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i got trust issues because people have lying issue

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मुझे विश्वास के मुद्दे मिले क्योंकि लोगों के पास झूठ बोलने का मुद्दा है

Laatste Update: 2023-08-08
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because people have no ability to buy it . ”

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क्योंकि लोगों के पास उसे खरीदने का सामर्थ्य नहीं है . ”

Laatste Update: 2020-05-24
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amartya sen won his nobel prize for saying, "guess what, famines happen in the presence of food because people have no ability to buy it." we certainly saw that in 2008. we're seeing that now in the horn of africa where food prices are up 240 percent in some areas over last year.

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"बात यह है कि भोजन के मौजूद होने पर भी भुखमरी हो सकती है, क्योंकि लोगों के पास उसे खरीदने का सामर्थ्य नहीं है." बेशक हमनें 2008 में यही देखा. हम अब यही देख रहे हैं उत्तरपूर्वी अफ्रीका में जहां खाद्य पदार्थों के दाम पिछले साल में 240 प्रतिशत बढ़ गए हैं. खाना शायद हो भी, मगर लोग खरीद नहीं पा रहे हैं. खैर यह तस्वीर - मैं हेब्रोन में थी एक दुकान में, इस दुकान में, जहां भोजन पहुंचाने के बजाय, हम अंकीय भोजन लाते हैं, एक कार्ड के ज़रिये. यह अरबी में कहता है "शुभ आहार!" कोई महिला यहाँ आ सकती हैं और इस कार्ड के ज़रिये नौ तरह के खाद्य सामान खरीद सकती है. यह पौष्टिक होना चाहिए, और स्थानीय उत्पाद से बना हुआ. और हुआ यह, बस पिछले साल में, कि डेरी उद्योग में - जहां इस कार्ड का इस्तेमाल दूध, दही, अंडे और हम्मस (पीसे छोले) के लिए होता है- वहां डेरी उद्योग में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई. दुकानदार ज्यादा लोगों को नौकरी दे रहे हैं. यह सब के लिए फायदे का मामला है, और इससे खाद्य अर्थव्यवस्था की गति भी बढ़ती है. हम खाना पहुंचाते हैं तीस से अधिक देशों में, सेल-फ़ोन के माध्यम से, जिससे इन मुल्कों में मौजूद शरणार्थियों की स्तिथि में भी बदलाव आया है, अन्य कई माध्यमों के साथ ही. शायद मुझे सबसे ज़्यादा स्फूर्ति दिलानेवाला सुझाव यह है जिसका बिल गेट्स, हावर्ड बफेट और अन्य लोगों ने साहस से समर्थन किया है, यह प्रश्न पूछकर कि - क्यों ना, भूखे लोगों को पीड़ित के रूप में देखने के बजाय - और इनमें ज़्यादातर लोग छोटे किसान हैं जो न पर्याप्त अनाज उगा पाते हैं न उसे बेच पाते हैं अपने ही परिवारों को संभालने के लिए भी - हम क्यों ना इन्हें इस समस्या के समाधान के रूप में देखें, भूख के विरुद्ध युद्ध में जनबल के रूप में ? क्यों ना अफ्रीका की महिलाओं से, जो अनाज बेच नहीं पा रही हैं - यहाँ न सड़क हैं, न भण्डार न अनाज को उठाने के लिए तिरपाल- क्यों ना हम उन्हें ताकद दिलानेवाला एक माहौल पैदा करें जिसमें वे भोजन प्रदान कर सकेंगी अन्य इलाकों के भूखे बच्चों को खिलाने में ? और आज 'पर्चेसिंग फॉर प्रोग्रेस' (प्रगति के लिए क्रय ) 21 देशों में चालू है. और इसका नतीजा ? लगभग हर एक के मामले में, जब गरीब किसानों को आश्वासन दिलाया जाता है कि उनके माल के लिए बाज़ार