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तुम कुट्टा हो काय
tum kutta ho kya
最后更新: 2018-11-04
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अभि आप अकेले हो काय
abhi aap akele ho kya
最后更新: 2018-07-19
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फोन केला होता काय
really i am worried about him a lot
最后更新: 2021-06-18
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और फिर इन्फिरियर और सुपीरियर के बीच क्या प्रॉबलम होता है कि सुपीरियर हर बार अपना धार्युं करता होता है न इसलिए इन्फिरियर कर नहीं सकता तो फिर सप्रेस होता रहता है और फिर समय आने पर एकदम से सामनेवाले को पछाड़कर/दबाकर अपना धार्युं करने के लिए बेकार कोशिष करता है मतलब वे कॉम्प्लेक्सिटि से धार्युं करने जाते हैं जलन से, स्पर्धा से, तेजोद्वेष से कौन से कारणों से अपना धार्युं करने के लिए औरों के पास बवाल खड़ा करते हैं इस संसार में आपको क्या चाहिए? जिसे पावागढ़ जाना ही नहीं (जिसे कोई इच्छा ही नहीं है) वह धार्युं करता ही नहीं है उसे यदि उसे जाने के लिए नहीं मिले तो उसे कोई दुःख ही नहीं है और यदि जाने के लिए कहे तो फाइल है, मुझे नहीं जाना था लेकिन कह रहे हैं तो फाइल का निकाल (निपटारा) करने चला जाऊँगा ऐसा, ऐसा इस संसार में कुछ चाहिए ही नहीं मान, मोह वगैरह सब धार्युं करना हो तो फिर कोई कारण रहता ही नहीं उसे कुछ चाहिए, मान चाहता है सत्ता चाहता है मोह पूरे करने हैं समाज में कुछ चाहिए ये जो चाहिए, उन्हें डिवेल्यू करते जाओ आपके जाने के बाद आपके साथ क्या आएगा? ढूँढो तो सही यानी इस तरह एनैलिसिस करके यानी पहला स्टेप आया धार्युं करना वह जोखिम है करने जैसा ही नहीं है नक्की किया तो दूसरे स्टेप पर आओ किस तरह से जोखिम है किस तरह से अहितकारी है धार्युं करने से संसार में क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं उसके बिगिनिंग से एन्ड तक के जोखिमो का लिस्ट बनाकर तो देखो इसे खास तौर पर स्टडी करने जैसा है बाद में जितनी बार धार्युं करने का खड़ा (इच्छा) हो औरों को दुःख दे देते हों बहुत प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान करो और आपकी प्रतीति में सौ प्रतिशत रखो कि धार्युं करने जैसा है ही नहीं इसे करने जैसा है ही नहीं फिर चौथा स्टेप उसका उपराणा (रक्षण करना) नहीं लेना है आरग्यूमेन्ट, वह धार्युं करने का उपराणा ही है और धार्युं करके यदि कुछ अच्छा हो गया तो खुश हो जाते हैं यह भी उपराणा लेने जैसा ही है इसमें खुश होने जैसा कहाँ? वह दुःखी हो रहा है और आप खुश होते हो पाशवी आनंद लेने की ज़रूरत ही कहाँ है? लेकिन इस तरह रक्षण हो जाया करता है अब, धार्युं होना तो पुण्य-पाप के कारण हो जाता है यदि पुण्य का उदय हो तो धारणा के अनुसार होता है यदि पाप का उदय हो तो धारणा के अनुसार नहीं होता जब धारणा के अनुसार नहीं हो पाता है न तब आपके पाप कर्मों का उदय है यह समझ में नहीं आता और सामनेवाले को गुनहगार देख लेते हैं दोषित देख लेते हैं दोषित देख लेते हैं और आक्षेप लगाकर और फिर ऐसा निश्चय कर लेते हैं कि मैं तो उसे सीधा करके ही रहूँगा मेरा धार्युं करके ही रहूँगा बोलो, ऐसा करके फिर नए गुनाह खड़े कर लेते हैं और कुदरत का नियम है कि यदि आपका अहंकार धार्युं करनेवाला होगा न तो कुदरत फटकारती ही रहेगी आपको राह पर लाने के लिए लेकिन आपको निमित्त का उपकार मानना चाहिए उसके बजाय गुनहगार मान लेते हैं कि मुझे राह पर लाने के लिए मेरा अहंकार तोड़ने के लिए कुदरत निमित्त इकटठे कर रही हैं तब मैं मेरे अहंकार को संभालकर निमित्त का अपमान कर रहा हूँ यानी फिर ऐसी सब भूलें बाहर निकलना है इन सभी भूलों में से इसलिए डिटेल धार्युं छोटे प्रकार का हो बड़े प्रकार का हो बोलो, यह धार्युं करने में क्रोधी-मानी बनता जाता है फिर धार्युं करने में कपटी, मोही बनता जाता है फिर धार्युं करने में पाशवी आनंद लेता रहता है पशु जैसा स्वभाव हो जाता है और यदि भयंकर धार्युं करे तो नर्क में भी जाना पड़ता है, बोलो ऐसे सब दंड आते हैं धार्युं करने के गुनाह से इसलिए आप और धार्युं ज्ञानीपद किसे कहते हैं? कि उनका धार्युं करने का छूट गया है क्योंकि व्यवस्थित ही चलानेवाला है और व्यवस्थित में पूरी ज़िंदगी का हिसाब लिखवाकर लाए हैं तो फिर धार्युं करने का रहा ही कहाँ उदयाधीन बरतते रहें उसे ज्ञानीपद कहते हैं और धार्युं करना यानी ज्ञानी में से अहंकार की सीट पर आ गए