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travelling develops our knowledge and our look
यात्रा हमारे ज्ञान और बाहर डाल विकसित करती है
Last Update: 2024-04-08
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so indeed we shall inform them with our knowledge and we were not absent .
फिर हम उनसे हक़ीक़त हाल ख़ूब समझ बूझ के दोहराएगें
Last Update: 2020-05-24
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we must pass on our knowledge and skills by educating the next generation of taxonomists .
हमें वर्गीकरण वैज्ञानिकों की अगली पीढ़ी को शिक्षित करके ज्ञान व निपुणता को आगे बढ़ाना चाहिए .
Last Update: 2020-05-24
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it is our earnest desire to share our knowledge and expertise with friendly countries like yours - especially where these can be adopted to promote sustainable development .
हमारी यह हार्दिक इच्छा है कि हम आप जैसे मित्र राष्ट्रों के साथ अपना ज्ञान और कौशल बांटें , खासकर वहां जहां इनका अनुकूलन सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है ।
Last Update: 2020-05-24
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there intervenes , third , uplifting our knowledge and effort into the domain of spiritual experience , the direct suggestion , example and influence of the teacher guru .
तीसरा , गुरु , गुरु का साक्षात् निर्देश , दृष्टान्त और प्रभाव जो हमारे ज्ञान और प्रयत्न को आध्यात्मिक अनुभूति के क्षेत्र में ऊपर उठा ले जाते हैं ।
Last Update: 2020-05-24
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it supplements our knowledge , and adds to our understanding , of the role of this premier rajput state in mughal history which is described in history of aurangzib and fall of the mughal empire .
औरंगज़ेब का इतिहास और मुगल साम्राज्य का पतन में वर्णित इस प्रमुख राज्य की भूमिका के बारे में यह पुस्तक हमारी जानकारी और समझ को नये आयाम देती है ।
Last Update: 2020-05-24
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if the world and our own existence are so complex , we must know and embrace their complexities in order that our self - knowledge and our knowledge of the dealings of purusha with its prakriti may be complete .
यदि जगत् और हमारा अपना जीवन इतने जटिल हैं तो हमें उनकी जटिलताओं को जानना तथा अंगीकार करना होगा जिससे हमारा आत्मज्ञान एवं पुरुष और प्रकृति के सम्बन्धों का ज्ञान पूर्ण हो सके ।
Last Update: 2020-05-24
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prior to the dawn of western civilization and written language science and spirituality were not two separate things. in the teachings of the great ancient traditions the outer search for knowledge and certainty was balanced by an inner feeling of impermanence and intuitive understanding of the spiral of change. as scientific thinking became more dominant and information multiplied, fragmentation began to occur within our knowledge systems.
