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तीसरे भाग , फ़्लेम ऑफ़ द फ़ॉरेस्ट पलाश के प्रारंभ में वाचक दीवान का अंशकालिक सचिव होता है ।
the flame of the forest , the third part of the novel , begins with the narrator establishing himself as the diwan ' s part time secretary .
मीडिया की भूमिकाओं, हमारी स्वयं की भूमिकाओं सुंदरता के बारे में धारणा। कोई, कहीं, किसी ने कहा कि एक सममित चेहरा सुंदर है। तो, हमारे जैसे लोगों का क्या होगा? मुझे लगता है कि हमारा रवैया असली विकलांगता हैं। मुझे लगता है की अब व्याख्यान करने का समय आ गया है। समय आ गया है उन लकीर के फकीर को तोड़ने का, उन पूर्वाग्रहों कि जिनके साथ हम रहते हैं। मेरे जैसे व्यक्ति के लिए एक जगह पर जाने के लिए मुश्किल हो जाता है जहाँ मुझे पता है कि मैं स्वीकार नहीं की जाऊंगी क्योंकि तुम को एक निश्चित तरह से पोशाक पेहेनना पड़ता है, तुम एक खास तरह लग रहे करने के लिए की जरूरत है, आप को मेकअप की ज़रूरत होगी, आदि _bar_ क्या होगा यदि मुझे यह सब ना मिले? तुम्हें पता है क्या होगा? यह मेरी संभावना कम कर देता है सामाजिक सहभागिता करने के लिए। मुझे एक कोने में धकेला जाता है ताकि मैं इस महत्वपूर्ण मुद्दे को संबोधित कर सकूं मैंने एक संगठन शुरू की पलाश फाउंडेशन। पलाश, हमने नाम " पलाश" रखा एक फूल के वजह से जो एक बहुत अस्पष्ट दिखने वाला फूल है, अजीब आकृति का। यह सही समानता है उन लोगो के लिए , जो नेत्रहीन अलग दीखते हैं और इसलिए नेत्रहीन विचित्र। इसको "वन का ज्वाला" भी कहा जाता है। मैं दिक्षिथा के बारे में थोड़ा सा बात करना चाहती हूँ । हम क्या करते है की , पलाश का लक्ष्य सामाजिक एकीकरण को संबोधित करना है और आजीविका उन विरूप लोगों की। अब विरूपण किसी भी तरह का हो सकता है। यह जलने के कारण हो सकता है, यह एक दुर्घटना के कारण हो सकता है, एक त्वचा रोग , या एक जन्मजात नुक्स यह कुछ भी हो सकता है जिससे एक दिखाऊ फर्क पड़ता हो , शरीर का एक भौतिक परिवर्तन। यहाँ, दिक्षिथा , जो अपने जीवन से दुखी थी , खुदको को मारने की कोशिश की और वह बच गयी । उसके पास एक साल का बेटा है , वह एक बहुत ही गरीब खानदान से है। उसके पास इतने पैसे नहीं हैं की एकाधिक प्लास्टिक सर्जरी करा सके जो उसके चेहरे पर चमत्कार कर दे, जैसा अवसर मुझे मिला था _bar_ हम उसके घर गए थे और वह इस बहुत ही गंदे मैले घर में रहती है कोई बिजली के बिना, और हमने उससे पुछा
portrayals of media, portrayals of our own perceptions of beauty. somebody, somewhere, said that a symmetrical face is beautiful. so, what happens to people like us then?