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ये हुई न बात .
that's it.
Laatste Update: 2017-10-12
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यह हुई न बात!
now that's really something!
Laatste Update: 2017-10-12
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ओह, हाँ, यह हुई न बात।
oh, yes, there we go.
Laatste Update: 2017-10-12
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ये हुई ना बात। चल ठीक है
chalo bhai chalte hai
Laatste Update: 2021-11-06
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यह हुई न बात, ख़ूबसूरत महिला।
there she is, the old lady.
Laatste Update: 2017-10-12
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तो वो कौतुहल से मेरी ओर देख के कहते , “ ये हुई न बात ! ”
and they would look quizzically , and then be like , “ high five ! ”
Laatste Update: 2020-05-24
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अगर आप न बात करना चाहते हैं, तो बात न बोलें, लेकिन मुझे अपने दृष्टिकोण को न दिखाएं
if u dont want to talk dont talk but dont show me ur attitude
Laatste Update: 2017-11-10
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यदि बर्फ , बोतल के पानी या उबले पानी से बनी हुई न हो तो पेय पदार्थ बिना बर्फ के ही पीएं ।
ask for drinks without ice unless the ice is made from bottled or boiled water .
Laatste Update: 2020-05-24
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चालीस वर्ष तक तू जंगल में उनका ऐसा पालन पोषण करता रहा, कि उनको कुछ घटी न हुई; न तो उनके वस्त्रा पुराने हुए और न उनके पांव में सूजन हुई।
"yes, forty years you sustained them in the wilderness. they lacked nothing. their clothes didn't grow old, and their feet didn't swell.
Laatste Update: 2019-08-09
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उसके गड़े हुए धन पर घोर अन्धकार छा जाएगा। वह ऐसी आग से भस्म होगा, जो मनुष्य की फूंकी हुई न हो; और उसी से उसके डेरे में जो बचा हो वह भी भस्म हो जाएगा।
all darkness is laid up for his treasures. an unfanned fire shall devour him. it shall consume that which is left in his tent.
Laatste Update: 2019-08-09
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मैं पिछले २० वर्षों से गरीबी से जुडे मसलों पर काम करती आयी हूँ, और बडी विडंबना है कि मेरी सबसे बडी समस्या रही है कि गरीबी की सही परिभाषा आखिर क्या है? गरीबी का अर्थ क्या है? तो, अक्सर हम रुपये-पैसे से मापते हैं -- जो लोग एक या दो डॉलर रोज़ाना से कम कमा पाते हैं। लेकिन ये समस्या इतनी जटिल है कि इसे कमाई से आगे जा कर देखना होगा। क्योंकि, मौलिक रूप से, ये प्रश्न है विकल्पों की उपलब्धि, और स्वतंत्रता की कमी का मेरे एक अनुभव ने मुझे उस रूप मे इसे समझने में मदद की जिस रूप में मैं आज इसे समझती हूँ। मैं तब कीन्या में थी, और मैं आज इस अनुभव को आपसे बाँटना चाहती हूँ। मैं अपनी एक फ़ोटोग्राफ़र दोस्त, सूज़न मेसालस, के साथ थी, माथेरा घाटी की झुग्गियों में। देखिये, माथेरा घाटी अफ़्रीका की सबसे पुरानी झुग्गियों में से है। ये राजधानी नैरोबी से करीब तीन मील बाहर है, और ये खुद एक मील लम्बी और २०० गज चौडी है, जहाँ करीब ५ लाख लोग टीन के डब्बों जैसे घरों में ठुँसे रहते है, पीढी दर पीढी, उनका किराया देते हुए, करीब आठ से दस लोग प्रति कमरे की दर पर। और ये घाटी वेश्यावृत्ति, हिंसा, और नशीली दवाओं का गढ है। यहाँ पलना-बढना कठिन अनुभव है। और जन हम यहाँ की पतली पतली गलियों में