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बंजारा purusotam
banjara purusotam
Ultimo aggiornamento 2015-11-13
Frequenza di utilizzo: 2
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आपको बंजारा बाजार जाना चाहिए
you must go to banjara market
Ultimo aggiornamento 2023-07-24
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तेरी मसूमियात ने हैम बंजारा बीना दीया
teri masumiyat ne hame banjara bna diya
Ultimo aggiornamento 2018-04-06
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मैं बंजारा भाषा में तुमसे प्यार करता हूँ।
i love u in banjara language
Ultimo aggiornamento 2022-05-01
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रूमाल पर होटल बंजारा का चिह्न , नाम अंकित थे ।
the banjara hotel ' s logo and name printed even on that handkerchief stood out , bright and clear .
Ultimo aggiornamento 2020-05-24
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उसके बाद जब हैदराबाद आ गये तो वहॉं बंजारा हिल पर बने हुए एक बंगले का रिहाइश के लिए चुनाव किया ।
at hyderabad , he selected for his residence a bungalow situated on banjara hills .
Ultimo aggiornamento 2020-05-24
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यह घाघरा आज भी अनेक ग्रामीण महिलाओं द्वारा पहना जाता है जिनमें भारत की लंबादी तथा बंजारा घुमंतू जातियां भी सम्मिलित हैं ।
this skirt is still worn by many rural peoples , including the lambadi and banjara gypsies of india .
Ultimo aggiornamento 2020-05-24
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मैं यहाँ आपको उस सेना में भर्ती करने आया हूँ जो मानवों और बाकी प्राणियों की कार्यप्रणालियों को नया आयाम दे रही है। बात पुरानी ही है -- हमने पहले भी थोडी बहुत सुनी है। प्रकृति में सबसे ताकतवर ही ज़िंदा बचता है; कंपनियों और देशों की सफ़लता का आधार है किसी को हराना, बरबाद कर देना, और प्रतिद्वंदी से आगे बढ जाना; राजनीति का अर्थ है जीत - किसी की कीमत पर। पर मुझे लगता है कि हम एक नयी कहानी की शुरुवात होती देख रहे हैं। और ये किस्सा कई सारे क्षेत्रों में आम होता, फ़ैलता दिख रहा है, जिसमें कि सहयोग, सामूहिक कार्य और परस्पर निर्भरता ज्यादा महत्वपूर्ण रोल अदा करते हैं। और वो केंद्रिय, मगर गैर-ज़रूरी, प्रतिस्पर्था का रोल और जीव-जीवस्य-भोजनम ज़रा कोने में को सिमटे-दुबके बैठे हैं। मैनें सोचना शुरु किया इस रिश्ते पर - बातचीत-संचार, मीडिया और सामूहिक कार्य के बीच - जब मैनें 'स्मार्ट मॉब्स' लिखी, और मैं उसके बारे में उसे लिखने के बाद भी सोचता रहा। असल में, अगर आप पीछे जायें, मानव का संवाद, मीडिया और सामाजिक ढाँचे की व्यवस्था के बाकी तरीके कुछ समय से परस्पर विकसित होते रहे हैं। मानवों की उम्र तो बहुत ज्यादा है, उस लगभग १०,००० साल से जिसमे व्यवस्थित कृषि-आधारित सभ्यता चली छोटे परिवारों के रूप में। बंजारे शिकारी के रूप