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a koji se sumnja osudjen je ako jede, jer ne čini po veri: a šta god nije po veri greh je.
परन्तु जो सन्देह कर के खाता है, वह दण्ड के योग्य ठहर चुका, क्योंकि वह निश्चय धारणा से नहीं खाता, और जो कुछ विश्वास से नहीं, वह पाप है।।
ili kad kome dodje sumnja ljubavna te posumnja iz ljubavi na ženu svoju i postavi je pred gospodom i svrši joj sveštenik sve po ovom zakonu.
चाहे पुरूष के मन में जलन उत्पन्न हो और वह अपनी स्त्री पर जलने लगे; तो वह उसको यहोवा के सम्मुख खड़ी कर दे, और याजक उस पर यह सारी व्यवस्था पूरी करे।
ali neka ište s verom, ne sumnjajući ništa; jer koji se sumnja on je kao morski valovi, koje vetrovi podižu i razmeću.
पर विश्वास से मांगे, और कुछ सन्देह न करे; क्योंकि सन्देह करनेवाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है।
metni me kao pečat na srce svoje, kao pečat na mišicu svoju. jer je ljubav jaka kao smrt, i ljubavna sumnja tvrda kao grob; žar je njen kao žar ognjen, plamen božji.
मुझे नगीने की नाईं अपने हृदय पर लगा रख, और ताबीज की नाई अपनी बांह पर रख; क्योंकि प्रेम मृत्यु के तुल्य सामर्थी है, और ईर्षा कब्र के समान निर्दयी है। उसकी ज्वाला अग्नि की दमक है वरन परमेश्वर ही की ज्वाला है।
a njemu bi došla sumnja ljubavna, te bi iz ljubavi sumnjao na svoju ženu, a ona bi bila oskvrnjena; ili bi mu došla sumnja ljubavna te bi iz ljubavi sumnjao na svoju ženu, a ona ne bi bila oskvrnjena,
और उसके पति के मन में जलन उत्पन्न हो, अर्थात् वह अपने स्त्री पर जलने लगे और वह अशुद्ध हुई हो; वा उसके मन में जलन उत्पन्न हो, अर्थात् वह अपनी स्त्री पर जलने लगे परन्तु वह अशुद्ध न हुई हो;
(smeh) postoji li bilo kakva sumnja u to da postoji odgovor na ovo pitanje i da je on bitan? sad, mnogi od vas možda brinu da je ideja dobrobiti zapravo nedefinisana i naizgled otvorena za rekonstrukciju.
(हंसी) क्या कोइ शक है कि इस सवाल का जवाब है, और वह अहम है ? अब, आपमें से काफी लोगों को चिंता होगी कि मानव कल्याण के इस विचार कि सही परिभाषा देना असंभव है, और पुनर्विचार के लिए यह सदा खुला है_bar_ तो फिर, मानव कल्याण की एक प्रमाणिक संकल्पना कैसे हो सकती है ? ठीक है ,अनुरूपता के तौर पर विचार कीजिये आरोग्य की संकल्पना की _bar_ आरोग्य की संकल्पना अपरिभाषित है _bar_ जैसे हमने अभी माइकल स्पेक्टर से सुना, यह सालों से बदलती आ रही है _bar_ जब इस मूर्ति को तराशा गया था, तब औसत जीवनकाल शायद 30 साल था_bar_ अब विकसित विश्व में यह 80 के आस-पास है _bar_ एक समय आ सकता है जब हम हमारे जीनोम में इस प्रकार के अदल-बदल करेंगे कि , 200 की उम्र में मैराथन न भाग पाना एक गंभीर विकलांगता मानी जाएगी _bar_ जब आप उस अवस्था में हैं, तो लोग आपकी सहायता के लिए दान भेजेंगे _bar_ (हंसी ) इस बात पर गौर कीजिए कि ये सच है कि आरोग्य की संकल्पना खुली है, सचमुच खुली है संशोधन के लिए, मगर इससे यह अर्थहीन नहीं हो जाती _bar_ एक आरोग्यवान व्यक्ति और मृत व्यक्ति के बीच का अंतर लगभग उतना ही साफ़ और निर्णायक है जैसे कि विज्ञान मे होता है _bar_ गौर करने