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"लोगों के पास जाओ। उनके साथ रहो, उनसे दिल मिलाओ। जो तुम्हें आता है, वहाँ से शुरुवात करो। जो उन्हें पता है, उसे आगे बढाओ।" ये नारा जीवन की दिशा परिभाषित करने वाला था। खैर, मैनें एक साल खपाया। मैने टेल्को कंपनी में भर्ती ली, टाटा के ट्रक बनाये, पुणे से नज़दीक ही। वहाँ मैने दो साल काम किया, और फ़िर मैने महसूस किया कि मेरा जन्म ट्रक बनाने के लिये नहीं हुआ था। अक्सर लोगों को पता नहीं होता कि वो क्या करना चाहते हैं, मगर इतना भी पर्याप्त है कि पता हो कि आप क्या करना नहीं चाहते। तो मैनें एक साल की छुट्टी ली, और मैं एक गाँव के विज्ञान कार्यक्रम में शरीक हुआ। और वहीं से मेरी दिशा बदल गयी। वो एक छोटा सा गाँव था -- एक साप्ताहिक हाट बाज़ार जहाँ लोग, बस हफ़्ते में एक बार, अपने सारे सामान इकट्ठा करते हैं। तो मैने कहा, "मै यहीं पर एक साल बिताऊँगा।" तो मैनें एक एक नमूना खरीदा हर उस चीज़ का, जो कि सडक के किनारे मिल रही थी। और एक चीज जो मुझे मिली वो थी ये काली रबड। इसे साइकिल का वाल्व ट्यूब कहते हैं। जब आप साइकिल में हवा भरते है, तो इसका कुछ इस्तेमाल होता है। और इन ढाँचों में से कुछ -- आप बस थोडे से साइकिल वाल्व ट्यूब लें, और उस में दो दियासलाइयाँ ऐसे लगा दें, और आपने एक लचकदार जोड बना दिया। ये ट्यूबों का जोड है। इस से आप कोणों के बारें में पढाना शुरु कर सकते हैं -- ये न्यून कोण (अक्यूट एंगल), ये समकोण (राइट एंगल), ये अधिक कोण (आबट्यूस एंगल), और ये रेखा कोण (स्ट्रेट एंगल)। इनका अपना खुद का जोड-तोड भी है। अगर आपके पास ऐसे तीन है, तो उन्हें जोड दीजिये, और ये बना त्रिभुज (ट्रायंगल)। चार मिला कर, आप एक वर्गाकार (स्कवायर) बना सकते है, ऐसे पँचकोण (पेंटागन), और फ़िर, षठकोण (हेक्सागन), और आप हर तरह की बहुभुजीय आकृतियाँ (पॉलीगन) बना सकते हैं। और इन सब की मजेदार खासियतें है। अगर आप षठकोण (हेक्सागन) को देखें, मिसाल के तौर पर, ये एक अमीबा की तरह है, जो लगातार अपनी रूपरेखा बदलता है। इसे थोडा खींच दीजिये, ये आयताकार (रेक्टेंगल) हो गया। इसे थोडा धक्का दीजिये, और ये बन गया समानांतर चतुर्भुज (पैरालैलोग्राम)। मगर इसमें बहुत झोल है। पँचकोण (पेंटागन) का उदाहरण लेते हैं, इसे बाहर खेंचिये --- ये एक नौका के आकार का असमांतर चतुर्भुज बन (ट्रेपीज़ियम) गया। इसे थोडा धकेल दीजिये, और ये झोपडी जैसा हो गया। ये बन गया समद्धिबाहु त्रिभुज (आइसोसेलेस ट्रायंगल) -- फ़िर से, इसमें भी बहुत झोल है। और ये वर्गाकार (स्क्वायर) लगता है बहुत ठोस। इसे थोडा स धक्का दो - ये समचतुर्भुज (रोम्बस) में बदल जाता है। ये पतंग जैसा लगने लगता है। मगर किसी बच्चे को एक त्रिभुज (ट्रायंगल) पकडा दीजिये, उसके साथ तोड-मरोड करना मुश्किल है। तो त्रिभुज (ट्रायंगल) का इस्तेमाल क्यों करें? क्योंकि त्रिभुज (ट्रायंगल) ही एकमात्र ठोस आकार है। हम वर्गाकार (स्क्वायर) से पुल नहीं बना सकते, क्योंकि जैसे ही रेलगाडी आयेगी, वो नाचने लगेगा। साधारण लोगों को ये ज्ञान है, क्योंकि जब आप भारत के गाँवों में जायेंगे, तो शायद वो इंजीनियरिंग न पढे हों, मगर कोई