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"अपने आप को परमेश्वर के गुणों से सजाओ". और क्योंकि परमेश्वर ने खुद कहा है कि करुणा उनकी प्राथमिक गुण है , वास्तव में, कुरान में कहा गया है कि, "ईश्वर ने खुद पर करुणा का नियम बनाया ," या, "करुणा के राजत्व में रहे" इसलिए, हमारा उद्देश्य और हमारा लक्ष्य करुणा का स्रोत करुणा के उत्प्रेरक, करुणा के पात्र , करुणा के वक्ता और करुणा के कर्ता बनना होना चाहिए. यह सब तो ठीक है, पर हम गलत कहाँ हो जाते हैं, और दुनिया में करुणा की कमी का स्रोत क्या है? इसका जवाब जानने के लिए, हमे मुड़ कर देखना होगा अपने आध्यात्मिक पथ की ओर हर धार्मिक परंपरा में एक बाहरी और एक आंतरिक पथ होता हैं, या कहें की भीतर की चेतना और बाहर की चेतना का पथ भीतर की चेतना के पथ को इस्लाम में सूफ़ीवाद, या अरबी में तसव्वुफ़ कहा जाता है और ये हकीम या ये गुरु, सूफी परंपरा के ये आध्यात्मिक गुरु, हमारे पैगम्बर की शिक्षाओं और उदाहरणों को उद्धृत करते हैं, जो हमें सिखाता है कि हमारी समस्याओं का स्रोत कहाँ है, पैगम्बर ने जो युद्ध लड़े उनमें से एक में, उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा, "हम छोटे युद्ध से लौट रहे हैं एक बड़ी लड़ाई, एक बड़े युद्ध की ओर." और उन्होंने कहा, " ईश्वर के सन्देश वाहक, हम युद्ध से थक चुके हैं, हम एक बड़े युद्ध में कैसे जा सकते हैं?" उन्होंने कहा, "यह आत्म की लड़ाई है, अहंकार की लड़ाई है." मनुष्य की समस्याओं के स्रोत का लेना देना अहंकारवाद से है. मैं. प्रख्यात सूफी गुरु रूमी, आप में से ज्यादातर जिसे अच्छी तरह जानते हैं. की एक कहानी है जिसमे वह एक आदमी की बात करते हैं जो अपने एक दोस्त के घर जाता है और दरवाज़ा खटखटाता है, और एक आवाज़ जवाब देती है, " कौन है?" "हम हैं", या व्याकरण के लिहाज से ज्यादा सही, "यह मैं हूँ." जैसा कि हम अंग्रेजी में कह सकते हैं. वह आवाज़ कहती है,"चले जाओ." कई वर्षों के प्रशिक्षण, अनुशासन, खोज और संघर्ष, के बाद, वह वापस आता है, और काफी ज्यादा विनम्रता से फिर दरवाजा खटखटाता है वह आवाज़ पूछती हैं "कौन है वहां?" वह कहता है, "ये तुम हो, ओ दिल तोड़ने वाले." दरवाज़ा खुलता है और आवाज़ कहती है,
"adorneu-vos amb els atributs de déu." i perquè deu mateix va dir que el seu primer atribut és la seva compassió, de fet, l'alcorà diu que "déu es va decretar la compassió a si mateix" o que "va regnar sobre si mateix per la compassió." per tant, el nostre objectiu i la nostra missió ha de ser per força ésser fonts de compassió, activadors de la compassió, actors de compassió, i portaveus de compassió, i activistes de la compassió.