की एक और चीज़ यह है कि नैतिक क्षेत्र में अनेक शिखर हो सकते हैं - अनेक विकल्प हो सकते हैं सम्पन्नता पाने के तरीकों में ; अनेक विकल्प हो सकते हैं मानवीय समाज को संगठित करने में, ताकि सर्वाधिक मानवीय समृद्धि प्राप्त हो _bar_ अब, इससे एक वस्तुगत और नियमबद्ध नैतिकता को क्यों कोई ठेस नहीं पहुँचती? जरा सोचिए हम भोजन के विषय में कैसी चर्चा करते हैं ; मैं यह कभी आशा नहीं करूंगा आपके सामने यह तर्क रखने, कि एक ही पदार्थ खाने योग्य है _bar_ यह साफ है कि एक श्रेणी है जिसमें अनेक पदार्थ हैं जो आरोग्यवान भोजन हैं _bar_ मगर निस्संदेह एक साफ फर्क है भोजन और विष में _bar_ यह बात कि "भोजन क्या है ?" इस प्रश्न के अनेक उत्तर हैं, हमें यह कहने के लिए नहीं उकसाता कि मानवीय पोषण के विषय में जानने के लिए कोई सत्य नहीं हैं _bar_ बहुत लोगों को यह चिंता है कि एक सार्वलौकिक नैतिकता को आवश्यकता होगी ऐसे निर्देशों की जिनके अपवाद ही न हों _bar_ तो, उदाहरण के लिए, अगर झूट बोलना सचमुच गलत है, तो झूट बोलना हमेशा गलत होना चाहिए, अगर अप इसका एक भी अपवाद प्रस्तुत कर सकते हैं, तो फ़िर नैतिक सत्य नाम की कोई चीज़ है ही नहीं _bar_ हम ऐसा क्यों सोचते हैं ? विचार कीजिए , उदाहरण के तौर पर, शतरंज के खेल के बारे में _bar_ अब अगर आप अच्छा शतरंज खेलना चाहेंगे, तो एक आदर्श, जैसा कि "अपना वज़ीर मत खोना", मानने लायक है _bar_ मगर साफ है कि इसके कई अपवाद हैं _bar_ कुछ क्षण ऐसे हैं जब वज़ीर को खोना बड़ी चतुर चाल होगी _bar_ कुछ क्षण ऐसे हैं जब वही एक भली चाल है जो आप चल सकते हैं _bar_ फिर भी , शतरंज एक संपूर्णतः नियमबद्ध क्षेत्र है _bar_ यह हकीकत कि यहाँ कई अपवाद हैं, इस नियमबद्धता में कोई बदलाव नहीं लाती _bar_ अब यह हमें उस तरह की चालों की ओर ले जाता है जो कि लोग नैतिक मंडल में चलने मे निपुण हैं_bar_ विचार कीजिए इस गंभीर समस्या की, महिलाओं के शरीरों की - हम क्या करें इनके बारे में ? एक चीज़ तो हम कर सकते हैं - उन्हें पूरी तरह ढँक सकते हैं _bar_ अब, यह मत है, आम तौर पर, हमारे बुद्धिजीवी समुदाय का, कि भले ही हमें यह पसंद न हो, और हम बोस्टन और पालो अल्टो में इसे अनुचित समझते हों, हम कौन होते हैं एक प्राचीन सभ्यता के निवासियों से कहनेवाले कि उनकी बीवियों और बेटियों को कपडे की बोरियों में रहने पे मजबूर करना गलत है ? और हम होते कौन हैं यह कहने भी वाले कि वे गलत हैं उनपर लोहे की रस्सियो से वार करने में, या उनके चेहरों पर बैटरी अम्ल फेकने में, जब वे (महिलाएं) इस तरह की दम घोंटने वाली सुविधा को अस्वीकार करती हैं ? सचमुच, हम कौन होते यह नहीं कहने वाले ? हम कौन होते हैं ऐसे ढोंग करनेवाले कि हम मानव कल्याण के विषय में इतने अज्ञानी हैं कि हम ऐसी प्रथा के बारे मैं अनिश्चित हों ? मैं स्वेच्छा से पर्दा धारण करने की बात नहीं कर रहा हूँ - महिलाएं को जो वे चाहें पहन सकना चाहिए, जहां तक मेरा इससे कोइ लेना-देना है _bar_ मगर स्वेच्छा क्या मतलब रखती है ऐसे समाज में, जहां जब किसी लडकी के साथ बलात्कार होता है, तब उसके बाप की प्रथम उत्तेजना, काफी अक्सर, लज्जावश उसकी हत्या करने की है ? इस हकीकत का पलभर के लिए अपने मन में विस्फोट होने दीजिए - आपकी बेटी के साथ बलात्कार होता है, और आपका रवैय्या है कि आप उसका खून कर दें _bar_