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सीता किताब पड़ती है
sita books
最后更新: 2024-01-09
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सीता किताब दुबती है
सीता कितअब पड़ ती है
最后更新: 2022-02-19
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सीता किताब पढ़ चुकी है ना?
ram eats mango doesn't he?
最后更新: 2019-12-09
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हम किताब पढेगे
we will read the book
最后更新: 2021-12-16
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vah कौन सी किताब है
vah kya kitab hai
最后更新: 2023-06-01
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आपने कौन सी किताब ली है
have you taken the book
最后更新: 2023-01-26
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तुम कौन सी किताब पढते हो
you read the book
最后更新: 2020-09-22
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वह कोन सी किताब पढाती है.
she teaches a book.
最后更新: 2023-02-08
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वह कौन सी किताब नही खरीद चुका था
she is buying a book
最后更新: 2020-08-31
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वह आज कल कोन सी किताब पढ़ रहा है
რა წიგნს კითხულობს ის ამ დღეებში
最后更新: 2023-01-06
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आप बच्चों को कौन सी किताब पसंद है।
which book do you children like.
最后更新: 2023-01-26
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मेरी माँ ने कहा"आपको कौन सी किताब सबसे ज्यादा पसंद है
my mother said"which book do you like most
最后更新: 2024-09-17
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उसने लड़के से पूछा कि वह कौन - सी किताब पढ़ रहा है ।
the boy was tempted to be rude , and move to another bench , but his father had taught him to be respectful of the elderly .
最后更新: 2020-05-24
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शेख साहब ने कहाहुजूर , जो बात आप कह रहे हैं वह इसने कौन सी किताब में लिखी है ?
the shaikh enquired , sire , in what book has he thus written , that your majesty says this of him ?
最后更新: 2020-05-24
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किताबों की दृष्टि से भी यह अंकित किया था कि कौन - सी किताब अधिक पढ़ी गई और कौन - सी - कम ।
i had also noted which books were most popular and which were least popular .
最后更新: 2020-05-24
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आज मैं आप सब के साथ बाँटना चाहती हूँ, ईरानी कलाकार होने की चुनौती की कहानी, ईरानी महिला कलाकार होने की चुनौती की कहानी, मैं जो कि एक ईरानी महिला कलाकार हूँ, और देश-निकाला भुगत रही हूँ। सोचा जाये तो इसके फ़ायदे हैं और नुकसान भी हैं। नकारात्मक पहलू देखें तो राजनीति कभी भी हम जैसे लोगों को शांति से नहीं रहने देती। हर ईरानी कलाकार, किसी न किसी तरीके से, राजनीति से जुडा है। राजनीति ही हमारे जीवन को परिभाषित कर रही है। यदि आप ईरान में रह रहे हों, तो आपको तमाम सेंसरशिप (नियंत्रण), और अत्याचारों को सहना होगा, गिरफ़्तारी, शारीरिक उत्पीडन -- और कभी कभी, तो कत्ल या सजा-ए-मौत भी। और यदि आप मेरी तरह वहाँ से दूर रह रहे हों, आप के सामने देश-निकाले के जीवन की चुनौती है -- दर्द है याद का छटपटाहट है अपनों से दूर होने की परिवार से अलग होने की। इसलिये, हम वंचित हैं उस मौलिक, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और राजनैतिक आराम से, जो हमें इस सच्चाई से दूर रखे कि हमारी सामाजिक ज़िम्मेदारी बनती है। अजीब सी बात है, मेरे जैसी