मौजूद है - अगर आप कहेंगे, "हम इस माल के 300 मेट्रिक टन खरीदेंगे. इसका परिवहन हम करेंगे. हम इसका सही तरह से संचय करेंगे." - तो उनकी उपज दुगुनी, तिगुनी, चौगुनी तक हो जाती है और यह कर दिखाने में वे सफल हो जाते हैं, क्योंकि यही पहली बार है उनके जीवन में, जब उन्हें एक ऐसा भरोसेमंद मौका मिला है. और हम देखते हैं कि लोग अपने जीवन में परिवर्तन ला रहे हैं. आज, खाद्य सहायता, हमारी खाद्य सहायता, - एक महान गतिशील साधन - का 80 प्रतिशत क्रय विकासशील विश्व में होता है. यह संपूर्ण परिवर्तन है जो वास्तविक तौर पर सुधार ला सकता उन्हीं लोगों के जीवन में जिन्हें इस भोजन की आवश्यकता है. अब शायद आप पूछेंगे, क्या यह और बड़े स्तर पर ऐसा आयोजन संभव है ? यह बढ़िया सुझाव हैं, ग्राम्य स्तर पर. मैं बताना चाहूंगी ब्राज़ील के बारे में, क्योंकि मैंने ब्राज़ील की यात्रा की है पिछले दो सालों में, जब मैंने पढा कि ब्राज़ील भूख पर जीत पा रहा है, इस समय पृथ्वी के किसी भी राष्ट्र से अधिक तेज़ी से. और मैं जान सकी हूँ कि पैसों को खाद्य अनुदान अथवा अन्य चीज़ों में लगाने के बजाय, उन्होंने शालेय भोजन कार्यक्रमों में निवेश किया है. और वे यह लागू करते हैं कि इस भोजन का एक तिहाई भाग उन छोटे किसानों से आए, जिन्हें अब तक मौक़ा ही न मिला हो. और वे यह कर रहे हैं विशाल स्तर पर, जबसे राष्ट्रपति लूला ने अपने इस लक्ष्य की घोषणा की, कि सबको तीन वक्त का खाना मिलना ही होना चाहिए. और यह शून्य भूख योजना का खर्च, कुल देशी उत्पाद के आधे प्रतिशत से कम है और इससे कई लाखों लोगों का भूख और गरीबी से उद्धार हुआ है. इससे ब्राज़ील में भूख का चेहरा बदल रहा है, यह विशाल स्तर पर हो रहा है, और यह नए मौके पैदा कर रहा है. मैं वहां गयी हूँ, और मेरी मुलाक़ात हुई है उन छोटे किसानों से जिन्होंने अपना रोज़गार निर्माण किया है, इसके द्वारा मिले अवसर और आधार पर. अब अगर हम इस विषय की आर्थिक अनिवार्यता पर नज़र डालें, तो यह केवल करुणा का विषय नहीं है. हकीकत यह है, कि संशोधन द्वारा पता लगा है, कि भूख और कुपोषण से होनेवाला नुक्सान - जिसकी कीमत समाज को चुकानी पड़ती है, जिस बोझ को संभालना पड़ता है - प्रतिवर्ष के कुल देशीय उत्पाद का औसतन छह प्रतिशत है, और कुछ देशों में 11 प्रतिशत तक है. और अगर आप नज़र डालेंगे उन 36 देशों पर जो कुपोषण का सबसे भारी बोझ उठा रहे हैं, तो कुल मिलाकर 260 अरब का नुक्सान होता है उपजाऊ अर्थव्यवस्था से, हर साल. खैर, विश्व बैंक का अनुमान है कि 10 अरब डालर 10.3 -- लगेंगे इन देशों में कुपोषण को निबटाने में. आप ज़रा इसके फायदे और नुक्सान का हिसाब कीजिए, और मैं सपना देखती हूँ इस मुद्दे को प्रस्तुत करने का, केवल दया के वाद द्वारा नहीं, बल्कि विश्व के वित्त मंत्रियों के सामने रखने, और यह कहने, कि सम्पूर्ण मानव-जाति को पर्याप्त और अल्प-लागत भोजन दिलाने के लिए निवेश करने से इनकार करना, यह हमारे लिए असहनीय है. एक गज़ब की बात जो मैंने जानी है, वह यह है, कि विशाल स्तर पर कुछ नहीं बदल सकता एक नेता के दृढ़ निश्चय के बिना. जब कोई नेता कहते हैं, "मेरे होते हुए हरगिज़ नहीं!", तो सब कुछ बदलने लगता है _bar_ और अब दुनियाभर के लोग आ सकते हैं यहाँ साधक वातावरण और अवसर निर्माण करने. और यह बात कि फ्रांस ने

Laatste Update: 2019-07-06
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