चल रहे थे, तो ये असंभव था कि हमारे पाँव घरों के साथ लगे टट्टी के खुले ढेरों और कूडे के जमावडों में न पडें। पर साथ ही, हमारे लिये ये भी असंभव था कि वहाँ मौजूद मानव उत्साह को अनदेखा करें, वहाँ रहने वाले लोगों की उतकंठाओं और महत्वाकाक्षाओं को अनदेखा करें। बच्चों को नहलाती, कपडे धोती सुखाती औरतें। वहाँ मैं एक औरत से मिली - मामा रोज़, जिसने पिछले ३२ साल से टीन के छोटे से कमरे को किराये पर लिया हुआ था, और अपने सात बच्चों के साथ जीवन यापन कर रही थी। चार लोग एक डबल बेड में सोते थे, और तीन मिट्टी और लिनोलियम के फ़र्श पर। और वो उन सब को पढा रही थी, उसी घर से पानी बेच कर, और साबुन और ब्रेड बेच कर। वो दिन उद्घाटन का अगला दिन भी था, और मुझे ये भी दिखा कि मथारे घाटी अभी भी दुनिया की घटनाओं से जुडी है। मुझे गली के नुक्कडों पर बच्चे दिखे, जो कह रहे थे, "ओबामा, वो तो हमारा ही भाई है!" और मैने कहा, "हाँ, ओबामा मेरा भी भाई है, और इस तरह तुम भी मेरे भाई हुए।" तो वो कौतुहल से मेरी ओर देख के कहते, "ये हुई न बात!" और ऐसे ही माहौल में मेरी मुलाकात जेन से हुई। मुझे जेन के चेहरे में निहित दयाभावना और सद्भाव ने सहज ही छू लिया, और मैने उन से अपनी कहानी सुनाने के लिये कहा। उसने शुरुवात ही अपने सपनों से की। उसने कहा, "देखिये,मेर दो सपने थे।" मेर पहला सपना था कि मैं डॉक्टर बनूँ, और दूसरा था कि एक ऐसे अच्छे आदमी से शादी करूँ जो मेरे और मेरे परिवार के साथ रहे। क्योंकि मेरी माँ अकेली थीं, और मेरे स्कूल की फ़ीस नहीं दे पाती थीं, मुझे अपना पहला सपना छोडना पढा, और मैनें दूसरे वाले पर ध्यान दिया।" जेने की शादी १८ वर्ष में हो गयी, और तुरंत ही एक बच्चा भी। और बीस साल की उम्र मे, वो दोबारा पेट से थी, उसकी माँ का देहान्त हो चुका था, पति ने उसे छोड कर दूसरी औरत से शादी कर ली थी। तो वो वापस माथेरा में थी, बिना किसी हुनर के, बिना पैसे के, और बिना कमाई के। और लिहाज़ा, उसने वेश्यावृत्ति अपना ली। और जैसा हम अक्सर सोचते हैं, वैसा विधिवत बंदोबस्त नहीं था वो रात को करीब २० लडकियों के साथ शहर में जाती थी, काम ढूँढती थी, और कई बार केवल कुछ पैसे ले कर ही लौटती थी, और कई बार, बिना कुछ कमाये भी। उसने कहा, "पता है, गरीबी उतना नहीं सताती जितनी कि बेज्जती और ऐसा करने की शर्म।" २००१ में उसका जीवन बदल गया। उसकी एक सहेली थी, जिसने जामी बोरा नामक संस्था के बारे में सुना था। ये संस्था आपको कर्ज़ा देती थी, चाहे आप कितने भी गरीब क्यों न हों, बस आपके पास कुछ बचाया हुआ धन होना चाहिये। तो उसने एक साल मेहनत करके ५० डॉलर (२००० रुपैये) बचाये, और कर्ज़ लेना शुरु किया, और धीरे धीरे सिलाई मशीन खरीद ली। और उसने दर्ज़ीगिरि शुरु कर दी। और वहीं से शुरुवात उसके आज की, जहाँ वो पुराने कपडे खरीदती है, और करीब सवा तीन डॉलरों में एक पुराना गाउन खरीदती है। हो सकता उसमें कुछ आपके द्वारा दान किये गये हों। और वो इन्हें फ़िर से रिबन और पट्टियाँ लगा कर सुंदर बनाती है, और उन सुंदर गाउनों को औरतों को बेच देती है, उनकी बेटियों के सोलहवें जन्मदिन या किसी और मौके के लिए -- जिसे लोग खुशनुमा ढँग से मनाना चाहते हैं, चाहे अमीर हों या गरीब। और उसका धंधा बढिया चलता है। मैने उसे खुद गलियों में फ़ेरी लगाते देखा है। और पलक झपकते ही, उसके आसपास औरतों की भीड जुट जाती है, उसका सामान खरीदने के लिए। और मैं सोच रही थी, जैसे मैं जेन को कपडे और गहने बेचते देख रही थी, कि अब तो जेन रोज़ाना चार डॉलर से ज्यादा ही कमाती होगी। और कई परिभाषाओं के हिसाब से वो अब गरीब नहीं है। मगर वो अब भी मथारे घाटी में ही रहती है। और वो अब भी वहाँ से नहीं निकल सकती है। वो अब भी उस सारी असुरक्षा के साथ रहती है, और जनवरी के दंगों मे, उसे घर से भगा दिया गया था, और उसे दूसरा ठिकाना ढूँढना पडा जहाँ वो अब रहेगी। जामी बोरा संस्था ये समझती है। और ये भी कि जब हम गरीबी की बात करते हैं, तो हमें सारे आर्थिक स्तरों के गरीबों को ध्यान में लेना होगा। और इसलिये अक्यूमन और ऐसी और संस्थाओं की धैर्यवान पूँजी, कर्ज़ और निवेश से, जो कि लम्बे समय तक साथ देने को तैयार हैं, जामी बोरा ने एक कम-खर्च रिहायशी इलाका विकसित किया है, नैरोबी सेन्ट्रल से करीब एक घन्टे की दूरी पर। और उन्होनें इसे अभिकल्पित करते समय जेन जैसे ग्राहकों के बारे में सोचा है, और जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व पर दबाव डाला गया है। इसलिये, जेन को घर की दस प्रतिशत कीमत -- करीब ४०० डॉलर (१६००० रुपैये), अपनी बचत से चुकाना पडा। और फ़िर उन्होंने उसकी मासिक किस्त को उसके किराये जितना ही कर दिया। अगले कुछ हफ़्तों मे, वो इस रिहायिशी इलाके में आने वाले पहले २०० परिवारों मे से एक होगी। जब मैनें उस से पूछा कि क्या वो किसी बात से डरती है, या फ़िर मथारे की किस बात की उसे याद आयेगी, तो उसने कहा, "मुझे ऐसा कौन सा डर लग सकता है जो मैनें अब तक न झेला होगा? मुझे एड्स है। वो भी मैने झेल लिया।" और उसने कहा, "मुझे क्या याद आयेगा? आपको लगता है कि मुझे खून-खराबा या नशीली दवायें याद आयेंगी? या पूरी तरह से खुले में रहना? क्या आपको लगता है कि मैं याद रखना चाहूँगी बच्चों के घर वापस न आने का डर?" उसने कहा, "अगर आप मुझे दस मिनट दें," तो मैं चलने के तैयार हो सकती हूँ।" मैने पूछा, "और तुम्हारे सपने?" और उसने कहा, "पता है, मेरे सपने वैसे नहीं हैं जैसे तब थे जब मैं बच्ची थी। लेकिन अब सोचने पर लगता है, कि पति की मेरी चाहत असल में ऐसे परिवार के लिये मेरी झटपटाहट थी जहाँ प्यार मिले। और मैं अपने बच्चों को, वो मुझे, बहुत प्यार करते हैं।" उसने कहा, "मुझे लगता था कि मैं डॉक्टर बनना चाहती थी, पर वास्तव में मैं ऐसा कुछ बनना चाहती थी जो सेवा करे, इलाज करे, और बीमारी हटाये। और जो भी आज मेरे पास है, मुझे बहुत भाग्यशाली महसूस करवाता है, मैं भाग्यशाले हूँ कि हफ़्ते में दो दिन मैं एड्स मरीज़ों को सलाह देती हूँ। और मैने कहा, "मेरी तरफ़ देखो। तुम खत्म नहीं हो चुकी हो। तुम अभी जीवित हो, और इसलिये तुम्हें सेवा करनी ही चाहिये।" और उसने कहा, "मैं दवाई देने वाली डॉक्टर तो नहीं हूँ।" मगर शायद मैं और भी ज्यादा कीमती कुछ देती हूँ क्योंकि मैं आशा बाँटती हूँ ।" और आर्थिक मंदी के इस दौर में, जहाँ हम सब बस चुपचाप भागना चाहते है, डर के मारे, मुझे लगता है कि हमें जेन से कुछ सीखना चाहिये, और ये समझना चाहिये कि गरीब होने क मतलब साधारण होना नहीं है। क्योंकि जब व्यवस्था टूट चुकी होती है, जैसा कि हम आज दुनिया में देख रहे हैं, तो वो मौका होता है अविष्कार का और नव-रचना का। ये एक मौका है वास्तव में ऐसी दुनिया बनाने का जहाँ हम सेवाओं और उत्पादों को हर व्यक्ति तक ले जा पाएँगे, जिससे कि वो अपने फ़ैसले ले सकें और उनके पास विकल्प हों। मैं मानती हूँ कि यहीं से स्वाबलम्बन शुरु होता है। हमें विश्व में जेन जैसे लोगों का आभारी होना चाहिये। और उतना ही ज़रूरी है कि हम भी अपना कर्तव्य निभायें। धन्यवाद। तालियाँ और अभिवादन
i've been working on issues of poverty for more than 20 years, and so it's ironic that the problem that and question that i most grapple with is how you actually define poverty. what does it mean? so often, we look at dollar terms -- people making less than a dollar or two or three a day.
Laatste Update: 2019-07-06
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