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mummy is talking on the these time

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she is talking on the phone

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वह कार चला रहा है

마지막 업데이트: 2021-07-29
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now , nobody is talking on that scale . but i do believe

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अब , कोई भी उस पैमाने पर बात नहीं कर रहा है । लेकिन मुझे विश्वास है

마지막 업데이트: 2020-05-24
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♫ just talking on the phone to clonie . ♫ ♫ सिर्फ

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बात करती फ़ोन पर उससे , कलोनी ♫

마지막 업데이트: 2020-05-24
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he could spend a whole night with his friends talking on the streets .

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वह अपने मित्रों से बतियाते हुए सारी - सारी रात सड़कों पर व्यतीत कर सकते थे ।

마지막 업데이트: 2020-05-24
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vinay bhai, i have told the gas plant man, he will not put you on the cover work, he is talking about putting it on the computer and there is one more work, i will tell you tomorrow

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विनय भाई मैंने गैस प्लांट वाले को बोल दिया है वह आपको ढक्कन वाले काम पर नहीं लगाएगा कंप्यूटर पर लगाने की बात कर रहा है और एक और काम है

마지막 업데이트: 2021-07-23
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the bakery was completely wiped out, but the lessons for me were that accountability counts -- got to build things with people on the ground, using business models where, as steven levitt would say, the incentives matter. understand, however complex we may be, incentives matter. so when chris raised to me how wonderful everything that was happening in the world, that we were seeing a shift in zeitgeist, on the one hand i absolutely agree with him, and i was so thrilled to see what happened with the g8 -- that the world, because of people like tony blair and bono and bob geldof -- the world is talking about global poverty; the world is talking about africa in ways i have never seen in my life.

