफ़्लान या टेफ़्लान जैसे पदार्थ को खाते हैं । क्योंकि कुछ दिन बाद वो गायब हो जाता है. और वो कहाँ जाता है ? आपके पेट में । वो आपके पेट में जाने लायक नहीं है । और देखिये, इस मिट्टी के तवे में, वो कभी भी आपके पेट में नहीं जाएगा, तो बेहतर है, सुरक्षित है; जेब-खर्च के भीतर है; और सीमित ऊर्जा से बनता है । दूसरे शब्दों में, ज़रूरी नहीं कि गरीबों के लिये बनाये गये उत्पाद घटिया हों, या फ़िर सिर्फ़ जुगाड कर के किसी तरह बना दिये गये हों । उन्हें तो बेहतर होना होगा, और ज्यादा गुण्वत्ता परक होना होगा, उन्हें सस्ता होना होगा । और बिलकुल यही मनसुख प्रजापति ने कर दिखाया है । उन्होंने ये हत्था-लगी प्लेट बनाई है । और अब आप एक डॉलर में एक बेहतर चीज पा सकते हैं बाज़ार में उपलब्ध चीज़ों से बेहतर । इन महिला को देखिये, इन्होंने वनस्पति पर आधारित कीटनाशक बनाया है। हमने इस के लिये पेटेंट की अर्ज़ी दी है, नेशनल इन्नोवेशन फ़ाउन्डेशन में । और क्या पता एक दिन, कोई इस तकनीक का लाइसेंस ले कर बाजार के लायक उत्पाद बनाये, और इस महिला को पैसे मिलें। एक बात कहनी यहाँ बहुत ज़रूरी है । मेरे हिसाब से हमें विकास का बहु-केन्द्रीय ढाँचा बनाना होगा, जहाँ कई प्रयास देश के विभिन्न भागों में और विश्व के विभिन्न भागों में, स्थानीय समस्याओं का निदान कर रहे हों सुचारु और अनुकूलित तरीकों से। जितना ही स्थानीय जुडाव होगा, उतना ही ज्यादा संभव होगा इसे आगे बढाना । और आगे बढने में एक स्वाभाविक विशिष्टता है कि वो स्थानीय स्वाद से परे होती जाती है, धीरे धीरे जैसे जैसे आप अपनी पूर्ति बढाते हैं । तो लोग इस बात को स्वीकार करने को तैयार क्यों हैं ? देखिये चीज़ें आगे बढ सकती हैं, और बढी भी हैं । मिसाल के तौर पर, मोबाइल फोन: हमारे देश में ४० करोड मोबाइल फ़ोन हैं । हो सकता है कि मैं अपने फोन के सिर्फ़ दो ही बटन इस्तेमाल करता हूँ, और फोन की सिर्फ़ तीन ही सुविधाएँ इस्तेमाल करता हूँ । उसमें ३०० सुविधाएँ हैं; मैं ३०० सुविधाओं की कीमत चुकाता हूँ, लेकिन सिर्फ़ तीन इस्तेमाल करता हूँ । लेकिन मैं इसके लिये तैयार हूँ, और इसलिये, ये आगे बढ सका है । लेकिन अगर मुझे खास अपने लिये एक फोन चाहिये होता, तो जाहिर है, कि मुझे एक अलग नमूने का फोन लेना पडता । तो हम ये कहना चाह रहे हैं कि विशाल बनने के चक्कर में चीज़ें ख्त्म नहीं हो जानी चाहियें । दुनिया में एक स्थान होना चाहिये सिर्फ़ स्थानीय-संदर्भ के समाधानों के लिये, फ़िर भी, उन पर पैसा लगाया जा सके । हमने एक बडे परीक्षण में पाया कि कई बार निवेशक ये सवाल पूछते हैं --
"god, please cure him. and if you cure him, i will get my wall painted." and this is what he got painted.
最終更新: 2019-07-06
使用頻度: 4
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