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रिफ्रेश दरcolor- blindness simulation mode
refresh ratecolor-blindness simulation mode
Last Update: 2018-12-24
Usage Frequency: 1
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बहुत ज्यादा (e) no color- blindness simulation, i. e. 'normal' vision
very highno color-blindness simulation, i. e. 'normal 'vision
Last Update: 2018-12-24
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अब हम बाहर की तरफ ज़ूम करेंगे, और आप इस संरचना को देख रहे हैं, जो कि बहुत दूर से नियमित आकृति जैसी दिखती है, पर ये बहुत सारी अनियमितताओं से मिलकर बनी हैं. ये संरचना के सरल सारभूत उपादान हैं. इसमें पहले तो एक सरल तरल द्रव है. इसमें डार्क मैटर है, सामान्य पदार्थ है, उसमें फोटोन और न्युट्रिनो हैं, जिनकी ब्रह्माण्ड के उत्तरार्द्ध में ज़्यादा उपयोगिता नहीं है. द्रव बहुत ही सरल है, जो समय के साथ साथ जटिल संरचना में परिवर्तित हो जाता है. जब आपने पहले इस तस्वीर को देखा, तो शायद ही ये उतना महत्वपूर्ण लगा हो. यहाँ आप समूचे दृश्यमान ब्रह्माण्ड का एक प्रतिशत हिस्सा देख रहे हैं और उसमें आप अरबों आकाशगंगाएँ और उनके समूह देख रहे हैं, लेकिन, आप जान चुके हैं कि ये प्रमुख संरचना नहीं है. इस ढाँचे का आधार डार्क मैटर, याने अदृश्य पदार्थ है, जिसने पूरी संरचना को एक सूत्र में बांधे रखा है. हम अब फिर इसके बीच से गुज़रते हैं, और आप देख सकते हैं कि दृश्य के बीच में बैठकर उसकी संपूर्ण अवधारणा बनाना कितना कठिन है. तो यहाँ भी हमें वही नतीजा मिलता है. आप ये तंतु देख पा रहे हैं, ये प्रकाश अदृश्य पदार्थ है, और ये पीला रंग तारों या आकाशगंगाओं को दर्शाता है. अब हम इसके चारों ओर का चक्कर लगाएंगे, यहाँ आप बीच-बीच में तंतुओं को एक दूसरे में उलझते देख सकते हैं, जिससे आकाशगंगाओं का एक बड़ा समूह बन जाता है. अब हम वहाँ जाएंगे जहाँ आकाशगंगाओं का बहुत बड़ा समूह है, आप देख सकते हैं कि वो कैसा दिखता है. तो अंदर से ये उतना पेचीदा नहीं लगता है, है ना? पर जब आप इसे बहुत बड़े पैमाने पर देखें, और इसका अध्ययन करें, तो आप पाएंगे कि ये बहुत ही उलझी हुई, महीन, और जटिल रचना है. ये किसी विशेष पद्धति से पनपी है. तो सवाल ये है, कि ऐसी संरचना का बनना कितना मुश्किल होगा? कामगारों की कितनी बड़ी फौज लगी होगी इस ब्रह्माण्ड को बनाने में? मुद्दा यही है, है ना? तो शुरु करते हैं. आप देख सकते हैं कि कैसे ये तंतु -- देखिए कैसे बहुत सारे तंतु एक साथ मिलकर आकाशगंगाओं का महागुच्छ बना रहे हैं. यहाँ आपको ये समझना होगा कि वास्तविकता में ये ऐसा नहीं दिखेगा यदि -- पहले तो, आप इतनी तेज़ यात्रा नहीं कर सकते, उससे सब कुछ विकृ्त हो जाएगा, लेकिन अभी हम जो देख रहे हैं, वो साधारण ग्रैफिक आर्ट के ज़रिए किया निरूपण है. यूँ कह लीजिए कि अगर आप अरबों साल ब्रह्माण्ड के चारों ओर सफर करते, तो दृश्य आपको कुछ ऐसा दिखता. और वो भी तब, जब आप अदृश्य पदार्थ को देख पाते. तो सवाल ये है कि, ऐसा कौनसा तरीक़ा हो सकता है, जिससे इस पूरे ब्रह्माण्ड को सरलता से बनाया जा सके? तो शुरू करते हैं इस समझ के साथ कि ये समूचा दृश्यमान ब्रह्मांड, वो पूरा विस्तार जो हम हबल स्पेस टेलिस्कोप और दूसरे उपकरणों के ज़रिए हर दिशा में फैला देखते हैं, एक समय किसी अणु से भी छोटा क्षेत्र था. इसकी शुरुआत कुछ बहुत ही सूक्ष्म क्वान्टम यांत्रिक उथलपुथल के