में तो हम खरगोश मारते और खाना बटोरते रहे। उस समय धन-संपत्ति का अर्थ था ज़िंदा रहने भर को खाने का इंतज़ाम। मगर समय के एक बिंदु पर वो एक दल बने बडा शिकार करने के लिये। और हमें ये तो नहीं पता कि ठीक ठीक कैसे ये हुआ, मगर उन्होंने निश्चय ही किसी सामूहिक कार्य-प्रणाली का विकास किया होगा; ज़ाहिर है कि आप हाथी और मैमथ जैसे शिकार नहीं कर सकते यदि आप दल के भीतर ही लडते-भिडते रहें। सही है कि ठीक से कुछ नहीं कहा जा सकता है, मगर ये तो साफ़ है कि कोई नया रूप धन-संपत्ति का ज़रूर निकला होगा। एक शिकारी परिवार के खाने से बहुत ज्यादा खाना आ चुका था। तो इसने एक सामाजिक प्रश्न खडा किया जिसने मेरे हिसाब से कुछ नये सामाजिक समीकरण रचे। क्या ऐसा हुआ कि जो लोग उस शिकार को खाते थे, वो शिकारी परिवारों के एक प्रकार के देनदार बन जाते थे? यदि हाँ, तो कैसी पद्धति बिठायी गयी होगी? कोई सबूत नहीं है मगर ये तो हुआ ही होगा कि किसी तरह की चिन्ह-आधारित संचार प्रणाली रही होगी। ज़ाहिर है कि कृषि के साथ ही पहली बडी सभ्यतायें आयीं, पहले शहर मिट्टी और ईंट से बने, पहले साम्राज्य भी। और इन साम्राज्यों के प्रबंधकों ने ही लोगों को नौकरी दी गेहूँ, भेडों, और शराब की देनदारी का हिसाब रखने के लिये, और कर का हिसाब रखने के लिये कुछ चिन्ह बना कर जो उस समय मिट्टी के बने होते थे। जल्द ही, अक्षर ईज़ाद हुये। और इस महान नुस्खे को, हज़ारों सालों तक, आरक्षित रखा गया उन संभांत आकाओं के लिये (हँसी) जो साम्राज्यों का हिसाब रखते थे। और फ़िर एक नयी संचार तकनीक नें नयी मीडिया का सशक्तीकरण किया: प्रिंटिंग प्रेस आ गयी, और कुछ ही दशकों में, दसियों लाख लोग पढना-लिखना सीख गये। और इस साक्षर जमात से सामूहिक कार्यों के कई नये रूप उभरे - ज्ञान के क्षेत्र में, धर्म और राजनीति के क्षेत्र में। हमनें वैज्ञानिक क्रांतियाँ देखीं, प्रोटेस्टेंट उद्धार देखा, संवैधानिक प्रजातंत्र को वहाँ आते देखा जहाँ पहले वो नामुमकिन थे। प्रिंटिंग प्रेस ने ये नहीं कर डाला, ये हुआ उस सामूहिक कार्य से जो साक्षरता से जन्मा था। और एक बार फ़िर, धन-संपत्ति का नया रूप उभरा। देखिये, व्यापार तो पुरातन है। बाज़ारें भी इतिहास जितनी पुरानी हैं। मगर पूँजीवद, जिस रूप में हम उसे जानते हैं, केवल कुछ ही साल पुराना है, परस्पर सहयोग और तकनीकों पर टिका, जैसे कि कोई कंपनी जिसके कई हिस्सेदार हों, सामूहिक जोखिम वाले बीमे जैसा, या फ़िर डबल-एंट्री अकाउंटिंग जैसा। आज तो निश्च्य ही, संबल देने वाली तकनीक इंटरनेट आधारित हैं, और असीमित तंत्रजाल के ज़माने में, हर डेस्क्टॉप कंप्यूटर खुद में एक प्रिंटिंग प्रेस है, एक प्रसारण केंद्र, एक संप्रदाय, या एक बाज़ार। विकास की गति निरंतर बढ रही है। आजकल तो मामला डेस्कटॉप से हट कर आगे बढ गया है, और बहुत ही जल्दी, हम देखेंगे कि ज्यादातर लोग, अगर सब के सब मानव नहीं, घूमते दिखेंगे, किसी सुपर-कंप्यूटर को लिये हुए या पहने हुए जुडे हुए, ज़बरदस्त स्पीड से जिसे हम आजकल ब्रोडबैंड कहते हैं। जब मैं इस सामूहिक कार्य के विषय पर गहरे गया, मैनें