पश्चिमी सभ्यता और लिखित भाषा के प्रारंभ से पूर्व, विज्ञान एवं आध्यात्मिकता दो अलग धाराएं नहीं थीं । महान प्राचीन परंपराओं की शिक्षाओं में ज्ञान तथा निश्चिंतता के लिए बाहरी खोज परिवर्तन के सर्पिल की नश्वर एवं अंतर्दर्शी समझ की आंतरिक अनुभूति द्वारा संतुलित थी । जैसे ही वैज्ञानिक चिंतन अधिक प्रभावी हुआ और सूचना में अत्यधिक भरमार हुई, वैसे ही हमारे ज्ञानतंत्र के अंदर विखंडन आरंभ हुआ । बढ़ती हुई विशेषज्ञता का यह अर्थ हुआ कि कम लोग अनुभूति का विशाल चित्र एवं समग्र रूप में तंत्र की अंतदर्शी एवं सौंदर्य चेतना को देखने के योग्य थे । किसी ने नहीं पूछा कि "क्या यह सब सोचना हमारे लिए अच्छा है ?" प्राचीन ज्ञान हम लोगों के बीच में है । प्रत्यक्ष दृष्टि से ओझल। परंतु हम अपने पूर्व विचारों से भरे हैं जिसके कारण इसे पहचान नहीं पा रहे हैं। यह विस्मृत बुद्धिमत्ता ही आंतरिक एवं बाहरी के बीच संतुलन बिठाने का मार्ग है । यिन एवं यांग । परिवर्तन के सर्पिल तथा हमारे अभ्यांतर में स्थिरता के बीच । ग्रीक दंतकथा में, अपोलो चिकित्सा के देव असलेपियस का पुत्र था। चिकित्सा में उसकी बुद्धिमता एवं कुशलता का कोई सानी नहीं था और कहा जाता है कि उसने जीवन एवं मृत्यु का रहस्य खोजा । प्राचीन ग्रीस में एसक्लेपियन के चिकित्सा मंदिरों ने आदिम सर्पिल की शक्ति को मान्यता दी । जिसे एक्लेपियस की छड़ द्वारा प्रतीक के रूप में समझा जाता है, औषध के पिता हिप्पोक्रेट्स ने, जिसकी शपथ चिकित्सा पेशे की आज भी आधार संहिता है, एसीपीयन मंदिर में अपना प्रशिक्षण प्राप्त किया । आज भी हमारी विकासात्मक ऊर्जा का यह प्रतीक अमरीकन चिकित्सा एसोसिएशन तथा विश्वव्यापी अन्य चिकित्सा संगठनों के प्रतीक के रूप में है । इजिप्ट के प्रतिमा विज्ञान में, सर्प एवं पक्षी मानवीय प्रकृति की गुणवत्ता तथा ध्रुवत्व का प्रतिनिधित्व करता है । सर्प की अधोगामी दिशा, विश्व की विकासात्मक ऊर्जा का प्रत्यक्ष सर्पिल रूप है । पक्षी उर्ध्वगामी दिशा में है - सूर्य या जागृत एकमात्र के केन्द्रित संचेतनता की ओर उन्मुख ऊर्ध्वगामी बहाव; आकाश की शून्यता । फारौस तथा ईश्वर जागृत ऊर्जा से चित्रित किए जाते हैं जहां कुंडलिनी सांप मेरुदंड की ओर जाती है और नेत्रों के बीच 'अज्ञान चक्र' भेदती है । इसे होरस के नेत्र के रूप में उल्लिखित किया जाता है । हिन्दू परंपरा में बिंदी तीसरे नेत्र का भी प्रतीक है; आत्मा से दिव्य संबंध । राजा टुटनखमुन का मुखावरण पुरातन उदाहरण है जिससे सर्प एवं पक्षी, दोनों के मूलभाव का पता चलता है । मयन और अजटेक परंपराएं सर्प एवं पक्षी के मूलभाव को एक ईश्वर में समन्वित करती हैं । क्यूटजलकोट्ल या कुकुल्कन । पर से सुशोभित दैवी सर्प जागृत विकासात्मक सचेतनता या जागृत कुंडलिनी का प्रतीक है । व्यक्ति का स्वयं में क्यूटजलकोट्ल को जागृत कर लेना, दिव्यता का जीवंत प्रकटीकरण है । कहा जाता है कि क्यूटजलकोट्ल या सर्पिल ऊर्जा, काल की समाप्ति पर वापस लौटेगी । सर्प तथा पक्षी के प्रतीक ईसाई धर्म में भी देखे जा सकते हैं । उनका सच्चा अर्थ अधिक गहन में हो सकता है, पर इसका अर्थ अन्य प्राचीन परंपराओं के समान ही है । ईसाई धर्म में, पक्षी या कपोत प्राय: ईसा के सिर पर देखा जा सकता है जो छठे चक्र और उससे आगे बढ़ते समय पवित्र आत्मा या कुंडलिनी शक्ति