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vada giù delicatamente.
ये आराम से करना .
Son Güncelleme: 2017-10-13
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per i correnti veloci! [“per gli angeli che delicatamente ritirano le anime dei credenti!”]
और गवाह है वे (हवाएँ) जो नर्मी के साथ चलें,
Son Güncelleme: 2014-07-03
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il cambiamento climatico è già un problema difficile, e sta diventando sempre più difficile, perché capiamo che abbiamo bisogno di fare di più. capiamo, in realtà, che coloro che vivono nel mondo sviluppato devono veramente spingersi oltre nella riduzione delle emissioni. per dirla delicatamente, non è quello che è sull'agenda ora.
जलवायु परिवर्तन पहले ही वज़नदार विषय है, और अब तो और भी वज़नदार हो रहा है, क्योंकि हम समझने लगे हैं कि हमें जितना कर रहे हैं उससे ज्यादा करना चाहिए. हकीकत में, हम समझने लगे हैं , कि हम में से वो जो विकसित देशों में रहते हैं उन्हें वाकई में अपने एमिशन (उत्सर्जन) पूरी तरह से बंद कर देने चाहियें. मगर वास्तव में, सचाई यह है, कि ऐसा नहीं हो रहा है. और बहुत ज़बरदस्त अनुभूति होती है जब हम देखते हैं कि आजकल की वास्तविकता क्या है और हमारे सामने खड़ी इस समस्या का गुरुत्व क्या है. और जब हमारे सामने ज़बरदस्त समस्याएं होती हैं, तब हम सरल समाधान ढूंढते हैं. और मेरे ख़याल से यही हमने जलवायु परिवर्तन के विषय में किया है. हम देखते हैं कि एमिशन (उत्सर्जन) कहाँ से आ रहे हैं -- वो हमारी गाड़ियों के पाइपों या चिमनियों या ऐसी ही चीज़ों से आ रहे हैं, और हम कहते हैं, अच्छा भई, समस्या यह है कि यह एमिशन उन जीवाश्म ईंधनों से आ रहे हैं जो हम जलाते हैं, और इसलिए, इस का उपाय यह है कि हम इन जीवाश्म ईंधनों की जगह ऊर्जा के विशुद्ध स्त्रोतों का प्रयोग करें. तो हालांकि हमें विशुद्ध ऊर्जा की अवश्य ज़रुरत है, फिर भी मैं आपसे कहूँगा कि हो क्या रहा है कि जलवायु परिवर्तन की समस्या को विशुद्ध ऊर्जा के उत्पादन के नज़रिए से देखने के कारण, हम उसे हल करने की बजाय हल नहीं कर रहे हैं. और कारण यह है कि हम एक ऐसे ग्रह पर रहते हैं जिसका तेजी से नगरीकरण हो रहा है. यह हमारे लिए कोई नयी खबर नहीं है. पर कभी-कभी मुश्किल होता है उस नगरीकरण का विस्तार ध्यान रखना. इस सदी के मध्य तक, संसार में ८ अरब -- या उस से भी ज्यादा -- लोग होंगे जो शहरों में -- या उनसे एक दिन की दूरी पर -- रहेंगे. हम एक ज़बरदस्त रूप से शहरी नस्ल होंगे. तो फिर जुटा पाने के लिए ऐसी ऊर्जा जिसकी ज़रुरत होगी ऐसे शहरों में रहने वाले ८ अरब लोगों को जो लगभग कुछ हद तक उन शहरों जैसे हैं जिनमें हम जैसे सार्वभौमिक उत्तरी इलाकों के लोग आजकल रहते हैं, उसके लिए हमें उत्पन्न करनी होगी एक बेहद आश्चर्यजनक दर्जे की ऊर्जा. हो सकता है कि हम पैदा भी न कर पाएं इतनी अधिक मात्रा में विशुद्ध ऊर्जा. तो अगर हम जलवायु परिवर्तन को काबू में करने की बात गंभीरता से लेते हैं एक ऐसे ग्रह पर जिसका तेजी से शहरीकरण हो रहा है, तो हमें उन समाधानों के लिए किसी और दिशा में देखना होगा. यह समाधान शायद हमारे अनुमान से कहीं अधिक पास हैं. क्योंकि वो सब शहर जो हम बना रहे हैं हमारे लिए एक सुअवसर हैं. हर शहर काफी हद तक यह निर्धारित करता है कि उसके निवासी कितनी ऊर्जा का इस्तेमाल करेंगे. हम अक्सर ऊर्जा के इस्तेमाल को एक रवैय्य्ये के तौर पर देखते हैं -- मैं इस बिजली के स्विच को चालू करने का निर्णय लेता हूँ -- जबकि सच्चाई यह है कि हमारा ऊर्जा का अधिकतर इस्तेमाल पूर्वनिर्धारित होता है उन समूहों और शहरों से जिनमें हम रहते हैं. मैं आज आपको बहुत सारे ग्राफ़ (रेखाचित्र) नहीं दिखाऊँगा, पर अगर मैं एक पल के लिए सिर्फ इस पर ध्यान केन्द्रित करूँ, तो यह वाकई हमें बहुत कुछ ऐसा बताता है जो हमें जानने की ज़रुरत है -- जोकि सरल भाषा में यह है, कि अगर आप उदाहरण के लिए, परिवहन को देखें, जो वातावरण के उत्सर्जन का एक बड़ा वर्ग है, तो आप पाएंगे कि एक सीधा सम्बन्ध है एक शहर की आबादी की सघनता, और उन मौसमी उत्सर्जनों के बीच जो उसके निवासी हवा में