ज़रिए हुई, जो बहुत ही प्रचंड गति से बढ़ने लगी. फिर ये अस्थिरताएँ महाकाशीय परिमाणों में फैलने लगी, और हमें यही अनियमितताएँ ब्रह्माण्ड में व्याप्त माइक्रोवेव तरंगों के आधार पर दिखती हैं. अब हमें कोई ऐसा तरीका चाहिए जिससे ये अस्थिरताएँ आकाशगंगाओं और आकाशगंगाओं के समूह में विकसित हो सके, और ये प्रक्रिया सतत चलती रहे. मैं अब आपको एक छोटा प्रारूपण (simulation) दिखाऊँगा. इस प्रारूपण को 1,000 कम्प्युटर प्रोसेसरों पर एक महीना चलाया गया था ताकि इसे देखने योग्य प्रस्तुति जैसा बनाया जा सके. अब मैं अगली तस्वीर में आपको एक और प्रारूपण दिखाता हूँ जिसे चलाने में किसी डेस्कटॉप कम्प्युटर को दो दिन लगते हैं. तो हम बहुत छोटी अस्थिरताओं से शुरु करते हैं जब ब्रह्माण्ड इस बिन्दु पर था, अब चार गुना छोटा, और इसी तरह आगे बढ़ते हैं. अब आप ये जालसदृश आकृतियां देख पा रहे हैं, और खगौलिक आकृतियों को भी बनते देख रहे हैं. ये बहुत ही सरल संरचना है, क्योंकि इसमें साधारण पदार्थ नहीं, केवल डार्क मैटर है. अब देखिए कैसे डार्क मैटर पदार्थ के रूप में इकट्ठा होने लगता है, और कैसे साधारण पदार्थ उसका अनुसरण करता है. यहाँ देखिए. शुरुआत में ये बहुत नियमित है. अस्थिरताएँ केवल 1,00,000 का एक अंश हैं. और कहीं-कहीं 10,000 के एक अंश तक पहुँच रहीं हैं, फिर अरबों सालों में गुरुत्वाकर्षण अपना काम करने लगता है. यहाँ घनत्व बढ़ रहा है, जिससे आसपास का पदार्थ इसकी ओर खिंचने लगता है. इससे ये और पदार्थ को खींचने लगता है, फिर और ज़्यादा. पर ब्रह्मांड में दूरियाँ इतनी विशाल हैं और समय के पैमाने इतने बड़े कि इसे आकार लेने में बहुत समय लग जाता है. यह तब तक होता रहता है जबतक विस्तार की दृष्टि से ब्रह्माण्ड आज की अवस्था के लगभग आधे तक ना पहुँच जाए. वहाँ पहुँचने के बाद, ब्रह्माण्ड रहस्यमय रूप से बहुत तेज़ी से फैलने लगता है और अपनी वृ्हदाकार संरचनाएँ रोक देता है. तो हम उतने ही बड़े आकार की बनावट देख पा रहे हैं, जितना इस समय तक संभव है, उसके बाद केवल वही चीज़ें आकार लेती रहेंगी जिनका आकार लेना पहले ही शुरू हो चुका है और वही आगे भी विकसित होती रहेंगी. तो हम प्रारूपण में सफल हैं, लेकिन इसके लिए डेस्कटॉप कम्प्युटर पर दो दिन लगेंगे. हमें 1,000 कम्प्युटर प्रोसेसर पर क़रीब 30 दिन लगेंगे इसके पहले दिखाये प्रारुपण को देखने के लिए. तो अब हमें कुछ-कुछा पता चला है कि ये ब्रह्माण्ड कैसे बनाया जा सकता है, एक बूंद से भी कम सामग्री लगाकर हर दिशा में दिखने वाली हर चीज़ बनाई जा सकती है, लगभग कुछ नहीं से -- क्योंकि मूलतत्व इतना सूक्ष्म है, इतना सूक्ष्म -- और ये लगभग परिपूर्ण ही है, सिवाय इस बात के कि इसमें बहुत छोटी अस्थिरताएँ हैं, 1,00,000 में एक अंश के बराबर, जिनसे ये अद्भुत नक्शे और आकृ्तियाँ बनीं जो हम रहे हैं, आकाशगंगाओं और तारों जैसे रूपों में. अब हमारे पास एक प्रारूप है, जिसकी हम गणना कर सकते हैं और उपयोग भी, ब्रह्माण्ड दरअसल दिखता कैसा होगा उसकी रुपरेखा बनाने के लिए. ये रूपरेखा हमारे पहले की कल्पनाओं के बिल्कुल विपरीत है.
now we're going to zoom back out, and you can see this structure that, when we get very far out, looks very regular, but it's made up of a lot of irregular variations. so they're simple building blocks. there's a very simple fluid to begin with.
Last Update: 2019-07-06
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