दर्शाता है। ईसाई धर्म के रहस्यवादियों ने कुंडलिनी को पवित्र आत्मा कह कर अन्य नाम से पुकारा। जान 3:12 में कहा गया है "और जैसे मोसेस ने बीहड़ में सर्प का उत्थान किया उसी तरह मनुष्य के पुत्र का भी उत्थान किया जाए" जीसस तथा मोसेस ने अपनी कुंडलिनी ऊर्जा को जागृत करते हुए अचेतन रेंगने वाली शक्तियों को जागृत सचेतनता की ओर उन्मुख किया, जिससे मानवीय लालसा संचालित होती है । कहा जाता है कि यीशू ने निर्जन में चालीस दिन और चालीस रातें बिताईं, इस दौरान उन्हें शैतान द्वारा प्रलोभित किया गया । इसी प्रकार, बुद्ध को 'मरा' द्वारा प्रलोभन दिया गया और उन्होंने बौद्धिवृक्ष या बुद्धिमत्ता वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया । ईसा मसीह और बुद्ध, दोनों प्रलोभन या ऐन्द्रिक आनंद व सांसारिक लोभों से दूर रहे । प्रत्येक कहानी में, दानवी वृत्ति, व्यक्ति के अपने मोह का मानवीकरण ही है । यदि हम वैदिक और मिस्र की परंपराओं के प्रकाश में आदम और हव्वा की कहानी पढ़ते हैं तो हम पाते हैं कि जीवन वृक्ष के लालच और प्रलोभन का प्रतिनिधित्व करता है । आंतरिक संसार के ज्ञान से हमारा ध्यान भंग करते हुए ज्ञान का वृक्ष हमारे भीतर है । अपने अहं के पोषण तथा बाहरी आकर्षणों के फेर में पड़कर हम अपने आंतरिक जगत की जानकारी से कट जाते हैं और आकाश तथा बुद्धिमता स्रोत से हमारा संपर्क टूटने लगता है । पर वाले सर्पों (ड्रैगन) के बारे में विश्व के कई ऐतिहासिक मिथकों को, संस्कृतियों की आंतरिक ऊर्जा के रूपकों के रूप में पढ़ा जा सकता है, जिसमें उन्हें अंत: स्थापित किया गया है। चीन में, पर वाला सर्प अभी भी पवित्र प्रतीक है जो प्रसन्नता का प्रतिनिधित्व करता है । मिस्र के फरोहा की भाँति, विकासात्मक ऊर्जा को जागृत करने वाले प्राचीन चीनी शासकों का प्रतिनिधित्व, पंख वाले सर्प या ड्रैगन द्वारा किया गया। जेड शासक या सेलेस्टियल शासक के शाही कुलचिह्न इड़ा और पिंगला के समान संतुलन दर्शाते हैं । शंकुरूप केन्द्र को जागृत करने वाले ताओवादी यिन एवं यांग या जिसे ताओवाद में उच्च डेंटियन कहा जाता है। प्रकृति विभिन्न प्रकार के अभिज्ञान और आत्म साक्षात्करण के प्रकाश से परिपूर्ण है । उदाहरण के लिए, समुद्र की जलसाही दरअसल अपने नुकीले शरीर से देख सकती है, जो एक बड़े नेत्र के रूप में कार्य करता है। जलसाही अपने रीढ़ पर आघात करने वाले प्रकाश का अभिज्ञान करती है और अपने परिवेश की चेतना अनुभव करने के लिए किरणपुंज की सघनताओं की तुलना करती है । हरी गोह तथा अन्य रेंगनेवालों जीव के सिर के ऊपर भित्तीय आंख या शंकुरूप ग्रंथि होती है जिससे वे ऊपर से परभक्षी का पता लगाते हैं। मानव शंकुरूप ग्रंथि एक लघु अंत:स्रावी ग्रंथि होती है जो चलने एवं सोने की क्रियाएं विनियमित करती है । यद्यपि यह सिर की गहराई में गड़ी होती हैं, तथापि शंकरूप ग्रंथि प्रकाश के प्रति संवेदनशील होती है । दार्शनिक डिसकार्टस ने माना कि शंकरूप ग्रंथि स्थल या तीसरी आंख, चेतनता तथा पदार्थ के बीच अंतरापृष्ठ है । प्राय: प्रत्येक वस्तु मानव शरीर में समनुरूप है । दो आंख, दो कान, दो नासिका यहां तक कि मस्तिष्क के भी दो पक्ष हैं । लेकिन मस्तिष्क का एक क्षेत्र है जो प्रतिरूप प्रस्तुत नहीं करता । यह शंकरूप ग्रंथि क्षेत्र और उसे चारों ओर से घेरने वाला ऊर्जावान केंद्र है । शारीरिक स्तर पर विशिष्ट