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it has some demerit also
इससे कुछ हानि भी है
Последнее обновление: 2020-05-24
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this is not its demerit but merit . 7 payment of tax in labour invigorates the nation .
वह इसका अवगुण नहीं , बल्कि विशेष गुण है ।
Последнее обновление: 2020-05-24
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it is still the i that chooses and determines , it is still the i that undertakes the responsibility and feels the demerit or the merit .
अभी भी हमारी मैं ही चुनती और निर्णय करती है , हमारी समता की प्राप्ति और अहं का नाश 231 मैं ही उत्तरादायित्व लेती और निन्दाप्रशंसा अनुभव करती है ।
Последнее обновление: 2020-05-24
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for one person, we feel that during the unfolding of his merit karma (puniya), he is right, and when his demerit karma (paap) unfolds we feel he is wrong. even when our merit and demerit accounts are perverse, our vision too will be distorted.
एक व्यक्ति के लिए, अगर उसके पुण्य का उदय हो तो हमें वह सही लगता है और पाप का उदय हो तो वह गलत लगता है अगर हमारे भी पाप-पुण्य के हिसाब उल्टे हो न तो हमें भी सब उल्टा दिखेगा क्या कहना चाहते हैं? जय सच्चिदानंद, देखने से, सुनने से और बोलने से अभिप्राय बँधते हैं, ठीक है? तो जो लोग गूँगे-बहरे हैं, जो बोल नहीं पाते, सुन नहीं पाते, पढ़ नहीं पाते तो उनके लिए अभिप्राय की स्थिति कैसी होती है? उनके अंदर तो सब चलता ही रहता है, अहंकार और बुद्धि तो है न "मैं ऐसा हूँ", वह भी उसे लगता है और ये लोग मुझे दुःख दे रहे हैं, तकलीफ दे रहे हैं मेरी मदद नहीं कर रहे, मेरा ध्यान नहीं रखते ऐसे तरह-तरह का... बुद्धि तो काम करेगी ही न यह उसे दंड मिला है, कर्मों के उदय के कारण लेकिन उसके अंदर बुद्धि और अहंकार तो हैं ही और अगर रीटार्डेड हो तो अलग तरह से, लेकिन अंदर सब है तो सही बुद्धि और अहंकार काम करते ही रहते हैं लेकिन हमारी तुलना में कम अभिप्राय बंधते होंगे न? नहीं, नहीं वह कर्म का दंड भुगत रहा है जब वह पूरा हो जाएगा और नोर्मल बन जाएगा न तो वापस राग-द्वेष का तूफ़ान चालू हो जाएगा जब तक दंड है तब तक ही उसकी यह स्थिति है बाकी उसका कचरा, अज्ञान खत्म नहीं हुआ है और उसका आत्मा भी जागृत नहीं हुआ है यानी यह दंड भुगतकर फिर वह क्रोध-मान-माया-लोभ, राग-द्वेष... यह जो बड़ा गुनाह किया था, उसका दंड भुगतकर फिर जैसा था वैसा खुद तो रहेगा ही और उस आधार पर तीसरे जन्म में... यानी यह जन्म पूरा करके जब दूसरा जन्म लेगा न तब राग-द्वेष का सिलसिला तो चलता ही रहेगा यानी कुछ कम नहीं होगा अज्ञान दशा में दंड भुगतता है लेकिन राग-द्वेष कम नहीं होंगे अभी विनोद भाई ने पद गाया उसमें ऐसा है कि बोलना नहीं चाहिए ऐसा सुनना नहीं चाहिए, ऐसा देखना नहीं चाहिए वह तो भक्ति है ठीक है हाँ तो फिर यह तो चार बंदरों जैसा है कि बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो, ऐसे चार चीज़ें हुई वह ठीक है, फिर तो उस कारण से ये जो सारे अभिप्राय हैं, अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो फिर अभिप्राय नहीं बँधेंगे न? नहीं, नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है अभिप्राय तो... यह तो अपना भाव है कि मैं दादा के अलावा अन्य किसी चीज़ में पड़ना नहीं चाहता दादा के ज्ञान में, दादा की भक्ति में ही रहना चाहता हूँ यानी इसमें ज्ञानी के प्रति भक्ति दिखा रहे हैं आपकी समझ में आया? उससे और कुछ बिगड़ेगा नहीं मुझे उत्तर दिशा में... मुझे यहाँ से मुंबई जाना है तो क्या मैं जामनगर के साथ अन्याय कर रहा हूँ? क्या मैंने जामनगर का तिरस्कार किया? ऐसा कुछ भी नहीं है क्योंकि मुझे दादा पर भक्ति है इस कारण से मैं संसार पर द्वेष नहीं कर रहा हूँ वह तो भक्ति भाव है अभिप्राय कब कहा जाएगा कि जब हम कहें कि संसार में शादी तो करनी ही नहीं चाहिए दुःखी हो जाएँगे, कितना गलत है वह अभिप्राय यानी तिरस्कार होता रहता है, जो शादी करता है उस पर चिढ़ते रहते हैं वैसा अभिप्राय नहीं रखना है वह कर्म का उदय पूरा कर रहा है मेरा भाव है कि, मुझे शादी नहीं करनी है, लेकिन वह भाव मेरे लिए है लोग अपने हिसाब और उदय के अनुसार पूरा करते हैं, उसमें मुझे कोई राग-द्वेष नहीं होना चाहिए ऐसा हम समझते हैं आपकी समझ में आया? जय सच्चिदानंद
Последнее обновление: 2019-07-06
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