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hum kal delhi ja rahe hai
हम कल दिल्ली हां रहे हैं
Dernière mise à jour : 2018-07-13
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(latter) ca. 8000 km fra delhi
(ठहाके) दिल्ली से लगभग 8000 किलोमीटर दूर गेट्सहैड नामक एक छोटा शहर है. गेट्सहैड में, मैंने 32 बच्चे लिए, और मैं अपनी तकनीक को तराशने लगा. मैंने उन्हें चार-चार के समूहों में बाँट दिया. मैंने कहा, "तुम खुद अपने चार-चार के समूह बनाओ. हर एक समूह एक ही कंप्यूटर का इस्तेमाल कर सकता है, चार का नहीं." आपको याद होगा - दीवार में जड़ा हुआ कंप्यूटर. "आप समूह बदल सकते हैं. अगर आपको अपना समूह पसंद न आये तो आप कोई दूसरे समूह के पास जा सकते हैं. किसी दूसरे समूह के पास जाकर आप झाँक कर देख सकते हैं कि वो क्या कर रहे हैं, फिर अपने समूह में आकर दावा कर सकते हैं कि वह आपका खुद का विचार था." मैंने उन्हें समझाया कि आपको पता है? कितने ही वैज्ञानिक अनुसंधान इसी तरह किया जाते हैं.
Dernière mise à jour : 2019-07-06
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i 1999 begyndte jeg at kigge nærmere på dette problem gennem et lille eksperiment, et meget simpelt eksperiment i new delhi.
1999 में मैंने एक प्रयोग द्वारा इस समस्या को सुलझाने की कोशिश की, जो बहुत ही साधारण सा प्रयोग था नई दिल्ली में.
Dernière mise à jour : 2019-07-06
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grundlæggende indlejrede jeg en computer i en væg i et slumkvarter i new delhi. børnene gik knapt nok i skole. de kunne ikke engang snakke engelsk.
मैंने नई दिल्ली की एक झोपड़-पट्टी में दीवार में एक कंप्यूटर जड़वा दिया. यहाँ के बच्चे स्कूल नहीं जाते थे. उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी. उन्होंने पहले कभी कंप्यूटर नहीं देखा था, और उन्हें ये भी नहीं पता था कि इंटरनेट क्या होता है. मैंने उसे उच्चतम इन्टरनेट से जोड़ दिया -- ये ज़मीन से लगभग तीन फीट ऊपर है -- कंप्यूटर चलाया और वहीँ छोड़ दिया. इसके बाद, हमने कुछ दिलचस्प चीज़ें देखी, जो आप भी देखेंगे. पर मैंने इसे पूरे भारत में दोहराया और उसके बाद विश्व के एक बड़े हिस्से में, और यह निष्कर्ष निकाला कि बच्चे वो चीज़ें सीख जायेंगे जो वो सीखना चाहते हैं. यह हमारा पहला प्रयोग था -- आपके दाहिने ओर एक 8 साल का लड़का एक 6 साल की लड़की को browse (ब्राउस) करना सिखा रहा था. यह मध्य भारत का लड़का -- राजस्थान के एक गाँव में, यहाँ बच्चों ने अपना खुद का संगीत रिकॉर्ड किया और उसे एक दूसरे को सुनाया, और इस प्रक्रिया में, बच्चों ने खूब मजे लिए. उन्होंने ये सब केवल चार घंटों में कर लिया, वो भी कंप्यूटर को पहली बार देखने के बाद. दक्षिण भारत के एक और गाँव में, इन लड़कों ने एक विडियो कैमरा जोड़ लिया और एक मधुमक्खी की तस्वीर लेने की कोशिश कर रहे थे. उन्होंने इसे disney.com (डिस्नी डाट कौम) या ऐसी ही कोई वेबसाईट से डाउनलोड किया था. यह उन्होंने गाँव में कंप्यूटर लगने के सिर्फ 14 दिन में कर लिया था.
Dernière mise à jour : 2019-07-06
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"hvad laver du her? hvorfor er du her? uddannelsessystemet i indien får dig til at se på paris og new delhi og zürich; hvad laver du i denne landsby?
