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lost in a world that doesn't exist
एक ऐसी दुनिया में खो गया जो अस्तित्व में नहीं है
Last Update: 2023-04-29
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lost in a world of grey
एक ऐसी दुनिया में खो गया जो मेरे दर्द को नहीं जानती
Last Update: 2024-12-25
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we are living in a world that is complex and challenging .
हम आज ऐसे विश्व में रह रहे हैं जो कि जटिल है और चुनौतीपूर्ण है ।
Last Update: 2020-05-24
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no country can afford to take a narrow view of its own interests , since it has to live in a world that is closely interlinked .
कोई भी देश अपने हितों को एक संकीर्ण दायरे में रखकर काम नहीं चला सकता क्योंकि आज सभी देश किसी न किसी रूप में परस्पर सम्बद्ध हैं ।
Last Update: 2020-05-24
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it is right and proper that this class should completely lose its identity and prepare to merge in the classless society in a world that is yet to be .
यह उचित और सही होगा कि यह वर्ग अपनी पहचान खोकर आनेवाली दुनिया के वर्गहीन समाज में मिल जाने की तैयारी करे ।
Last Update: 2020-05-24
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religion with a capital r is the most defining - and destabilising - force in a world that has emerged out of the wreckage of ideology .
विचारधारा के मलबे पर तैयार हे विश्व में अपनी पूरी धमक के साथ उपस्थित होने वाल धर्म ही सबसे बड़ पैमाना - और अस्थिरता फैलने वाल कारक भी - बन गया है .
Last Update: 2020-05-24
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ifthemahabharatainstilled in us the values of forbearance , generosity and familial virtues , the ramayanagave us images of filial , conjugal , and fraternal love in a world that treasured the welfare of all human beings .
जहां महाभारतने हमारे अंदर सहनशीलता , दयालुता तथा पारिवारिक मूल्यों का समावेश किया है वहीं रामायण ने हमें एक ऐसी दुनिया में वात्सल्य , दाम्पत्य तथा भ्रातृत्व प्रेम का दर्शन कराया है जिसमें मानव जाति के कल्याण को महत्त्वपूर्ण माना जाता है ।
Last Update: 2020-05-24
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but if it is often difficult for the mental life to accommodate itself to the dully resistant material activity , how much more difficult must it seem for the spiritual existence to live on in a world that appears full not of the truth but of every lie and illusion , not of love and beauty but of an encompassing discord and ugliness , not of the law of truth but of victorious selfishness and sin ?
किन्तु यदि मानसिक जीवन अपने - आपको स्थूल रूप से प्रतिरोधकारी भौतिक क्रिया के अनुकूल बनाने में बहुधा कठिनाई अनुभव करता है तो आध्यात्मिक जीवन के लिये एक ऐसे जगत् में निवास करना कितना अधिक कठिन प्रतीत होगा जो सत्य में नहीं , बल्कि प्रत्येक झूठ और भ्रान्ति से , प्रेम और सौन्दर्य से नहीं , बल्कि सर्वग्रासी विरोध और कुरूपता से , सत्य के नियम से नहीं , बल्कि विजयी स्वार्थ और अधर्म से परिपूर्ण है ?
Last Update: 2020-05-24
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how often do we hear that people just don't care? how many times have you been told that real, substantial change isn't possible because most people are too selfish, too stupid or too lazy to try to make a difference in their community? i propose to you today that apathy as we think we know it doesn't actually exist; but rather, that people do care, but that we live in a world that actively discourages engagement by constantly putting obstacles and barriers in our way.