पाया कि ज्यादातर शोध उस चीज पर आधारित है जिसे समाज-विज्ञानी 'सामाजिक कश्मकश' कहते हैं। और इस सामाजिक कश्मकश के कई रोचक उदाहरण हैं मैं उन में से दो को यहाँ संक्षेप में बताऊँगा: कैदी की क्श्मकश (prisoner's dilemma) और सामूहिक त्रासदी (tragedy of the commons). केविन कैली ने मुझे बताया कि आप में ज्यादातर जानते हैं कि कैदी की कश्मकश किसे कहते हैं, इसलिये मैं फ़टाफ़ट थोडे में ही उस के बारे में बता देता हूँ। अगर आप के कोई प्रश्न हों तो, कृप्या केविन कैली से पूँछें। (हँसी) कैदी की क्श्मकश असल में एक कहानी है जिसे गेम थियरी से निकली गणित की एक मैट्रिक्स पर रखा गया है। ये थ्योरी परमाणु युद्ध के बारे में प्रारंभिक सोच से निकली थी: दो खिलाडी है जिन्हें एक दूसरे पर विश्वास नहीं है। ऐसे समझिये कि सारे गैर-गारंटी लेन-देन कैदी की कश्मकश के ही उदाहरण हैं। एक व्यक्ति जिसके पास माल है, दूसरा जिसके पास पैसा है। क्योंकि उन्हें परस्पर विश्वास नहीं है, वो सौदा नहीं करेंगे। कोई भी पहला कदम नहीं लेना चाहता है क्योंकि हो सकता है वहाँ धोखा मिले, मगर दोनो ही नुकसान में हैं, ज़ाहिर है, दोनों का ही ध्येय पूरा नहीं हो पाता है। यदि वो मान जायें, और कैदी की कश्मकश को किसी आश्वासन पैदा करने वाले तरीके से जोड दें, तो वो आगे बढ सकते हैं। बीस साल पहले, राबर्ट एक्सलरोड ने कैदी की कश्मकश को प्राकृतिक विकास के प्रश्न पर लागू किया था: यदि हम भीषण प्रतिस्पर्धियों की संतानें हैं, तो सहयोग नाम की चिडिया होती ही क्यों है? तो उन्होंने एक कंप्यूटर टूर्नामेंट आयोजित किया जहाँ लोग कैदी की कश्मकश की समस्या के हल और योजानायें जमा करते थे, उन्हें आश्चर्य हुआ क्योंकि एक बहुत ही साधारण सी युक्ति की जीत हुई -- उसने पहला टूर्नामेंट जीता, और सबके सामने आने के बाद भी, फ़िर से उस ने दूसरा टूर्नामेंट भी जीत लिया -- जस को तस। एक और अर्थ-शास्त्र से जुडा गेम है जो कैदी की कश्मकश जितना मशहूर नहीं है आख़िरी शर्त का खेल, और ये भी बहुत ही रोचक है ये जानने में कि आखिर लोग कैसे रुपये-पैसे से जुडे फ़ैसले लेते हैं। तो खेल कुछ ऐसा है: दो खिलाडी हैं: उन्होंने ये खेल पहले कभी साथ में नहीं खेला है, वो दुबारा भी साथ कभी नहीं खेलेंगे, वो एक दूसरे को जानते भी नहीं हैं, और असल में, वो अलग अलग कमरों में बैठे हैं। पहले खिलाडी को सौ रुपये दिये जाते हैं और उन्हें दो हिस्सों में बाँटने को कहा जाता है:
i'm here to enlist you in helping reshape the story about how humans and other critters get things done. here is the old story -- we've already heard a little bit about it: biology is war in which only the fiercest survive; businesses and nations succeed only by defeating, destroying and dominating competition; politics is about your side winning at all costs. but i think we can see the very beginnings of a new story beginning to emerge.
Ultimo aggiornamento 2019-07-06
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