भी इस तरह की छत नहीं बनाता है। क्योंकि जब वो इस पर खपरैल डालेंगे, ये टूट जायेगी। वो हमेशा त्रिकोण (ट्रायंगल) के आकार की छत बनाते हैं। देखिये, ये लोक-विज्ञान है। अगर आप यहाँ छेद कर दें और एक तीसरी दियासलाई भी लगा दें, तो आपको टी-जोड मिल गया। और अगर इसकी तीनों टाँगों में छेद करूँ इनके तीन कोनों में, तो मैनें चतुष्फ़लक (टेट्राहेड्रन) बना दिया। तो आप हर प्रकार के त्रिआयामी आकार बना सकते हैं। आप ऐसा चतुष्फ़लक (टेट्राहेड्रन) बना सकते हैं। और एक बार आप ये बना लें, तो आप एक छोटा सा घर भी बना सकते हैं। इसे ऊपर रख दीजिये। आप चार का जोड भी बना सकते हैं। आप छः का जोड भी बना सकते हैं। आपको बस एक काँटा चाहिये। और ये -- आप छः का जोड बनाइये, आप ने समद्धिबाहु चतुष्फ़लक (आइकोसहेड्रन) बना डाला। अब इस के साथ जो चाहे करिये। ये तो इग्लू बन गया। और ये सब हो रहा है १९७८ में। मैं २४ वर्षीय युवा इंजीनियर था। और मैने सोचा कि ये सब ट्रक बनाने के मुकाबले बेहतर है। (अभिवादन) और, असल में, आप चार कंचे डाल दीजिये, आपने मिथेन का रासायनिक ढाँचा, बना लियी , सी.एच.४ हाइड्रोजन के चार अणु, चतुष्फ़लक के चार कोनों पर, जो कि कार्बन अणु को दर्शा रहे हैं। और तब से ही, मैने ये सोचा कि मैं बडा किस्मती हूँ कि मुझे २००० स्कूलों में जाने का मौका मिला -- गाँव के स्कूल, सरकारी विद्यालय, नगर निगम के स्कूलों में, आईवी लीग स्कूलों मे भी -- उनमें से ज्यादातर मुझे बुला चुके हैं। जब भी मैं किसी स्कूल में जाता हूँ, मुझे बच्चों की आँखों में एक चमक दिखती है। मुझे आशा दिखती है। मुझे उनके चेहरों में खुशी दिखती है। बच्चे चीज़ें बनाना चाहते हैं। बच्चे कुछ करना चाहते हैं। और ये देखिये, हम बहुत से पम्प बनाते हैं। ये एक छोटा सा पम्प है जिससे कि आप गुब्बारा फ़ुला सकते हैं। ये असली है। इस से सच में गुब्बारा फ़ूल जाता है। और हमारा एक नारा है कि खिलौने के साथ बच्च सबसे अच्छा काम उसे तोड कर ही करता है। तो क्या करना है --- ये असल में थोडा सा चुनौती भरा वक्तव्य है --- ये पुराना साइकिल का ट्यूब, और ये पुरान प्लास्टिक का पाइप ये टोपी बडे आराम से पुराने साइकिल के ट्यूब पर फ़िट हो जायेगी। और ऐसे हे तो वाल्व बनता है। थोडा सा चिपकने वाला टेप। बस एक दिशा वाला ट्रफ़िक हो गया। हम बहुत सारे पम्प बनाते हैं। और ये भी पम्प है -- बस एक नली लीजिये, और उसमें एक लकडी डाल दीजिये, और दो जगह आधा काट दीजिये। और फ़िर क्या कीजिये, इन्हें मोड कर त्रिभुज में बदल दीजिये, और फ़िर थोडा सा टेप लगा दीजिये। बस बन गया पम्प। और अगर ये पम्प आपके पास है, तो ये एक छिडकाव की मशीन बन गयी। जैसे कि बडी से मथनी। अगर आप किसी चीज को घुमायेंगे, तो वो बाहर की तरफ़ उडेगी। (अभिवादन) देखिये, अगर आप आंध्र प्रदेश में हो, तो आप पाल्मैरा की पत्तियों से इसे बनायेंगे। हमारे अधिकांश ग्रामीण खिलौने विज्ञान के मूल सिद्धांतो पर ही काम करते हैं। अगर आप कुछ घुमायेंगे, तो वो बाहर की तरफ़ भागेगा। दोनो हाथों से करने में बडा मज़ा आता है, मिस्टर उडाकू को देखिये। ठीक?
das motto der frühen 70er war: "geh zu den menschen. leb mit ihnen, liebe sie.