हम अक्सर सुनते हैं कि लोगों को कोई फ़र्क नहीं पडता। कितनी बार आपको बताया गया है कि वास्तविक और ठोस बदलाव संभव ही नहीं है क्योंकि ज्यादातर लोग इतने स्वार्थी, या बेवकूक, या आलसी हैं कि अपने समाज के बारे में बिलकुल नहीं सोचते? आज मैं आपसे यह कहना चाहता हूँ कि उदासीनता को जिस रूप में हम जानते हैं, उदासीनता वैसी नहीं है, बल्कि, मैं कहता हूँ लोगों को फ़िक्र है, मगर हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जो कि तत्परता से भागीदारी को हतोत्साहित करती है, लगातार हमारे रास्ते में रोडे-रुकावटें पैदा कर के। और मैं आपको इस का उदाहरण देता हूँ। टाउन-हाल से शुरु करते हैं। इन में से एक आपने पहले देखा ही होगा? ये एक अखबारी विज्ञापन है। ये एक नयी ऑफ़िस की इमारत बनाने के लिये क्षेत्रीकरण बदलने का नोटिस है जिस से कि आसपडोस वाले जान जायें कि क्या हो रहा है। जैसा कि आप देख रहे है, इसे पढना नामुमकिन है। आपको कम से कम आधे पन्ने तक जाना होगा सिर्फ़ ये जानने के लिये कि बात कहाँ की हो रही है, और फ़िर और नीचे, एकदम चींटीं बराबर अक्षरों में पढना होगा कि आप कैसे हिस्सेदारी निभा सकते हैं। सोचिये यदि निज़ी कंपनियों के विज्ञापन ऐसे होते -- अगर नाइकी एक जोडी जूते बेचना चाहता और अखबार में ऐसा विज्ञापन निकालता। (ठहाका) और ऐसा कभी भी नहीं होगा। आप को कभी भी ऐसा विज्ञापन देखने को नहीं मिलेगा, क्योंकि नाइकी वाकई चाहता है कि उसके जूते बिकें। लेकिन टोरंटों शहर की सरकार , ज़ाहिर तौर पर, नहीं चाहती कि आप योजना में शामिल हों, नहीं तो उनके विज्ञापन कुछ इस तरह के दिखते -- सारी जानकारी सुचारु रूप से प्रस्तुत की गयी होती। जब तक शहर की सरकार ऐसे नोटिस निकालती रहेगी लोगों से भागीदारी माँगने के लिये, तब तक लोग, बिलकुल भी, शामिल नहीं होंगे। लेकिन ये उदासीनता नहीं है; ये जानबूझ कर आपको हटाया जा रहा है। सार्वजनिक स्थान। (ठहाका) हमारे द्वारा की जाने वाली सार्वजनिक स्थानों की बेकद्री भी बहुत बडी रुकावट है, किसी भी प्रगतिवादी राजनैतिक बदलाव के रास्ते में। क्योंकि हमने असल में अभिव्यक्ति की कीमत लगा दी है। जिसके पास सबसे ज्यादा पैसा है, उस की आवाज़ सबसे ऊँची हो जाती है, और वो पूरे दृश्य और मानिसिक परिवेश पर छा जाता है। इस मॉडल के साथ समस्या ये है कि कुछ ऐसे संदेश हैं जिन्हें जनता तक पहुँचाना अनिवार्य है मगर मुनाफ़े के हिसाब से फ़ायदेमंद नहीं है। इसलिये वो संदेश कभी भी आपको होर्डिंग पर नहीं दिखेंगे। मीडिया की भारी भूमिका है राजनैतिक बदलाव से हमारी रिश्तेदारी विकसित करने में, मुख्यतः ज़रूरी राजनैतिक आंकलन को नज़रअंदाज़ कर के, स्कैंडलों और सेलिबिट्रियों के समाचारों पर केंद्रित हो कर। और जब वो बात करते भी हैं महत्वपूर्ण मुद्दों पर, तो ऐसे कि लोग हिस्सेदारी निभाने से कतराने लगें। और मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ: द नाओ मैगज़ीन पिछले हफ़्ते की -- टोरंटो की प्रगतिवादी, शहरी साप्ताहिक मैगज़ीन। ये इसकी कवर स्टोरी है। ये एक थियटर प्रस्तुति की रपट है, और ये उसके बारे में मूल जानकारी से शुरु होती है कि ये कहाँ होगी,
Last Update: 2019-07-06
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