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एक फोटो भेजो
ek photo bhejo
Última actualización: 2021-09-18
Frecuencia de uso: 1
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आप अपना भेज़ दो
aku mental
Última actualización: 2020-11-06
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उन्होंने कहा, "इसे और इसके भाई को प्रतीक्षा में रखो और नगरों में हरकारे भेज दो,
(pemuka-pemuka itu menjawab, "beri tangguhlah dia dan saudaranya) tangguhkanlah perkara keduanya (serta kirimlah ke kota-kota beberapa orang yang akan mengumpulkan ahli-ahli sihir) yang menghimpun para ahli sihir.
Última actualización: 2014-07-03
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जब उन्हों ने उसको यहां तक दबाया कि वह लज्जित हो गया, तब उस ने कहा, भेज दो; सो उन्हों ने पचास पुरूष भेज दिए, और वे उसे तीन दिन तक ढूंढ़ते रहे परन्तु न पाया।
tetapi mereka terus saja mendesak sehingga ia menyetujuinya. maka pergilah kelima puluh nabi itu mencari elia selama tiga hari, tetapi mereka tidak menemukannya
Última actualización: 2019-08-09
Frecuencia de uso: 1
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(ठहाके) लेकिन उन पहले घण्टॊं में १० में से नौ. और आधे दिन के अंदर दान लेने की वेब्साइट तैयार हो गई थीं. और दुनिया में चारों तरफ़ से दान आ रहे थे. यह एक अविश्वसनीय, समन्वित वैश्विक प्रतिक्रिया थी. और फ़िर चीनिओं नें, मीडिया के खुलेपन की एक अवधि के दौरान यह फ़ैसला कर लिआ कि वो इसे जाने देंगे. और वो नागरिकों द्वारा इस तरह से ख़बरें दिए जाने देंगे. और यही हुआ. शिचुआन प्राँत में लोगों नें यह अनुमान लगाया, कि इसका कारण कि इतनी सारे स्कूलों की ईमारतें गिर गईं, क्योंकि दुर्भाग्य से भूकंप एक स्कूल के दिन के दौरान हुआ इसका कारण कि इतनी सारे स्कूलों की ईमारतें गिर गईं यह है कि भ्रष्ट कर्मचारियों नें रिश्व्त ली थी उन ईमारतों को निर्देशों से घटिया मापद्ण्ड पे बनने देने के लिए. और इस तरह उन्होंने, नागरिक पत्रकारों नें इसकी भी सूचना देनी शुरू कर दी. और वहँ एक विचित्र तस्वीर थी. आपनें न्यू यार्क टाइम्स के मुख्य पृश्ठ पर एक देखी होगी. एक स्थानीय अधिकारी सचमुच सड़्क पर लेट गया, इन प्रदृशनकारियों के सामने. जिससे वो चले जाएं. अनिवार्य रूप से कहने के लिए, "हम कुछ भी करने के लिए तैयार हैं आप को शांत करने के लिए. बस क्रृपा कर के सार्वजनिक प्रदृशन रोक दो." लेकिन ये वो लोग थे जो कट्टरपंथी बन गए थे. क्योंकि इकलौते बच्चे वाली नीति की वजह से उन्होंने अपनी अगली पीढी में सब को खो दिया. किसीने जब अपने इकलौते बच्चे की मौत देखी हो उसके पास अब खोने को कुछ नहीं रह जाता. तो अवरोध जारी रहे. और आखिर चीनी सरकार उन पर टूट पडी. नागरिक मीडिया काफ़ी हो गई थी. तो उन्होंनें आन्दोलनकारियों को पकड्ना शुरू कर दिया. उन्होंने वो माध्यम बंद करने शुरु कर दिए जिन पर विरोध हो रहे थे. चीन शायद सबसे सफ़ल प्रबंधक है इन्टरनेट पे सेंसर का, दुनिया में, उसके इस्तेमाल के द्वारा, जिसे चीन की महान फ़ायरवौल कहा जाता है. और चीन की महान फ़ायरवौल अवलोकन बिंदुओं का समूह है जो यह मान के चलता है कि मीडिया का निर्माण पेशेवरों द्वारा होता है, वो ज्यादातर बाहर की दुनिया से अंदर आती है, वो अपेक्षाकृत छोटे