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सिर्फ अगर लोग शिक्षित हैं ,
only if the people have education ,
最終更新: 2020-05-24
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बहुत से लोग शिक्षित हैं, लेकिन पूरी तरह से नहीं हैं
be educated with manners, not just educated
最終更新: 2020-09-06
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'६० और '७०के दशक में हम लोगों को एक बोझ के रूप में देखते थे. एक दायित्व के रूप में जानते थे. आज हम एक परिसंपत्ति के रूप में लोगों की बात करते हैं. हम मानवीय पूंजी के रूप में लोगों की बात करते हैं. और मैं मानसिकता में इस परिवर्तन को, लोगो को बोझ की तरह जानने से मानवीय पूंजी, भारतीय मानसिकता में मौलिक परिवर्तन है. और मानवीय पूंजी की यह सोच में परिवर्तन तथ्य से जुड़ा है कि भारत एक जनसांख्यिकीय लाभांश के माध्यम से जा रहा है. स्वस्थ्य-देखबाल में जैसे सुधार होता है, शिशु मृत्यु दर नीचे जाती है, प्रजनन दर गिरना शुरू होता हैं. और भारत यह देख रहा है. भारत के पास होगा एक जनसांख्यिकीय लाभांश के साथ कई युवा लोग अगले 30 वर्षों के लिए. इस जनसांख्यिकीय लाभांश के बारे में अद्वितीय है कि भारत दुनिया में अकेला देश होगा इस जनसांख्यिकीय लाभांश के साथ. दूसरे शब्दों में, यह एक बूढी दुनिया में अकेला जवान देश होगा. और यह बहुत महत्वपूर्ण है. उसी समय अगर आप भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश को हटा दे, वहाँ वास्तव में दो जनसांख्यिकीय श्रेणी है. एक दक्षिण और पश्चिम में है, जो पहले से ही पूरी तरह से २०१५ तक व्यय किया जा रहा है, क्योंकि देश के इस भाग में, प्रजनन दर पश्चिम यूरोपीय देश के लगभग बराबर है. तो फिर वहाँ पूरा उत्तरी भारत है, जो भविष्य के जनसांख्यिकीय लाभांश का बड़ा हिस्सा होगा. लेकिन एक जनसांख्यिकीय लाभांश उतना ही अच्छा है जितना आपका मानवीय पूंजी में निवेश. सिर्फ अगर लोग शिक्षित हैं, उनके पास अच्छा स्वास्थ्य है, बुनियादी ढांचा है, काम पर जाने के लिए सड़के हैं , अध्ययन करने के लिए रात में रोशनी है - केवल उन मामलों में आप वास्तव में लाभ पा सकते है एक जनसांख्यिकीय लाभांश का. दूसरे शब्दों में, अगर आप वास्तव में एक जनसांख्यिकीय पूंजी में निवेश नहीं कर रहे हैं, वही जनसांख्यिकीय लाभांश एक जनसांख्यिकीय आपदा हो सकती है. इसलिए भारत एक महत्वपूर्ण बिंदु पर है या तो यह लाभ उठा सकता है इस जनसांख्यिकीय लाभांश का या यह एक जनसांख्यिकीय आपदा की ओर जा सकता है. भारत में दूसरी बात परिवर्तन है उद्यमियों की भूमिका का. जब भारत स्वतंत्र हुआ उद्यमियों को देखा गया एक बुरे रूप में, वह लोग जो फायदा उठाएँगे. लेकिन आज, ६० वर्ष से उद्यमशीलता की वृद्धि की वजह से, उद्यमि भूमिका ढ़ाचा बन गए हैं, और वे समाज को बड़ा योगदान दे रहे हैं. यह परिवर्तन योगदान दे रहा है जीवन शक्ति और पूरी अर्थव्यवस्था के लिए. तीसरी बड़ी बात, मुझे विश्वास है, जिसने भारत को बदल दिया है अंग्रेजी भाषा की ओर हमारा रवैया है. अंग्रेजी भाषा साम्राज्यवाद की भाषा के रूप में देखी गयी थी. लेकिन आज वैश्वीकरण के साथ, आउटसोर्सिंग के साथ, अंग्रेजी आकांक्षा की भाषा बन गई है. इसने इससे वह बना दिया जिससे सब सीखना चाहते हैं. और अब तथ्य यह है कि हमारा अंग्रेजी होना एक बड़ी सामरिक सम्पन्ति बन गया है. अगली बात प्रौद्योगिकी है. चालीस साल पहले, कंप्यूटर देखा गया निषिद्ध रूप में, उससे हम डरते थे, वह नौकरियों कम करता था. आज हम एक ऐसे देश में रहते हैं जो अस्सी लाख मोबाइल फोन एक महीने में बेचता है, उन मोबाइल फोन का ९० प्रतिशत प्रीपेड फोन है क्योंकि लोगों के पास क्रेडिट इतिहास नहीं है. उन प्रीपेड फोन के चालीस प्रतिशत प्रत्येक पुनर्भरण पर १० रूपये से कम डालते हैं. यह पैमाना है जिस पर प्रौद्योगिकी ने आज़ाद किया और सुलभ बना दिया. और इसलिए प्रौद्योगिकी चली गयी है निषिद्ध रूप से डरावनी से, सशक्तिकरण करने वाली चीज़ पर. बीस साल पहले, जब वहाँ बैंक कंप्यूटरीकरण पर एक रिपोर्ट थी उन्होंने रिपोर्ट को नाम नहीं दिया था कंप्यूटर पर एक रिपोर्ट, वे उन्हें कहते थे "लेजर की पोस्टिंग मशीनें. वे वास्तव में संघ को नहीं बताना चाहते थे कि वह कंप्यूटर हैं. और जब वे और अधिक उन्नत, अधिक शक्तिशाली कंप्यूटर चाहते थे वे उन्हें "उन्नत लेजर पोस्टिंग मशीनें" बुलाते थे. तो हम उन दिनों से एक लंबा सफर तय कर चुके हैं टेलीफोन सशक्तिकरण का एक साधन है, और वास्तव में भारतीयों की प्रौद्योगिकी के बारे में सोच बदल गई है. और फिर मुझे लगता है कि अन्य बिंदु है कि भारतीयों आज बहोत अधिक वैश्वीकरण के साथ आरामदायक हैं.
in the '60s and '70s we thought of people as a burden. we thought of people as a liability. today we talk of people as an asset.
最終更新: 2019-07-06
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