एक कलाकार स्वयं को उस किरदार में पाती है, जो आवाज़ है मेरे देश के लोगों की, जबकि, सच में, मेरा अपने देश में जाना तक मना है। और ये भी, कि मेरे जैसे लोग, दो अलग अलग लडाइयाँ लड रहे हैं। हम पश्चिमी सभ्यता की आलोचना करते हैं, विरोध करते है पाश्चात्य नज़रिये का अपनी पहचान के बारे में -- और उस अक्स का जो हमारे आसपास बना दिया गया है, हमारी स्त्रियों के बारे में, हमारी राजनीति के बारे में, हमारे धर्म के बारे में। तो हम एक तरफ़ इस सब के गर्व की लडाई कर रहे हैं, और सम्मान माँग रहे हैं। ठीक उसी समय, हम एक और लडाई लड रहे हैं। वो है हमारी अपनी शासन पद्धति से, हमारी अपनी सरकार से -- हमारी अपनी अत्याचारी सरकार से, जिसने हर सँभव अपराध किया है सिर्फ़ सत्ता में बने रहने भर के लिये। हमारे कलाकार खतरे में हैं। हम बडी विपत्ति में फ़ँसे हैं। हम खुद भी खतरा बन गये हैं, अपनी ही सरकार और शासन के लिये। और विडंबना ये है कि, इस स्थिति ने हमें शक्ति दी है, क्योंकि हमें, कलाकार होने के नाते, ज़रूरी माना जाता है सांस्कृतिक, राजनैतिक, और सामाजिक विमर्श के लिये, ईरान में। हमारा काम हो गया है प्रोत्साहित करना, ललकारना, बढावा देना, और अपने लोगों तक आशा की किरणों को पहुँचाना। हम अपने लोगों के हाल बयां करने के ज़िम्मेदार हैं, हम उनके संवाददाता हैं बाहरी दुनिया के लिये। कला हमारा हथियार है। संस्कृति हमारे विरोध का ज़रिया है। कभी कभी तो मुझे पाश्चात्य कलाकारों से जलन सी होती है उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी को देख कर -- और इस बात पर कि कैसे वो खुद को दूर कर लेते हैं राजनैतिक सवालात से -- और इस बात से कि वो केवल एक ही तरह के लोगों के लिये कार्यरत हैं, मु्ख्यतः पाश्चात्य सांस्कृति के लिये। पर साथ ही, मैं पश्चिम को ले कर चिंतित भी हूँ, क्योंकि अक्सर इन देशों मे, इस पाश्चात्य विश्व में खतरा दिखता है, संस्कृति के मात्र मनोरंजन में बदल कर रह जाने का। हमारे लोग अपने कलाकारों पर निर्भर हैं, और संस्कृति तो संवाद के परे है। एक कलाकार के रूप में मेरी यात्रा बहुत ही व्यक्तिगत जगह से आरंभ हुई थी। मैने सीधे शुरु नहीं किया था सामाजिक टिप्पणी करना अपने देश पर। जो पहला वाला आप देख रहे हैं ये असल में मैनें ईरान लौट कर बनाया था पूरे १२ साल इस से अलग रहने के बाद। ये इस्लामिक क्रांति के बाद हुआ, जो १९७९ में हुई थी। जब मैं ईरान से बाहर थी, ईरान में इस्लामिक क्रांति आ गयी और उसने पूरे देश को बदल कर रख दिया फ़ारसी संस्कृति से इस्लामिक संस्कृति में। मैं तो बस अपने परिवार के साथ रहने आयी थी, और फ़िर से इस तरह से जुडने कि मैं समाज में अपना एक स्थान पा सकूँ। बजाय उसके, मुझे एक ऐसा देश मिला जो पूर्णतः एक खास सिद्धांत से चल रहा था और जिसे मैं अपना ही नहीं पायी। और तो और, मेरी इसमें बहुत रुचि पैदा होती गयी क्योंकि मेरे सामने अपने व्यक्तिगत असमंजस और प्रश्न खडे थे, मेरी रुचि बढती ही गयी इस्लामिक क्रांति के अध्ययन में -- कि कैसे, असल में, इस ने अविश्वसनीय ढँग से बदल दिया ईरानी औरतों के जीवन को। मुझे ईरानी स्त्रियों का विषय बहुत ही तेजी से खींच रहा था, कि किस तरह से ईरानी औरतों ने, इतिहास में, राजनैतिक बदलाव को अपनाया है। तो एक तरह से, औरतों का अध्ययन करके, आप एक देश के ढाँचे और सिद्धांत को पढ सकते हैं। तो मैनें कुछ काम किया जिस से कि अचानक ही मेरे सारी दुविधा सामने आ गयी, और उसने मेरे काम को एक बडे विमर्श के कटघरे में ला खडा किया -- शहादत के विषय पर, उन लोगों के विषय पर जो अपनी मर्ज़ी से दुराहे पर खडे होते हैं एक तरफ़ ईश्वर से प्रेम, और विश्वास की राह पर, और साथ ही हिंसा, अपराध और क्रूरता की राह पर। मेरे लिये ये अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गया। और