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आप यात्रा से होने वाले आनंद को जानते हैं तथा नृवंशी अध्ययन के शोध का एक आनंददायक अवसर प्राचीन ढंग से जीवन व्यतीत करने वाले लोगों के बीच रहना है, वे लोग जो अब भी अपने बीते हुए समय को महसूस कर रहे हों और पाषाण युग का अनुभव व पत्तियों का स्वाद चख कर जीवन व्यतीत कर रहे हों। यह जानने के लिए कि जगुआर शमनस अब भी आकाश गंगा के परे यात्रा करता है या फिर पूर्वजों की भावनात्मक अर्थपूर्ण कल्पनाओं अब भी प्रतिध्वनित हो रही है, या फिर हिमालय पर्वत में बौद्ध आज भी धर्म का अनुसरण कर रहे हैं, यह मानव शास्त्र के मूल भाव को वास्तविक तौर पर याद रखना है। इससे यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि हम जिस संसार में जीवन व्यतीत कर रहे हैं वह निश्चित तौर पर वैसा ही नहीं है अपितु वह तो वास्तविकता का एक नमूना है, हमारे पूर्वजों ने जो परंपरा बनाई वह अनुकूलक विकल्पों के एक निश्चित समूह का परिणाम है हालांकि वह अनेक पुश्तों पहले सफल था। और हां, हम सभी उन अति आवश्यक अनुकूलकों का प्रयोग कर रहे हैं। हम सभी ने जन्म लिया है। हम सभी अपने बच्चों को इस संसार में लाते हैं। हम दीक्षा के रीति रिवाजों से गुजरते हैं। हमें मृत्यु की कबेरता के कारण अलग होने को पीड़ा का सामना करना पड़ता है, इसलिए हमें आश्चर्य चकित नहीं होना चाहिए कि हम गाना गाते हैं, हम सभी नाचते हैं और हम सभी को कला का ज्ञान है। परंतु इसमें रोचक बात यह है कि सभी संस्कृतियों में गीत का आलाप, नृत्य की लय अनोखी होती है। चाहे इसमें बोरनियो के वनों में की जाने वाली तपस्या हो, या हैती में तंत्रमंत्र का अनुसरण हो, या उत्तरी केनिया के कैसुत मरूस्थल में यौद्धा हो, ऐंडिस पर्वतों में कुरानडेरो हो, या सहारा रेगिस्थान के मध्य में कैसवैन सेराऐ हो। यह शायद वह सहयात्री था जिसके साथ मैंने एक महीना पहले रेगिस्थान की यात्रा की है या फिर वास्तव में यह क्योमोलंगमा की ढालानों पर एक याक चराने वाला है। एवरेस्ट चोटी विश्व की देवी भी है। ये सभी लोग हमें यह शिक्षा देते हैं कि जीवन व्यतीत करने के अन्य तरीके भी हैं, सोचने के अन्य तरीके भी हैं, धरती पर रहने के अन्य तरीके भी है अगर आप इसके विषय में विचार करें तो यह आपके भीतर आशा की किरण उत्पन्न कर सकता है। अब आप विश्व की असंख्य संस्कृतियों को एकत्रित करें और आध्यामिक जीवन तथा सांस्कृतिक जीवन का जाल बुनें जो कि इस ग्रह को घेरती हैं, तथा वह ग्रह को बेहतर बनाने के लिए उतने आवश्यक हो जितने जीवन में मौजूद जीव जिन्हें हम बतौर जीव मंडल जानते हों। जीवन के इस सांस्कृतिक जाल को शायद आप नृवंशी समझ बैठें तथा आप विचारों व स्वपनों, कल्पनाओं, प्रेरणाओं, अंर्तज्ञान और जो भी कुछ चेतना की प्रारंभिक अवस्था से मानव कल्पना में मौजूद हो को एक साथ लेकर नृवंशी को परिभाषित करे नृवंशी होना मानवता की सबसे बड़ी विरासत है । हम सब क्या हैं यह उसका चिन्ह है तथा हम कितनी जिज्ञासु प्रजाति के हो सकते हैं । जैसे कि जीवनमंडल अत्यधिक नष्ट हो चुका है ठीक वैसे ही नृवंशीमंडल भी एक बहुत ही तेज गति से नष्ट हो चुका है । कोई भी जीव-वैज्ञानिक यह कहने का दुस्साहस नहीं करेगा कि सभी प्रजातियों में से 50 प्रतिशत या उससे अधिक प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर खड़ी हैं क्योंकि यह बिल्कुल सही बात नहीं है; इसके साथ-साथ जैविक विविधता की प्रभुता में यह भविष्य सूचक परिदृश्य है । जिसे हम अत्यधिक आशावादी परिदृश्य मानते हैं यह उस सांस्कृतिक विविधता का बहुत ही छोटा अंश है । भाषा की हानि इसकी उत्तम सूचक है । इस कमरे में मौजूद सभी लोगों का जब जन्म हुआ था तो उस समय इस ग्रह पर 6000 भाषाएं बोली जाती थी । आजकल भाषा मात्र एक शब्द संग्रह नहीं है या फिर वह व्याकरण नियमावली भी नहीं है । भाषा मानव आत्मा की चमक है । भाषा एक माध्यम है जिसके द्वारा किसी विशिष्ट संस्कृति की आत् एक अनात्मवादी संसार में प्रवेश करती है । प्रत्येक भाषा दिमाग के भीतर प्राचीन वन, जल-संभर, एक विचार, आध्यात्मिक संभावनाओं के परितंत्र की भांति होती है । जैसे कि आज हम मोनटेरे में बैठकर देख सकते हैं कि उन 6000 भाषाओं में से आधी भाषाएं बच्चों के कानों तक नहीं पहुंच रही हैं । वे शिशुओं को भी अब पढ़ाई नहीं जा रही हैं; जिसका अर्थ यह हुआ कि अगर कोई प्रभावशाली बदलाव नहीं होंगे तो वे पहले ही समाप्त हो जाएंगी । चुप्पी से घिरे रहने से ज्यादा अकेलापन और क्या होगा, आप अप भाषा बोलने वाले अपने लोगों में से आखिरी होंगे, आपके पास अपने पूर्वजों के ज्ञान को आगे पहुंचाने का या अपने बच्चों के इरादों का अनुमान लगाने को का कोई माध्यम नहीं होगा । तब भी यह भयानक किस्मत पृथ्वी पर कहीं न कहीं किसी की दर्दनाक अवस्था है; क्योंकि प्रत्येक दो सप्ताह में कोई ना कोई बड़ा व्यक्ति प्राण त्याग देता है और अपने साथ अपनी प्राचीन भाषा का ज्ञान ले जाता है । और मैं यह जानता हूं कि आप में से कुछ लोग कहेंगे;
vous savez, un des plaisirs intenses du voyage et un des délices de la recherche ethnographique est la possibilité de vivre parmi ceux qui n'ont pas oublié les anciennes coutumes, qui ressentent encore leur passé souffler dans le vent, qui le touchent dans les pierres polies par la pluie, le dégustent dans les feuilles amères des plantes. le fait de savoir que les jaguar shaman voyagent toujours au-delà de la voie lactée, ou que les mythes des anciens inuit résonnent encore de sens, ou bien que dans l'himalaya,