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(ठहाका) मुझे इसमें नहीं पड़्ना चाहिए. धर्म और राजनैतिक कार्टून, जैसा कि आपने सुना हि होगा, एक मुश्किल जोड़ी है, 2005 के उस दिन के बाद से, जब डेनमार्क के कुछ कार्टूनिस्टों ने ऎसे कार्टून बनाए, जिन पर प्रतिक्रिया पूरे विश्व भर में दिखी, विरोध प्रदर्शन, फतवा. इन चित्रों ने हिंसा भड़का दी. लोग मारे गए. कितनी दर्दनाक बात है. लोग कार्टूनों की वजह से मारे गए. मतलब- उस समय मुझे ऎसा लगा कि असल में कार्टूनों का इस्तेमाल दोनों ही पक्षों ने किया. सबसे पहले एक डैनिश अख़बार ने इनका इस्तेमाल किया, इस्लाम पर एक मुद्दा बनाने के लिए. एक डैनिश कार्टूनिस्ट ने मुझे बताया कि वो उन 24 लोगों में से था जिन्हे पयगम्बर का चित्र बनाने का काम मिला था. उनमें से 12 लोगों ने ये काम करने से मना कर दिया. ये बात आपको पता थी? उसने मुझसे कहा, ' मुझे क्या बनाना है, ये किसी और को मुझे बता देने की ज़रूरत नहीं. इस काम का यही नियम है.' इसके बाद उन कार्टूनों को दूसरी तरफ से उग्रवादियों और राजनीतिज्ञों ने इस्तेमाल किया. उनका इरादा विवाद खड़ा करने का था. बाकी किस्सा तो आप जानते ही हैं. हम जानते हैं कि कार्टूनों को हथियार भी बनाया जा सकता है. इतिहास गवाह है, कि नात्ज़ीयों ने भी यहूदियों के ख़िलाफ इनका इस्तेमाल किया. और अब हम यहाँ आ पहुँचे हैं. संयुक्त राष्ट्र में लगभग आधा विश्व जुटा पड़ा है धार्मिक आस्थाओं पर आक्रमण को दण्डनिय बनाने में -- वे इसे धर्म का अपमान कहते हैं-- वहीं बाकी विश्व ने इस मुद्दे पर बोलने की आज़ादी के पक्ष में मुहीम छेड़ रखी है. तो सभ्यताओं की जंग छिड़ चुकि है, कार्टूनों को लेकर? इस बात ने मुझे सोच में डाल दिया. अब आप मुझे सोचता हुआ देख सकते हैं मेरी किचन टेबिल पर. और चूंकि आप मेरे किचन में हैं, मेरी बीवी से मिलिए.
(gülüşmeler) (adam: peder ben günah işledim./ peder: biliyorum)