अणु शंकरूप ग्रंथि द्वारा प्राकृतिक रूप से निर्मित होते हैं जैसे डीएमटी । डीएमटी जन्म के समय और मृत्यु के समय प्राकृतिक रूप से निर्मित होते हैं । शाब्दिक रूप से यह जीवित और मृत संसार के बीच अनन्य पुल का कार्य करते हैं । डीएमटी गहन ध्यान की स्थिति और समाधि पर एंथीयोजेनिक उपायों के माध्यम से उत्पादित होता है । उदाहरण के लिए, आयुष्का दक्षिण अमरीका में शमनिक परंपराओं में प्रयुक्त होता है ताकि आंतरिक और बाहरी संसार के बीच के परदे को दूर किया जा सके । यह पद्धति जीवन पद्धति के पुष्प के रूप में अभिज्ञात है, जो जागृत या आत्मावलोकित प्राणी को चित्रित करने वाली प्राचीन कला कार्य में सामान्य है जब देवदारु फल की छवि पवित्र कला कार्य में दिखाई देती है तो यह जागृत तीसरी आंख, विकासात्मक ऊर्जा के प्रवाह को निर्देशित करते हुए एकल बिंदु चेतना का प्रतिनिधित्व करती है । देवदारु का फल उच्चतर चक्रों के खिलने का प्रतिनिधित्व करता है जो ज्ञान चक्र और उससे आगे बढ़ने के लिए सुषुम्ना के रूप में सक्रिय होता है । ग्रीक पुराण में डॉयोनिसस के उपासकों ने देवदारु फल सहित सर्पिल वल्लरी से लपेटकर थायरसस या दैत्यों को उठाया था। दोबारा, यह मेरुदंड से शुंकरूप ग्रंथि के छठे चक्र में जाते हुए डायनेसियन ऊर्जा या कुंडलिनी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। वैटिकन के हृदय में आप यीशु या मेरी की वृहत् प्रतिमा की आशा कर सकते हैं, लेकिन इसके स्थान पर हम वृहद् देवदारु फल की प्रतिमा पाते हैं जो सूचित करता है कि ईसाई इतिहास में चक्रों तथा कुंडलिनी के बारे में जानकारी थी, लेकिन किन्हीं कारणों से उसे जन-समूह से दूर रखा गया। शासकीय चर्च का स्पष्टीकरण है कि देवरारु का फल पुनरुत्पादन का प्रतीक है और ईसा में नए जन्म का प्रतिनिधित्व करता है। तेरहवीं शताब्दी के दार्शनिक व रहस्यावादी मीस्टर एक्खार्ट ने कहा है,
Last Update: 2019-07-06
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speaking about the language and the word - sound significance in his preface to nanarthasamgraha , anundoram hints at the root and observes : the immense power which now man wields over matter and force which is daily astonishingly increasing and which has contributed so much to widen his mental comforts is not a little due to the most wonderful medium of thought , which has enabled us to utilise the labour of our forefathers , to thoroughly test and fully and correctly store up our knowledge , and to accurately convey it to others .
नानार्थसंग्रह के आमुख में भाषा और शब्द - ध्वनि के महत्व की चर्चा करते हुए आनन्दराम मूल की ओर इशारा करके कहते हैंः पदार्थ और शक्ति पर आज मनुष्य को जो असाधारण अधिकार प्राप्त है और जो आश्चर्यजनक गति से बढ़ता ही जा रहा है , और जिसने मनुष्य के मानसिक विस्तार में इतना योगदान किया है , उसका बहुत कुछ श्रेय विचार के अनोखे माध्यम को हैउसी के द्वारा हम अपने पूर्वजों के श्रम का उपयोग कर सके हैं , अपने ज्ञान का पूर्ण परीक्षण और सही तथा सम्पूर्ण रूप में उसका संरक्षण कर सके हैं , और अन्य लोगों तक ठीक - ठीक सम्प्रेषित कर सके हैं ।
Last Update: 2020-05-24
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