तब भी, मेरी इस पर थोडी अलग स्थिति थी। मैं एक बाहरी व्यक्ति थी जो कि ईरान आयी थी अपनी जगह खोजती हुई, मगर मैं इस स्थिति में नहीं थी कि मैं सरकार की आलोचना कर सकूँ या फ़िर इस्लामिक क्रांति के सिद्धांतो की। धीरे धीरे ये सब बदला और मुझे अपनी आवाज मिली और मैने उन चीज़ों को खोज़ा जो मुझे कभी नहीं लगा था कि मैं खोज पाऊँगी। और मेरी कला थोडी और ज्यादा आलोचनात्मक हो गयी। मेरा खंज़र थोडा और तीखा हो गया। और मैं फ़िर से देश-निकाले का जीवन जीने पर मजबूर कर दी गयी। अब मैं एक खानाबदोश कलाकार हूँ। मैं मोरक्को में, तुर्की में, मेक्सिको में काम करती हूँ। मै हर जगह में ईरान को खोजती फ़िरती हूँ। अब मैं फ़िल्मों पर भी काम कर रही हूँ। पिछले साल, मैने एक फ़िल्म ख्त्म की है जिसका शीर्षक है "आदमियों बगैर औरतें" ये फ़िल्म इतिहास में वापस जाती है, मगर ईरानी इतिहास के एक दूसरे ही हिस्से में। ये जाती १९५३ तक जब कि अमरीकी सी.आई.ए. ने तख्तापलट करवाया था और लोकतंत्र द्वारा चुने गये एक राजनीतिक नेता को हटवा दिया था, डॉ. मोस्सदेघ ये किताब एक ईरानी औरत ने लिखी है, शाहर्मुश पारसिपुर ये जादुई सी किताब यथार्थवादी उपन्यास है। इस किताब पर सरकारी रोक है, और उस लेखिका ने अपने पाँच साल जेल में बिताये। मैं इस किताब के लिये पागल हूँ, और मेरे इस किताब को फ़िल्म में तब्दील करने का कारण है इसका एक साथ कई प्रश्नों को कुरेद पाना। औरत होने का प्रश्न -- पारंपरिक रूप से, ऐतिहासिक रूप से ईरानी औरत होना -- और चार ऐसी औरतों का स्थिति जो एक नयी विचारधारा की खोज में हैं -- बदलाव की, आजादी की, और प्रजातंत्र की -- जबकि ईरान देश, साथ, एक और किरदार के रूप में, एक नयी विचारधारा की तलाश में है - प्रजातंत्र और आजादी की, और विदेशियों द्वारा दखलअंदाजी से आजादी पाने की। मैने ये फ़िल्म बनायी क्योंकि मुझे लगा कि ये ज़रूरी है कि ये पश्चिमी लोगों को बताये कि एक देश के रूप में हमारा इतिहास कैसा था। ये कि आप सब केवल उस ईरान को याद रख के बैठे हैं जो कि इस्लामिक क्रांति के बाद का ईरान है। ये कि ईरान एक ज़माने में धर्मनिरपेक्ष समाज था, और हमारा देश लोकतांत्रिक था, और हमसे इस प्रजातंत्र को छीन लिया अमरीकी सरकार ने, ब्रिटिश सरकार ने। ये फ़िल्म ईरानी लोगों से भी कुछ कहती है उनसे गुज़ारिश करती है अपने इतिहास में वापस जाने की और इस्लामीकरण से पहले के अपने व्यक्तित्व को एक नज़र देखने की -- कि हम कैसे दिखते थे, कैसे हम मौसीकी का लुत्फ़ उठाते थे, कैसे हमारे लोग बुद्धि-विषयक थे। और सबसे बडी बात, कि कैसे हमने प्रजातंत्र के लिये लडाई की थी। ये मेरी फ़िल्म के कुछ दृश्य हैं। और ये तख्तापलट के कुछ दृश्य हैं। हमने ये फ़िल्म कासाब्लान्का (मोरक्को) में बनायी है, सारे दृश्यों का पुनर्निमाण कर के। ये फ़िल्म कोशिश करती है कि एक संतुलन सा कायम हो एक राजनैतिक कहानी कहने के, और साथ ही, एक स्त्रीवादी कहानी कहने के बीच। एक दृश्य कलाकार होने के नाते, सच में, मैं कला के प्रसारण में सबसे ज्यादा रुचि रखती हूँ -- ऐसी कला जो आर पार जा सके राजनीति के, धर्म के, स्त्रीवाद के प्रश्नों के, और महत्वपूर्ण हो जाये, शाश्वत हो जाये, और कला का संपूर्ण सार्वकालिक उदाहरण बन जाये। मेरे सामने चुनौती ये है कि ये कैसे किया जाये -- कैसे एक राजनैतिक कहानी कही जाये रूपक व्याकरण में -- कैसे अपने भावों को उचित चित्रण किया जाये, पर साथ ही दिमाग से सोच कर काम हो। ये कुछ दृश्य है और फ़िल्म के कुछ किरदार।
the story i wanted to share with you today is my challenge as an iranian artist, as an iranian woman artist, as an iranian woman artist living in exile. well, it has its pluses and minuses.
最后更新: 2019-07-06
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