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हमारे सूपर सूअर न केवल विशाल और खूबसूरत होंगे, वे पर्यावरण पर भी न्यूनतम विपरीत प्रभाव छोड़ेंगे, कम खाएँगे और कम शौच करेंगे।
våra supergrisar kommer inte bara att vara stora och vackra, de lämnar ett minimalt avtryck på miljön, de äter mindre och producerar mindre avföring.
"अच्छा, आप जानते हैं वहां बहूत कुछ है, मैं कुछ नहीं कर सकता. मैं कोशिश भी नहीं करने जा रहा हूँ." और कुछ परोपकारी कार्यकर्ता भी हैं जो इसे करुणामय श्रम कहते हैं. कुछ और हैं जो महसूस करते हैं कि वे करुणा का और सामना नहीं कर सकते, और इसलिए, वे अपना दूरदर्शन बंद कर देते हैं, और नहीं देखते. यहूदी धर्मं में यद्यपि, हम हमेशा कहते हैं कि एक बीच का रास्ता होना चाहिए. आपको, निःसंदेह, दूसरों कि जरूरतों से अवगत होना चाहिए, परन्तु आपको इस प्रकार अवगत होना है कि आप उसे अपनी जिंदगी के साथ ले कर चल सकें. और लोगों कि सहायता करें. अतः करुणा का एक पक्ष, यह समझ है कि क्या लोगों को जगाती है. और, निःसंदेह, यह आप तभी कर सकते हैं जब आप खुद को थोडा ज्यादा समझें. और एक प्यारी रब्बिनिक व्याख्या है सृष्टि के शुरुआत के बारे में जो कहता है कि जब भगवान् ने संसार का निर्माण किया, भगवान् ने सोचा कि संसार का निर्माण करना सर्वोचित होगा केवल न्याय के दिव्य गुणों के साथ. क्योकि, सब से ऊपर , भगवान् न्यायसंगत हैं. इसलिए, संपूर्ण संसार में न्याय होना चाहिए. और तब भगवान् ने भविष्य की ओर देखा और अनुभव किया यदि संसार का निर्माण केवल न्याय के साथ होता, तो संसार का कोई अस्तित्व नहीं होता. अतः, भगवान् ने सोचा, "मैं विश्व का निर्माण सिर्फ करुणा के साथ करने जा रहा हूँ" और तब भगवान् ने भविष्य की ओर देखा और अनुभव किया कि, वास्तव में, यदि संसार मात्र करुणा से भरा होता, तो यहाँ सिर्फ अराजकता और विशृंखलता होती. सभी की सीमाएं होनी चाहिए. रब्बी इसे एक राजा की तरह होना वर्णित करते हैं जिसके पास एक सुन्दर, नाजुक कांच का प्याला है. यदि आप इसमें बहूत ज्यादा ठंडा पानी भर दें, यह टुकड़े-टुकड़े हो जायेगा. यदि आप इसमें उबलता हुआ पानी भर दें, यह टुकड़े-टुकड़े हो जायेगा. आपको क्या करना है? दोनों का सम्मिश्रण भरें. और इसलिए भगवान् ने इन दोनों ही संभावनाओं की इस संसार में रखा. यद्यपि कुछ और भी है जिसे वहां होना है. और वह है भावनाओं का अनुवाद जो हमारे पास हो सकता है करुणा का इस व्यापक संसार में, कर्म में, आप जानते हैं, स्नूपी की तरह, हम वहां पर पड़े नहीं रह सकते अपने पड़ोसियों के बारे में महान विचार नहीं सोच सकते. हमें वास्तव में इस बारे में कुछ करना है. और इसीलिए, यहूदी में, प्रेम और दयालुता की भावना भी है जो बहूत ही महत्वपूर्ण हो जाती है. अनुसरित होती है. इन तीनो को तब सम्मिलित होना है न्याय का विचार, जो हमारे जीवन को सीमाएं देता है और अनुभव देता है, जीवन में क्या सही है, जीवनयापन में क्या सही है, हमें क्या करते रहना चाहिए, सामाजिक न्याय. अच्छे कर्मो को करने की इच्छा होनी चाहिए, परन्तु, हमारी स्वस्थ मानसिकता की कीमत पर बिलकुल नहीं. आप जानते हैं, किसी के लिए कुछ भी करने का कोई मार्ग नहीं है, यदि आप हद से ज्यादा करते हैं. और इन सब को मध्य में संतुलित करना, करुणा की धारणा है. जिसे वहां होना है, यदि आप चाहें, हमारी मूलों में. हमें करुणा का विचार आता है क्योंकि हम भगवान् की प्रतिमूर्ति हैं. जो, अंततः, परम करुणामय है. करुणा क्या बतलाती है? यह बताती है दूसरों का दुःख समझना. परन्तु उससे भी ज्यादा, इसका मतलब है इस सम्पूर्ण सृष्टि से अपने सम्बन्ध का ज्ञान. यह ज्ञान कि हर कोई इस सृष्टि का एक अंग है, कि एक एकता कायम है सब जो हम देखते हैं, सब जो हम सुनते हैं, सब जो हम अनुभव करते हैं. मैं उस एकता को इश्वर कहती हूँ. और यह एकता ही है जो सम्पूर्ण सृष्टि को मिलाती है. और, बिलकुल, आधुनिक संसार में, पर्यावरण