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"बेहतर काम, बेहतर फ़ायदा" का सिद्धांत काम करता है। समझिये, कि हम चाहे कितने भी पेचीदा क्यों न हों, प्रेरित होने पर आगे बढेंगे ही। तो जब क्रिस ने मुझे दिखाया कि कितना बढिया काम इस दुनिया में हो रहा है, और ये कि हम सामाजिक चेतना को जागृत कर रहे हैं, मैं एक तरफ़ तो उस से सहमत हुई, और बहुत उत्साहित हुई जो भी जी-८ के साथ हुआ, उसे देख कर -- कि ये संसार, टोनी ब्लेयर और बोनो और बॉब गेडोल्फ़ जैसे लोगों के कारण -- संसार वैश्विक गरीबी की बात कर रहा है, और दुनिया भर में अफ़्रीका की बात हो रही है उस अंदाज़ में, जिसमें आज तक नहीं हुई। ये बिलकुल रोमांचकारी अनुभव है। पर ठीक इसी समय, मुझे जो चिंता रातों को जगाए रहती है वो ये है कि हम जी-८ की उपलब्धियों को देखेंगे -- अफ़्रीका के अनुदान में ५० बिलियन डॉलर का इज़ाफ़ा, माफ़ किये ऋण के रूप में ४० बिलियन डॉलर -- उन जीतों की तरह जो सिर्फ़ पहले अध्याय पर ही अंत होंगी, और हमारी नैतिक जिम्मेदारी से छुटकार दिलाएँगी। और सच ये है कि, हमें इसे सिर्फ़ पहले अध्याय के रूप में ही देखना होगा, उसकी खुशी मनानी होगी, फ़िर उसे बंद कर के दूसरे अध्याय की तरफ़ बढना होगा जो कि गरजने के बजाय बरसने का अध्याय है - कि कैसे वो करें जिसका आश्वासन दिया है। और यदि आप आज की मेरी बातचीत से सिर्फ़ एक बात याद रखना चाहें, तो वो ये होगी कि गरीबी को जड से ख्त्म करने का एक ही रास्ता है, कि ज़मीनी सच्चाई से जुडी ऐसी प्रणालियाँ बनायीं जाएँ जो ज़रूरी उत्पाद और सेवाओं को गरीबों तक वहनीय दामों में पहुँचायें, वित्तीय रूप से पोषक और तरक्कीशुदा तरीकों से। यदि हम ऐसा करेंगे, तो हम सच में गरीबी को इतिहास में बदल सकेंगे। और इसी परिकल्पना ने ही मुझे अपनी उस कोशिश को शुरु करने के लिये प्रेरित किया जिसे अक्यूमन फ़ंड नाम से जाना जाता है, जो कि ऐसी छोटी-छोटी योजनाएँ बना रहा है कि कैसे हम जल, स्वास्थ, और आवास की समस्याओं का पाकिस्तान, भारत, कीन्या, तन्ज़ानिया और मिश्र में निदान करें। और मैं इस बारे में उदाहरणबद्ध तरीके से कुछ और बातें कहूँगी जिससे कि आप समझ सकें कि हम क्या कर रहे हैं। पर इस से पहले कि मैं ये करूँ - और ये भी मेरा चहेता विषय है -- मैं इस बारे में बात करूँगी कि वास्तव में गरीब का क्या अर्थ है। क्योंकि हम अक्सर उनके बारे में ऐसे बात करते हैं मानो वो कोई मजबूत, विशाल जनसमूह है जो कि आज़ादी चाहता है, जबकि सच्चाई बहुत ही अलग और आँखें खोलने वाली है। बडे स्तर पर, पृथ्वी पर करीब चार बिलियन (चार सौ करोड) लोग प्रतिदिन चार डॉलर से कम कमाते हैं। हम उन सबको गरीब मानते हैं। यदि आप हिसाब लगायें, तो ये संसार की तीसरी सबसे बडी अर्थ-व्यवस्था होगी, और तब भी इन में अधिकांश लोग अदृश्य हैं। जहाँ हम काम करते हैं, वहाँ सामान्यतः लोग करीब एक से तीन डॉलर प्रतिदिन कमाते हैं। लेकिन ये लोग हैं कौन? ये किसान हैं, और कारखाने के कारीगर हैं। ये सरकारी नौकर हैं। ये ड्राइवर हैं। ये घर पर रहने वाले लोग हैं। और इन्हें भी ज़रूरी उत्पाद और सेवाएँ जैसे कि पानी और स्वास्थ-सेवा, या आवास खरीदना पडता है, और ये करीब ३० से ४० गुना ज्यादा कीमत अदा करते है, मध्यवर्गीय लोगों की अपेक्षा -- कम से कम कराँची और नैरोबी के लिये तो ये आँकडा सच है। गरीब भी बढिया फ़ैसले लेना चाहते हैं, यदि आप उन्हें ये मौका दें तो। देखिये, दो उदाहरण हैं। एक तो भारत से, जहाँ कि करीब चौबीस करोड किसान हैं, जो कि प्रतिदिन दो डॉलर से भी कम कमाते हैं। हम जहाँ औरंगाबाद में काम करते है, ज़मीन असाधारण रूप से सूख चुकी है। वहाँ ऐसे लोग भी है जो कि आधे डॉलर से एक डॉलर के बीच कमाते है। ये गुलाबी कपडों में अमी तबर नाम के सामाजिक उद्यमी हैं। उन्होंने देखा कि कैसे इज़रायल में बडे स्तर पर योजना बना कर काम हो रहा था, और ये सीखा कि ड्रिप-सिंचाई कैसे करें, जो कि पानी को सीधे पौधे की जड में पहुँचाने का एक तरीका है। पर पहले ये सिर्फ़ बडे पैमाने के खेतों