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"ऐसा पानी बेचना जो गीला न हो।" बिट्स तो कॉपी लायक होते ही हैं। यही तो कम्प्यूटर करते हैं। ये तो उनके सामन्य काम करने के तरीका का निहित अंग है। तो ऐसी काबलियत के नाटक के लिये कि असल में कॉपी नहीं होने वाले बिट्स बिक सकते हैं, डी.एम.सी.ए ने ये भी कानूनी रूप से सही करार दिया कि आप पर ऐसे सिस्टम थोपे जायें जो आपके यंत्रों की कॉपी करने के काबलियत खत्म कर दें। हर डीवीडी प्लेयर और गेम प्लेयर और टीवी, और कम्प्यूटर जो आप घर ले जाते रहे -- आप चाहे जो सोच कर उसे खरीद रहे थे -- कंटेट इंडस्ट्री द्वारा तोडा जा सकता था, अगर वो चाहते कि इसी शर्त पर आपको कंटेंट बेचेंगे। और ये सुनिश्चित करने के लिये कि आपको ये पता न लगे, या फ़िर आप उस यंत्र की साधारण कम्प्यूटर नुमा गतिविधियों को इस्तेमाल न कर पायें, उन्होंने ये गैर-कानूनी करवा दिया कि आप रीसेट कर सके उनके कंटेंट को कापी होने लायक बनाने के लिये। डी.एम.सी.ए. वो काला क्षण है जब कि मीडिया इंडस्ट्री ने उस कानूनी सिस्टम को ताक पर रख दिया जो कानूनी और गैर-कानूनी कॉपी में फ़र्क करता था, और पूरी तरह से कॉपी रोकने का प्रयास किया, तकनीक के इस्तेमाल से भी। डी.एम.सी.ए के कई जटिल असर होते आये हैं, और हो रहे हैं, और इस संदर्भ में उसका असर है - शेयरिंग पर कसी गयी लगाम, मगर वो ज्यादातर नाकामयाब ही हुये हैं। और उनकी इस असफ़लता का मुख्य कारण रहा है ये कि इंटरनेट ज्यादा फ़ैला है, और ज्यादा शक्तिशाली बन कर उभरा है, किसी की भी सोच के मुकाबले। टेप मिक्स करना, फ़ैन मग्ज़ीन वगैरह निकानला कुछ भी नहीं है उस के मुकाबले जो आज घटित हो रहा है इंटरनेट पर। हम आज ऐसे विश्व के बाशिंदे हैं जहाँ ज्यादातर अमरीकी जो १२ वर्ष से बडे हैं, एक दूसरे से ऑन्लाइन चीजें शेयर करते हैं। हम लेख शेयर करते हैं, तस्वीरें साझा करते हैं, ऑडियो, विडियो सब साझा करते हैं। हमारी शेयर की गयी चीजों में से कुछ हमारी खुद की बनायी होती हैं। कुछ ऐसी सामग्री होती है जो हमें मिली होती है। और कुछ ऐसी सामग्री भी जो हमने उस कंटेट से बनायी होती है जो हमें मिला, और ये सब मीडिया इंडस्ट्री के होश उडाने के लिये काफ़ी है। तो पिपा और सोपा इस युद्ध की दूसरी कडी है। मगर जहाँ डी.एम.सी.ए. अंदर घुस कर काम करता था -- कि हम आपके कम्प्यूटर में घुसे हैं, आपके टीवी का हिस्सा हैं, आपके गेम मशीन में मौजूद हैं, और उसे वो करने से रोक रहे हैं जिसके वादे पर हमने उन्हें खरीदा था -- पिपा और सोपा तो परमाणु विस्फ़ोट जैसे हैं और ये कह रहे हैं, कि हम दुनिया में हर जगह पहुँच कर कंटेंट को सेंसर करना चाहते हैं। और इसे करने की विधि, जैसे मैने पहले कहा, ये है कि आप हर उस लिंक को हटा देंगे जो उन आई.पी. एड्रेस तक पहुँचेंगे। आप को उन्हें सर्च इंजिन से हटाना होगा, आपको ऑनलाइन डारेक्ट्रियों से हटाना होगा, आपको यूसर लिस्टों से हटाना होगा। और क्योंकि इंटरनेट पर कंटेट के सबसे बडे रचयिता गूगल या याहू नहीं हैं, आप और हम हैं, असल में निगरानी आपकी और हमारी ही होगी। क्योंकि आखिर में, असली खतरा पिपा और सोपा के कानून बनने से हमारी चीजों को शेयर करने की काबलियत को है। तो पिपा और सोपा से खतरा ये है कि ये सदियों पुराने कानूनी सिद्दांत को, कि "जब तक सिद्ध नहीं, अपराधी नहीं" उलट देंगे कि -
"com repartir aigua que no estiga humida". els bits són duplicables. els ordinadors fan això.