हिस्सों में आती है, और अपेक्षाकृत धीरे आती है. और इन चार विषेश्ताओं कि वजह से वो सक्षम हैं इसको छानने में जैसे यह देश के अंदर आती है. लेकिन मैगिनौट रेखा की तरह, चीन की महान फ़ायरवौल गलत दिशा कि तरफ़ मुख कर रही थी इस चुनौति के लिए. क्योंकि इन चारों चीज़ों में से इस परिवेश में कोई भी सही नहीं था. मीडिया का न्रिर्माण स्थानीय तौर पे हो रहा था. उसका निर्माण नौसिखियों द्वारा हो रहा था. निर्माण तेज़ी से हो रहा था. और निर्माण अविश्वसनीय बहुतायत से हो रहा था और कोई तरीका नहीं था कि उसके बनते ही उसे छाना जा सके. तो अब चीनी सरकार, जो १२ साल से सफ़लता के साथ वेब को छान रहे थे, अब अवस्था में है यह फ़ैसला करने की कि क्या पूरी सेवाएं चलने दें या बंद कर दें. क्योंकि शौकिया मीडिया के लिए परिवर्तन इतना विशाल है कि वे इसके साथ किसी भी अन्य तरीके से निपटा नहीं कर सकता है. और बलकि यह इस हफ़्ते हो रहा है. टिआनामेन की २० वीं वर्षगांठ पर दो ही दिन पहले उन्होंनें घोषणा की कि वह ट्विटर का उपयोग बाध्य कर रहे हैं. क्योंकि कोई तरीका नहीं है कि इसे फ़िल्टर किया जा सके. उन्हें नल्का बिल्कुल बंद करना पडा. अब ये परिवर्तन सिर्फ़ उन लोगों को प्रभावित नहिं करते जो संदेशों को सेंसर करना चाहते हैं. ये उन्हें भी प्रभावित करते हैं जो संदेश भेजना चाहते हैं. क्योंकि यह दरअसल पारिस्थितिकी तंत्र का पूर्णतः परिवर्तन है. केवल एक विशेष रणनीति नहीं. बीसवीं सदी की ठेठ मीडिया समस्या यह है कि किस तरह एक संस्था जिस के पास एक संदेश है जो वे देना चाहते हैं लोगों के समूह को जो एक तानाबाने के किनारों में फ़ैले हुए हैं. और यह रहा बीसवीं सदी का जवाब. संदेश को एकत्रित कर दो. वही संदेश सब को भेज दो. राषट्रीय संदेश. लक्षित व्यक्ति. अपेक्षाकृत विरल उत्पादकों की संख्या. करने में बहुत महंगा. तो ज्यादा प्रतियोगिता नहीं है. एसे आप लोगों तक पहुँच सकते हैं. वह सब ख़त्म हो गया है. हम तेज़ी से एसे परिदृश्य में जा रहे हैं जहाँ मीडिया वैश्विक है. सामाजिक, सर्वस्व और सस्ता. अब ज्यादातर संगठन जो संदेश भेजने की कोशिश कर रहे हैं बाहर की दुनिया को, दर्शकों के विस्तृत समूह को, अब इस बदलाव को इस्तेमाल कर रहे हैं. दर्शक वापस बात कर सकते हैं. और यह थोड़ा अजीब है. पर आपको कुछ देर में इसकी आदत पड़ सकती है, जैसे लोगों को हो जाती है. पर यह वह उन्मादी बदलाव नहीं है जिस के बीचों बीच हम रह रहे हैं. असली उन्मादी बदलाव यहां है. वह यह तथ्य है कि वे अब आपस में बेजोड़ नहीं हैं. ये तथ्य कि भूतपूर्व उपभोगक्ता अब उत्पादक हैं. ये तथ्य कि दर्शक अब सीधे आपस में बात कर सकते हैं. क्योंकि पेशेवरों कि तुलना में शौकिया लोग ज्यादा हैं. और नेटवर्क के आकार की वजह से, नेटवर्क की जड़िलता दरअसल गुनिया है भाग लेने वालों कि संख्या का. मतलब कि जब नेटवर्क बड़ा हो जाता है, तो बहुत बहुत बड़ा हो जाता है. अभी पिछले दशक तक, ज्यादातर मीडिया जो आम जनता के लिए उपल्बध थी पेशेवरों के द्वारा उत्पादित थी. वो दिन अब ख़त्म हो गए हैं और कभी वापस नहीं आएंगे. अब तो हरी रेखाएं हैं, जो मुफ़्त सामग्रि के स्रोत हैं. जो कि मुझे अपनी आखिरी कहानी पर ले आती है. हम कुछ कल्पनाशील प्रयोग देखा सामाजिक मीडिया का ओबामा के चुनाव प्रचार के दौरान. और मेरा मतलब राजनीति में कल्पनाशील प्रयोग नहीं है. मेरा मतलब है सबसे कल्पनाशील कहीं भी. और एक चीज़ जो ऒबामा नें करी, कि मशहूर तौर पे, ओबामा प्रचार नें, महशूर तौर पे, माए बराक ऒबामा डोट कौम, माएबीओ.