प्रवाहित करते हैं. और परस्पर सम्बन्ध वाकई यह है, कि सघन क्षेत्रों में उत्सर्जन की मात्रा कम होती है -- और अगर आप इसके बारे में सोचें, तो यह समझना कोई बहुत मुश्किल नहीं है. मूलतः, हम अपने जीवन में, उन चीज़ों की प्रतिस्थापना करते हैं जिन तक हम पहुंचना चाहते हैं. हम जा कर अपनी कारों में कूद कर बैठते हैं और उन्हें चला कर जगह जगह जाते हैं. और हम मूल रूप से गतिशीलता का प्रयोग उस पहुँच के लिए करते हैं जो हमें चाहिए. पर जब हम एक सघन समुदाय में रहते हैं, तब हमें अचानक पता चलता है, सच, कि जो चीज़ें हमें चाहियें, वो हमारे पास ही हैं. और क्यूंकि सबसे चिरस्थायी यात्रा वही है जो तुम्हें करनी ही न पड़े, इसलिए अचानक हमारे जीवन भी अधिक चिरस्थायी हो जाते हैं. और सच तो यह है कि बहुत संभव है, हमारे आस पास के समुदायों की सघनता बढ़ाना. कुछ स्थान ऐसा कर रहे हैं नए पर्यावरणीय जिले बना कर, जहाँ वो बिलकुल नए चिरस्थायी मोहल्ले बना रहे हैं, जोकि अच्छी बात है अगर आप उसे कर सकें, पर ज़्यादातर समय असल में हम जो बात कर रहे हैं, वो है, उसी शहरी ढाँचे में फेरबदल करने की, जो हमारे पास है. तो हम बातें करते हैं इनफिल विकास की: जोकि तेज़, छोटे बदलाव हैं इस तरह के कि हम कहाँ इमारतें बनाएं, कहाँ विकास करें. शहरी रेट्रो-फिट: यानि पुराने में नया फिट करना: कुछ अलग तरह के स्थान बनाना, और जो स्थान हैं उनका नए तरह से इस्तेमाल करना. हम लगातार समझते जा रहे हैं कि हमें एक पूरे शहर को भी सघन करने की ज़रुरत नहीं है. बल्कि हमें तो ज़रुरत है एक औसत सघनता की जो इस स्तर तक बढ़ जाए जब हमें गाड़ी चलाने की ज़्यादा ज़रुरत न हो, इत्यादि. और यह किया जा सकता है कुछ ख़ास स्थलों की सघनता को बहुत ज़्यादा बढ़ा कर. तो आप इनकी तुलना कर सकते हैं टेन्ट के खम्भों से जो पूरे शहर की सघनता को ऊंचा उठा देते हैं. और हमने देखा है कि जब हम ऐसा करते हैं, तब हम वाकई कुछ ऐसे स्थान बनाते हैं जो अत्यंत सघन हैं उन व्यापक क्षेत्रों के बीच में जो शायद थोड़े ज़्यादा खुले हुए, आरामदेह हैं और हमें वही परिणाम मिलते हैं. अब यह भी हो सकता है कि हमें ऐसे स्थान मिलें जो बहुत, बहुत सघन हैं और फिर भी अपनी कारों से जुड़े हुए हैं, मगर सच्चाई यह है कि अधिकतर, जब हम बहुत सारे लोगों को सही स्थितियों के साथ करीब लाते हैं, तो हम देखते हैं एक सीमारेखा प्रभाव, जब लोग वाकई गाड़ी चलाना कम कर देते हैं, और लगातार, अधिक से अधिक लोग, अगर ऐसी जगहों में होते हैं जो उन्हें घर का अनुभव देती हैं, गाड़ी चलाना बिलकुल ही छोड़ देते हैं. और यह एक बहुत, बहुत बड़ी ऊर्जा की बचत है, क्योंकि जो धुआं गाड़ी के टेल-पाइप से निकलता है वो तो सिर्फ कहानी की शुरुआत है -- गाड़ियों के मौसमी उत्सर्जन की. इसके अलावा होता है गाड़ी का उत्पादन, गाड़ी की बिक्री, उनकी पार्किंग और चौड़े रास्ते और सारा झमेला. जब आप इन सबसे छुट्टी पा जाते हैं क्योंकि कोई इन सब का इस्तेमाल वाकई नहीं करता, तब आप पाते हैं कि आप परिवहन से सम्बंधित उत्सर्जनों को सच में कम कर सकते हैं करीब ९० प्रतिशत तक. और लोग इसे सच में अपना रहे हैं. पूरे संसार में, अब हम देख रहे हैं कि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस चलने वाली ज़िन्दगी को अपना रहे हैं. लोग कह रहे हैं कि यह बेहतर घर के सपने को बदल रहा है बेहतर पड़ोस के सपने में. और जब आप इस पर एक परत चढ़ाते हैं उस तरह के सर्वव्यापी संदेशों की, जो अब हमें हर तरफ़ दिखने लगे हैं, तब आपको दिखता है कि वाकई, स्थानों में अब बहुत अधिक पहुँच फैल गयी है. उसमें से कुछ है परिवहन की पहुँच. यह एक मैपनिफिसेंट नक्शा है जो मुझे दिखाता है, इस सन्दर्भ में, कि मैं अपने घर से ३० मिनट में कितनी दूर पहुँच सकता हूँ सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल कर के. उसमें से कुछ है चलने के बारे में. अभी सब कुछ दोषरहित नहीं है. यह हैं गूगल चलने के नक़्शे. मैंने पूछा कि बड़ी रिजवे को करने का क्या तरीका है, और इसने मुझे गेर्नसी की ओर से जाने का रास्ता बताया. यह ज़रूर बताया कि इस रास्ते पर शायद फुटपाथ या पैदल चलने वालों की पगडंडियाँ नहीं होंगी.
Son Güncelleme: 2019-07-06
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