संबंधी गतिविधियों के साथ, हम लोग संबंधों से और भी ज्यादा अवगत होते जा रहे हैं, कि अगर हम कुछ यहाँ करते हैं तो वो वास्तव में अफ्रीका में प्रभाव डालता है, कि यदि मैं अपने कार्बन वृति का ज्यादा इस्तेमाल करती हूँ, तो ऐसा प्रतीत होता है कि, हम कारण बन रहे हैं, मध्य और पूर्वी अफ्रीका में एक बहूत बड़ी बर्षा की कमी का. अतः एक सम्बन्ध है. और मुझे समझना है कि सृष्टि के एक हिस्से के अंश के रूप में, इस पक्ष में कि मैं इश्वर की प्रतिमूर्ति हूँ. और मुझे समझना है कि मेरी आवश्यकताएं कभी-कभी दूसरी आवश्यकताओं में परिशोधित होनी हैं. यह १८ मिनट का कार्य, मुझे पूर्णतया मोहित करता है. क्योंकि, यहूदी में, यह शब्द, संख्या १८, हिब्रू अक्षरों में, ज़िन्दगी के लिए है, शब्द ज़िन्दगी. अतः, एक तरह से, यह १८ मिनट मुझे यह कहने के लिए ललकार रहे हैं कि जीवन में, यही है जो करुणा के लिये महत्त्वपूर्ण है, परन्तु कुछ और भी है. वस्तुतः, १८ मिनट महत्त्वपूर्ण हैं. क्योंकि अन्तःगति में, जब हमें सुखी (बिना खमीर की) रोटी खानी होती है, रब्बी बताते हैं कि क्या फर्क है उस लोई में जिससे रोटी(खमीर वाली) बनती है, और उस लोई में जिससे सुखी रोटी(बिना खमीर वाली) बनती है, मत्ज़ा. और वे बताते हैं यह है १८ मिनट. क्योंकि इतना ही समय लगता है, वे बताते हैं इस लोई में खमीर पैदा होने में. क्या मतलब है, लोई में खमीर आ जाता है? इसका मतलब है यह गर्म हवा से भर जाती है. मत्ज़ा क्या है? सुखी रोटी क्या है? आप नहीं जानते. प्रतीकात्मक रूप से, रब्बी कहते हैं, अंत समय में, जो हमें करना पड़ता है मुक्त होने के लिए हमारे गर्म मिजाज़ से, हमारे अहंकार से, हमारी सोच से कि हम इस सम्पूर्ण संसार में सबसे महत्वपूर्ण लोग हैं, और यह कि सब कुछ हमारे चारों ओर ही घुमनी चाहिए. अतः हम कोशिश करते हैं और उनसे मुक्ति पाते हैं, और ऐसा करते हुए, मुक्ति पाने की कोशिश में आदतों से, भावनाओं से, उस विचार से जो हमें गुलाम बनाती हैं, हमारी आँखें बंद कर देती हैं, हमारी दृष्टि को संकीर्ण करती हैं ताकि हम दूसरों की जरूरतों को नहीं देखें, और स्वयं को स्वतंत्र करें और इससे स्वतंत्र करें. और वह भी करुणा होने का एक आधार है, विश्व में हमारा स्थान समझने के लिए. अब, यहूदी में, एक मनमोहक कथा है एक धनवान व्यक्ति की जो एक दिन एक आराधनालय (पूजा स्थल) में बैठा. और, जैसा कि बहूत लोग करते हैं, वह धर्मोपदेश के दौरान ऊंघ रहा था. और जब वह ऊंघ रहा था, वे सब तोरह में लेवितिकुस कि पुस्तक से पढ़ रहे थे. और वे कह रहे थे कि प्राचीन काल में जेरुसलम के मंदिर में, पुजारियों के पास रोटी होती थी, जिसे वे जेरुसलम के मंदिर में एक विशेष मेज़ पे रखते थे. वह आदमी सोया हुआ था, परन्तु उसने उन शब्दों को सुना, रोटी, मंदिर, भगवान्, और जाग गया. उसने कहा, "भगवान् रोटी चाहते हैं. बस इतना ही. भगवान् रोटी चाहते हैं. मैं जानता हूँ कि भगवान् रोटी चाहते हैं." और वह घर की ओर भागा. थोड़े आराम के बाद, उसने १२ रोटियाँ बनायीं. उन्हें लेकर पूजा स्थल गया, पूजा स्थल के अन्दर गया, वहां रखा संदूक खोला और कहा, "भगवन, मैं नहीं जानता आप ये रोटियाँ क्यों चाहते हैं, पर वे यहाँ हैं." और उसने उसे संदूक में तोरह की पुस्तकों के साथ रख दिया. तब वह वापस घर चला गया. सफाई कर्मचारी पूजा स्थल में आया. "हे भगवन, मैं इतने कष्ट में हूँ. मेरे बच्चे भूखे हैं. मेरी पत्नी बीमार है. मेरे पास पैसे नहीं हैं. मैं क्या कर सकता हूँ." वह पूजा स्थल के अन्दर जाता है. "भगवान् क्या आप मेरी मदद करोगे? आह!, क्या अद्भुत सुगंध है." वह संदूक के पास जाता है. वह संदूक को खोलता है. "वहां रोटियाँ पड़ी हैं. भगवान्, आपने मेरी प्रार्थना सुन ली. आपने मेरे प्रश्न का उत्तर दिया है." रोटियाँ लेता है और घर चला जाता है. इस बीच, धनी व्यक्ति स्वयं में सोचता है,
"det är så mycket som händer. jag kan inte göra någonting. det är ingen idé att ens försöka."