कौम और लाखों नागरिक भाग लेने के लिए उमड पड़े, और यह समझने के लिए कि वे किस तरह से मदद कर सकते हैं. और वहाँ एक अविश्व्स्नीय वार्ता उभर के आई. और फ़िर, पिछ्ले साल इसी समय, ओबामा नें घोषणा करी कि वो फ़ीसा पे अपना मत बदलने जा रहे थे, विदेशी खु़फ़िया निगरानी एक्ट. उन्होंने जनवरी में कहा कि वो एक बिल पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे जो दूरसंचार को बिना वारंट के जासूसी करने के लिए प्रतिरक्षा दे अमरीकी लोगों पर. गर्मीयों तक, आम चुनाव प्रचार के बीच में, उन्होंने कहा, "मैंने इस विषय में और सोचा हैए. मैंने अपना मत बदल लिया है. मैं इस बिल को अपना मत दूंगा." और उनके कई समर्थक उनकी ही साइट पर सार्वजनिक रूप से बेलगाम हो गए. जब उन्होंने इसे बनाया तो वह सेनेटर ऒबामा था. बाद में उन्होंने नाम बदल दिया. कृप्या फ़िसा को सही तरह से लें. इस समूह के बनने के कुछ ही दिनों बाद वह मायबीऒ.कौम पर सबसे तेज़ी से बढ़्ता हुआ समूह था. बनने के कुछ ही हफ़्तों बाद यह सबसे बड़ा समूह था. ओबामा को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करनी पड़ी. उन्हें ज़वाब देना पड़ा. और उन्होंने मूलतः कहा, " मैने इस विषय के बारे में सोचा है. मैं समझता हूँ आप के विचारों का आधार क्या है. लेकिन इस सब के बारे में सोचने के बाद, मैं अभी भी अपना मत उसी तरह ड़ालूँगा. लेकिन मैं आप तक पहूंचना चाहता था यह कहने के लिए, मैं समझता हूं कि आप मुझ से सहमत नहीं हैं, और इसे मैं झेल लूँगा." इस से कोई खुश़ नहीं हुआ. पर फ़िर इस वार्तालाप में एक मज़ेदार बात हुई. उस समूह में लोगों को यह एहसास हो गया कि ओबामा नें उन्हें कभी बंद नहीं किया. ओबामा प्रचार में किसी नें कभी इस समूह को छिपाने की कोशिश नहीं करी या इसमें मिलना मुशकिल बनाया, या इसके अस्तित्व को नकारा, या मिटाने की कोशिश करी, उस को साइट से निकालने की. वो ये समझ गये थे कि उनकी भूमिका माएबीओ.कौम के साथ उनके समर्थकॊं को एकत्रित करना था पर उनके समर्थकों को नियंत्रित करना नहीं. और यह वो अनुशासन है जो लगता है सुलझा हुआ इस्तेमाल करने का इस मीडिया का. मीडिया, मीडिया का परिदृश्य जो हम जानते थे, जो जाना पहचाना था, संकल्पित तौर पे आसान था इस विचार से निपटना कि पेशेवार प्रसारण संदेशों का गैर पेशेवार लोगों को हाथ से निकलता जा रहा है. एक दुनिया में जहां मीडिया वैश्विक, सामजिक, सर्वत्र और सस्ती है, एक दुनिया में जहां पहले के दर्शक अब तेज़ी से पूरे प्रतिभागी बन रहे हैं, उस दुनिया में, मीडिया कम से कम एक अकेले संदेश के बनाने के बारे मे है जो अकेले व्यक्तियों द्वारा उपभोग किया जाए. ये ज्यादा से ज्यादा एक तरीका है आयोजन के लिए एक माहौल बनाने का और समूहों को सहायता देने के लिए. और जो विकल्प हमारे सामने हैं, मेरा मतलब कोई भी जिसके पास कोई संदेश है जो वे सुनाना चाहते हैं दुनिया में कहीं भी, यह नहीं है कि क्या यह मीडिया का परिवेश है जिस में हम काम करना चाहते हैं. यही मीडिया का परिवेश है जो हमारे पास है. सवाल जो हमारे सामने है वो ये है,
(hadirin tertawa) namun itulah sembilan dari 10 pada jam-jam pertama. dan dalam waktu setengah hari situs donasi pun terbentuk.
Última actualización: 2019-07-06
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