"तब यहाँ क्या कर रहे हो? यहाँ क्यों आये हो? भारत की शिक्षा व्यवस्था तो आपको पेरिस और नई-दिल्ली और ज़ुरिख़ के ख़्वाब दिखाती है; तुम इस गाँव में क्या कर रहे हो? तुम कुछ तो ज़रूर छिपा रहे हो हमसे?" मैने कहा, "नहीं, मैं तो एक कॉलेज खोलने आया हूँ, केवल गरीबों के लिये। गरीब लोगों को जो ज़रूरी लगता है, वही इस कॉलेज में होगा।" तो बुज़ुर्गों नें मुझे बहुत नेक और सार्थक सलाह दी। उन्होंने कहा, "कृपा करके, किसी भी डिग्री-होल्डर या मान्यता-प्राप्त प्रशिक्षित व्यक्ति को अपने कॉलेज में मत लाना।" लिहाज़ा, ये भारत का इकलौता कॉलेज है जहाँ, यदि आप पी.एच.डी. या मास्टर हैं, तो आपको नाकारा माना जायेगा। आपको या तो पढाई-छोड, या भगोडा, या निलंबित होना होगा हमारे कॉलेज में आने के लिये। आपको अपने हाथों से काम करना होगा। आप को मेहनत की इज़्जत सीखनी होगी। आपको ये दिखाना होगा कि आपके पास ऐसा हुनर है जिस से कि लोगों का भला हो सकता है और आप समाज को कोई सेवा प्रदान कर सकते हैं। तो हमने बेयरफ़ुट कॉलेज की स्थापना की, और हमने पेशेवर होने की नई परिभाषा गढी। आख़िर पेशेवर किसको कहा जाये? एक पेशेवर व्यक्ति वो है जिसके पास हुनर हो, आत्म-विश्वास हो, और भरोसा हो। ज़मीन-तले पानी का पता लगाने वाला पेशेवर है। एक पारंपरिक दाई एक पेशेवर है। एक कढाई गढने वाला पेशेवर है। सारी दुनिया में ऐसे पेशेवर भरे पडे हैं। ये आपको दुनिया के किसी भी दूर-दराज़ गाँव में मिल जायेंगे। और हमें लगा कि इन लोगों को मुख्यधारा में आना चाहिये और दिखाना चाहिये कि इनका ज्ञान और इनकी दक्षता विश्व-स्तर की है। इसका इस्तेमाल किया जाना ज़रूरी है, और इसे बाहरी दुनिया के सामने लाना ज़रूरी है -- कि ये ज्ञान और कारीगरी आज भी काम की है। तो कॉलेज में महात्मा गाँधी की जीवन-शैली और काम के तरीके का पालन होता है। आप ज़मीन पर खाते हैं, ज़मीन पर सोते हैं, ज़मीन पर ही चलते हैं। कोई समझौता, लिखित दस्तावेज़ नहीं है। आप मेरे साथ २० साल रह सकते है, और कल जा भी सकते हैं। और किसी को भी $१०० महीने से ज्यादा नहीं मिलता है। यदि आप पैसा चाहते हैं, आप बेयरफ़ुट कॉलेज मत आइये। आप काम और चुनौती के लिये आना चाहते हैं, आप बेयरफ़ुट आ सकते हैं। यहाँ हम चाहते हैं कि आप आयें और अपने आइडिया पर काम करें। चाहे जो भी आपका आइडिया हो, आ कर उस पर काम कीजिये। कोई फ़र्क नहीं पडता यदि आप फ़ेल हो गये तो। गिर कर, चोट खा कर, आप फ़िर शुरुवात कीजिये। ये शायद अकेला ऐसा कॉलेज हैं जहाँ गुरु शिष्य है और शिष्य गुरु है। और अकेला ऐसा कॉलेज जहाँ हम सर्टिफ़िकेट नहीं देते हैं। जिस समुदाय की आप सेवा करते हैं, वो ही आपको मान्यता देता है। आपको दीवार पर काग़ज़ का टुकडा लटकाने की ज़रूरत नहीं है, ये दिखाने के लिये कि आप इंजीनियर हैं। तो जब मैंने ये सब कहा, तो उन्होंने पूछा, "ठीक है, बताओ क्या संभव है. तुम क्या कर रहे हो? ये सिर्फ़ बतकही है जब तक तुम कुछ कर के नहीं दिखाते।" तो हमने पहला बेयरफ़ुट कॉलेज बनाया सन १९८६ में। इसे १२ बेयरफ़ुट आर्किटेक्टों ने बनाया था, जो कि अनपढ थे, $1.5 प्रति वर्ग फ़ुट की कीमत में। १५० लोग यहाँ रहते थे, और काम करते थे। उन्हें २००२ में आर्किटेक्चर का आगा ख़ान पुरस्कार मिला। पर उन्हें लगता था, कि इस के पीछे किसे मान्यता प्राप्त आर्किटेक्ट का हाथ ज़रूर होगा। मैने कहा, "हाँ, उन्होंने नक्शे बनाये थे, मगर बेयरफ़ुट आर्किटेक्टों ने असल में कॉलेज का निर्माण किया।" शायद हम ही ऐसे लोग होंगे जिन्होंने $50,000 का पुरस्कार लौटा दिया, क्योंकि उन्हें हम पर विश्वास नहीं हुआ, और हमें लगा जैसे वो लोग कलंक लगा रहे हैं, तिलोनिया के बेयरफ़ुट आर्किटेक्टों के नाम पर। मैनें एक जंगल-अफ़सर से पूछा -- मान्यता प्राप्त, पढे-लिखे अफ़सर से -- मैने कहा, "इस जगह पर क्या बनाया जा सकता है? उसने मिट्टी पर एक नज़र डाली और कहा, "यहाँ कुछ नहीं हो सकता। जगह इस लायक नहीं है। न पानी है, मिट्टी पथरीली है।" मैं कठिन परिस्थिति में था। और मैने कहा, "ठीक है, मैं गाँव के बूढे के पास जा कर पूछूँगा कि, 'यहाँ क्या उगाना चाहिये?'" उसने मेरी ओर देखा और कहा,
Dernière mise à jour : 2019-07-06
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