में ही संभव था, तो अमी तबर ने इसे एक एकड के आठवें भाग जितने बडे खेत में लगाने लायक बनाया। कुछ एक मूल सिद्धांत हैं -- लघु बनाइये। उसे गरीबों के लिये वहनीय और, असाधारण रूप से बढत लायक बनाइये। सरिता और उसके पति के इस परिवार ने १५ डॉलर की एक इकाई खरीदी जब वो तीन दीवारों के कमरे में टीन के छत डाल कर बसर कर रहे थे। और एक ही फ़सल के बाद, उन्होंने अपनी कमाई इतनी बढा ली है कि वो अब एक और इकाई खरीद कर चौथाई एकड के दो टुकडों में काम कर सकते हैं। कुछ साल बाद मैं उनसे मिली। और अब वो करीब चार डॉलर प्रतिदिन की कमाई करते हैं, जो कि भारत के मध्यवर्ग के बराबर है, और उन्होंने मुझे पक्की नींव दिखायी जो उन्होंने अभी डाली है अपन घर बनाने के लिये। और मैं गवाह खडी हूँ, उस औरत की आँखों मे बुनते हुए भविष्य की। ये ऐसा कुछ है जिसमें मैं सच में विश्वास रखती हूँ। आज आप गरीबी की बात मलेरिया-रोधक मच्छरदानियों को अनदेखा कर के नहीं कर सकते, और मैं फ़िर से हार्वाड के जैफ़्री साक्स को इसे बनाने के लिये तहेदिल से शुक्रिया देती हूँ - इसके इस पागलपन से भरे ध्येय के लिये - कि आप पाँच डॉलर में एक जीवन बचा सकते हैं। मलेरिया हर साल कम से कम १० से ३० लाख लोगों की जान लेता है। ३० से ५० करोड लोगों को ये बीमारी हर साल होती है। अंदाजन सिर्फ़ अफ़्रीका में ही करीब १३ बिलियन डॉलर हर वर्ष इस बीमारी की बलि चढता है। पाँच डॉलर से एक जीवन बच सकता है। जब हम लोगों को चाँद पर भेज सकते है, और ये जानना चाहते है मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं -- तो हम ५० करोड लोगों तक पाँच डॉलर में बनी मच्छरदानी क्यों नहीं दे सकते? प्रश्न ये नहीं है कि हम क्यों नहीं दे सकते, प्रश्न ये है कि हम अफ़्रीकी लोगों को ही स्वयं ये करने में मदद कैसे करें? बहुत सारी बाधायें हैं। पहली: उत्पादन क्षमता बहुत कम है। दूसरी: दाम बहुत ज्यादा है। तीसरी: ये हमारी फ़ैक्ट्री के पास की एक अपेक्षाकृत बेहतर सडक है। आवंटन किसी बुरे सपने जितना भयानक है, मगर असंभव नहीं है। हमने शुरुवात की ३५० हज़ार डॉलर का ऋण दे कर अफ़्रीका के सबसे बडे मच्छरदानी निर्माता को जिसके कि वो जापान से तकनीक खरीद सकें और पाँच साल तक चलने वाली मच्छरदानियाँ बना सकें। ये फ़ैक्ट्री की कुछ तस्वीरें हैं । आज, तीन साल बाद, इस कंपनी में हजार और महिलाएँ काम करती हैं। ये करीब ६०० हज़ार डॉलर तन्ख्वाहों के रूप में तनज़ानिया की वित्त-व्यवस्था में देती है। ये तन्ज़ानिया की सबसे बडी कंपनी है। और १५ लाख मच्छरदानियाँ प्रतिवर्ष की दर पर उत्पादन हो रहा है, जो कि इस साल के अंत तक ३० लाख तक पहुँच जाएगा। और अगले साल के अंत तक ये ७० लाख तक पहुँच जायेगा। तो उत्पादन की समस्या पर काम हो रहा है। आवंटन की समस्या पर, अभी भी, एकजुट हो कर, हमें बहुत काम करना है। इस समय, इन मच्छरदानियों का ९५% यू.एन. द्वारा खरीदा जाता है, और फ़िर अफ़्रीका में लोगों को बाँट दिया जाता है। और हम चाहते है निर्माण करना अफ़्रीका के सबसे कीमती संसाधन - लोगों का - उपयोग करके। वहाँ की औरतों की शक्ति का उपयोग करके। और इसलिये मैं आपको जैकलीन से मिलवाना चाहती हूँ, मेरे ही नाम की हैं, २१ साल उम्र की। अगर इसका जन्म तनजानिया के अलावा कहीं भी हुआ होता, तो मैं साक्षी हूँ, ये लडकी वॉल स्ट्रीट को नचा रही होती। ये दो लाइन चलाती है, और इसने इतना पैसा बचा लिया है कि ये अपनी घर के लिये अग्रणी जमाराशि का भुगतान कर सके। ये करीब दो डॉलर प्रतिदिन कमाती है, एक शिक्षा-निधि तैयार कर रही है, और इसने मुझे बताया कि न तो ये शादी करेगी न ही बच्चे जब तक कि ये इन चीज़ों को पूरा न कर ले। और इसलिये, जब मैने उसे अपनी योजना बतायी -- कि हो सकता है कि हम अमरीका की तरह ही एक समूह में औरतों को बाहर भेज कर ये मच्छरदानियाँ बेच सकें -- उसने तुरंत हिसाब लगाया कि उस से वो कितने पैसे कमायेगी और हमसे जुड गयी। हमने आई.डि.ई.ओ.

마지막 업데이트: 2019-07-06
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