और अहंकार में से कर्तापन में और फिर धार्युं करने से क्रोध, मान, कपट, मोह सभी हथियारों का उपयोग करते-करते संसार में डूब गए अब जिसे वापस मुड़ना है उसे इसे छोड़े बगैर चारा ही नहीं है धार्युं करने का... हाँ, इन्फॉर्म सभी को करो आरग्यूमेन्ट नहीं सब को सूचित करके और फिर जैसा योग्य लगे वैसा डिसिज़न सब लें तो फिर उसे फॉलो करो तो आपका कर्तापन धार्युं करना छूट जाएगा और अंत में आपको लक्ष्य में तो रखना जैसा है कि डिसिज़न ले लिया जाता है वह भी व्यवस्थित है और डिसिज़न के अनुसार कार्य होगा वह भी रिज़ल्ट ऑफ साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स व्यवस्थित ही इसलिए इस तरह आप धीरे-धीरे निश्चय पहले नक्की करना है इसमें क्रिया बंद होने में देर लगेगी लेकिन आपकी समझ बदलते-बदलते और जो भी समझ में आया उस पर प्रतीति स्र्ट्रोंग करते जाना है धार्युं करना वह गलत है उस ज्ञान पर श्रद्धा (विश्वास) स्ट्रॉंग रखो और पिछले जन्म में क्या हुआ होता है कि लोगों का देखा होता है कि देखो उनका ऐसा इतने छोटे डेढ़-डेढ़ साल के बच्चे हों न उन्हें भी देखा था यदि एक चॉकलिट नहीं मिले न तो सिर पटकते हैं क्यों? तो धार्युं करने का बवाल यह धार्युं करने का पहला स्टेप क्रोध करते हैं मान, फिर कपट करते हैं फिर रूठ जाते हैं और धार्युं करने के लिए पहले आड़ाईयाँ (अहंकार का टेढ़ापन) करते हैं फिर रूठ जाते हैं फिर त्रागा (अपनी मनमानी, बात मनवाने के लिए किए जानेवाला नाटक) करते हैं फिर बहुत सारे स्टेप होते हैं उसके फिर (तायफा) (फज़ीता, जान-बूझकर किसी को परेशान करने के लिए किया गया नाटक) करते हैं फिर भवाड़ा (फजीहत) करते हैं तरह-तरह का सब सिर्फ यह धार्युं करने के लिए मनुष्य कितना आगे बढ़ जाता है और इस अहंकार का स्वरूप ही ऐसा है कि इन छोटे-छोटे स्टेशनों से शुरू करके धार्युं करने के लिए अंत में बड़े-बड़े गुनाह मोल ले लेते हैं आप जो मिल पर ख़डे हों वहाँ से वापस मुड़ो कि यह आत्मा शुद्धात्मा अनुभव सिवा कुछ नहीं चाहिए और किसी भी रिलेटिव सुख के लिए या मान के लिए या मोह के लिए या विषय के लिए धार्युं नहीं करना है और सहज मिला सो दूध बराबर माँग लिया सो पानी और खींच लिया सो रक्त बराबर धार्युं करना यानी खींच लेना बोलो, सहजता रही ही नहीं और दादा की स्थिति तो हम निरंतर, मन-वचन-काया की सहज स्थिति हम दखल ही नहीं करते क्योंकि व्यवस्थित में लेकर आए हैं पूरी ज़िंदगी का हिसाब फिर माँगने के लिए क्या रहा? धार्युं करना कहाँ रहा? अर्थात् ऐसी स्थिति अपना ध्येय है और आज जहाँ (जिस स्थिति) पर खड़े हैं वहाँ से दादा की स्थिति सहज दशा, अकर्ता भाव वहाँ तक पहुँचना ही है यानी ऐसा अपना ध्येय रखेंगे और धीरे-धीरे वापस मुड़ेंगे एक ही दिन में वापस नहीं आ सकते लेकिन वापस मुड़ने का ध्येय रखेंगे आप हिताहित समझते रहोगे तो वापस मुड़ने की जागृति बढ़ेगी इसलिए आज की सामायिक में स्टडी करके तो देखें और धार्युं करने पर डिटेल में देखेंगे बहुत सारी बातें आपने सुनी हैं समझते भी हैं लेकिन अब जागृतिपूर्वक इस दोष को पहचानेंगे और इसका प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान करके वापस मुड़ेंगे अभी ज़्यादा से ज़्यादा एक सामायिक में इस पर एनैलिसिस कर सकें और दूसरे भाग में धार्युं करके किसे-किसे दुःख दिया उन सब के प्रतिक्रमण कर सकते हैं इस तरह हम सामायिक करेंगे पहले विधि कर लिजीए बोलिए - हे दादा भगवान हे श्री सीमंधर स्वामी प्रभु मुझे शुद्ध उपयोगपूर्वक जीवन के हर एक प्रसंग में जहाँ-जहाँ धार्युं करने का उदय आया है वहाँ-वहाँ जिस-जिस प्रकार के दोष खड़े हुए हैं और धार्युं करके व्यक्तिओं को दुःख पहुँचाए हैं ऐसे सर्व प्रसंगों को अपने दोषों के लिए एनैलिसिस करके और सामनेवाली व्यक्तिओं को दुःख पहुँचाने के लिए प्रतिक्रमण करके सामायिक करने की शक्तियाँ दीजिए मैं मन-वचन-काया मेरे नाम की सर्व माया भावकर्म द्रव्यकर्म नोकर्म हे दादा भगवान आपके सुचरणों में समर्पण करता हूँ जय सच्चिदानंद
and then what is the problem with the inferior and superior [complexities]? when the superior get's his way all the time and the inferior [complexity] can't have his way, then he becomes suppressed. and when the time comes he overturns the other person [with the superior complexity] and struggles to get his own way.
最后更新: 2019-07-06
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