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a nie trzymając się głowy chrystusa, z którego wszystko ciało przez stawy i związania posiłek biorąc i wespół spojone będąc, rośnie wzrostem bożym.
और उस शिरोमणि को पकड़े नहीं रहता जिस से सारी देह जोड़ों और पट्ठों के द्वारा पालन- पोषण पाकर और एक साथ गठकर, परमेश्वर की ओर से बढ़ती जाती है।।
nie wchodźcie do domów proroka na posiłek o niewłaściwej porze, jedynie wtedy, kiedy on wam na to pozwoli. lecz kiedy jesteście zaproszeni, to wchodźcie.
ऐ ईमान लानेवालो! नबी के घरों में प्रवेश न करो, सिवाय इसके कि कभी तुम्हें खाने पर आने की अनुमति दी जाए। वह भी इस तरह कि उसकी (खाना पकने की) तैयारी की प्रतिक्षा में न रहो। अलबत्ता जब तुम्हें बुलाया जाए तो अन्दर जाओ, और जब तुम खा चुको तो उठकर चले जाओ, बातों में लगे न रहो। निश्चय ही यह हरकत नबी को तकलीफ़ देती है। किन्तु उन्हें तुमसे लज्जा आती है। किन्तु अल्लाह सच्ची बात कहने से लज्जा नहीं करता। और जब तुम उनसे कुछ माँगों तो उनसे परदे के पीछे से माँगो। यह अधिक शुद्धता की बात है तुम्हारे दिलों के लिए और उनके दिलों के लिए भी। तुम्हारे लिए वैध नहीं कि तुम अल्लाह के रसूल को तकलीफ़ पहुँचाओ और न यह कि उसके बाद कभी उसकी पत्नियों से विवाह करो। निश्चय ही अल्लाह की दृष्टि में यह बड़ी गम्भीर बात है
a cić są, co byli przyszli do dawida do sycelegu, gdy się jeszcze krył przed saulem, synem cysowym; a ci byli między mocarzami posiłek dawający w bitwie,
जब दाऊद सिकलग में कीश के पुत्रा शाऊल के डर के मारे छिपा रहता था, तब ये उसके पास वहां आए, और ये उन वीरों में से थे जो युठ्ठ में उसके सहायक थे।
wystarczy mniej niż 25 centów dziennie, by zmienić życie dziecka. ale najbardziej zdumiewa to, jaki ma to wpływ na życie dziewcząt. jeśli w kraju, w którym dziewczynki nie chodzą do szkoły, zaoferujemy im posiłek w szkole, zauważamy wzrost wskaźników skolaryzacji do około 50% dziewcząt i chłopców.
25 सेंट से भी कम खर्च होता है, एक बच्चे के जीवन में परिवर्तन लाने के लिए. मगर सबसे कमाल की बात है लड़कियों पर असर. उन देशों में जहां लडकियां स्कूल नहीं जातीं, अगर वहां स्कूल में एक वक्त का खाना दिया जाता है, तो आप देखेंगे कि भरती की संख्या में 50 प्रतिशत लडकियां और लड़के हैं. लड़कियों की हाज़िरी में भी बदलाव नज़र आता है _bar_ और यह ज़रा भी बहस की बात नहीं है, क्योंकि यह फायदे की बात है. परिवारों को मदद की ज़रुरत है. और हम यह देखते हैं कि अगर हम लड़कियों को ज़्यादा दिन स्कूल में रखें , वे 16 साल की उम्र तक स्कूल में पढ़ेंगी, और जब स्कूल में भोजन हो, वे शादी करने के लिए मजबूर नहीं होंगी. अगर हफ्ते के आखिर में उन्हें भोजन का अधिक हिस्सा दिया जाए