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Потом.
अंततोगत्वा।
Laatste Update: 2017-10-13
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Kwaliteit:
- Потом!
-उसके बाद!
Laatste Update: 2017-10-13
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Kwaliteit:
А потом...
(weeping) और फिर...
Laatste Update: 2017-10-13
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Kwaliteit:
Что потом?
उसके बाद?
Laatste Update: 2017-10-13
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Kwaliteit:
Потом поговорим.
मैं आपसे बाद में बात करेंगे.
Laatste Update: 2017-10-13
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Kwaliteit:
Влево, потом вниз
आरपार तथा नीचे
Laatste Update: 2018-12-24
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Потом погубили других
(और हलाक हो गयी) फिर हमने उन लोगों को हलाक कर डाला
Laatste Update: 2014-07-03
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Kwaliteit:
Мне нравится ваш товар.
मैं तुम्हें क्या sellin रहे हैं ', औरत की तरह।
Laatste Update: 2017-10-13
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Неважно. Потом научу.
जाने दो, बाद में सिखा दूँगा।
Laatste Update: 2017-10-13
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Потом детали. Всегда!
paint का चुनाव सही होना चाहिए
Laatste Update: 2017-10-13
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Вот как запускают новый товар.
तो इस तरह से कुछ लॉन्च करते हैं।
Laatste Update: 2017-10-13
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Kwaliteit:
Меня выгрузили на пристань, словно товар.
मैं माल का एक टुकड़ा की तरह नाव मारा,
Laatste Update: 2017-10-13
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Он возит разный товар в Ирак на нашем муле.
वो हमारे खच्चर पे समान लाद कर इराक बेचने जाते हैं और वहाँ से दूसरा माल लेकर लौटते हैं
Laatste Update: 2017-10-13
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Ты переправишь товар, но мы тебе за это не заплатим.
अपने खच्चर पे सामान लादो, और उसका कोई पैसा नहीं मिलेगा
Laatste Update: 2017-10-13
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Проследи, чтоб клиент и товар спокойно доехали до дома.
हमारी ग्राहक और उसकी सम्पत्ति को सुरक्षित घर पहुँचा दो।
Laatste Update: 2017-10-13
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На рынке они загружают товар для Ирака и возвращаются с другим товаром.
बाज़ार से सामन लाद कर इराक जाना होता है और वहाँ से दूसरा माल लाद कर लाना होता है
Laatste Update: 2017-10-13
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И Тиряне жили в Иудее и привозили рыбу и всякий товар и продавали в субботу жителям Иудеи и в Иерусалиме.
फिर उस में सोरी लोग रहकर मछली और भांति भांति का सौदा ले आकर, यहूदियों के हाथ यरूशलेम में विश्रामदिन को बेचा करते थे।
Laatste Update: 2019-08-09
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Жизнь, свобода и стремление к счастью. Мы живём в поисках счастья во внешнем мире, как будто это товар. Мы стали рабами своих собственных желаний и стремлений
जीवन, स्वतंत्रता तथा प्रसन्नता का अनुगमन । हम प्रसन्नता को बाहर ढूंढने में जीवन बिता देते हैं मानों वह कोई वस्तु हो । हम अपनी इच्छाओं तथा लालसाओं के गुलाम बन गए हैं । प्रसन्नता कोई ऐसी वस्तु नहीं जिसे ढूंढा जाए या सस्ते सूट की तरह खरीदा जा सके । यह माया, भ्रम है रूप का अंतहीन खेल । बौद्ध परंपरा में, संसार या पीड़ा का अंतहीन चक्र, प्रसन्नता की अभिलाषा एवं पीड़ा से मुक्ति से परिपूर्ण है । फ्रॉयड ने इसे 'प्रसन्नता सिद्धांत़' के रूप में उल्लिखित किया है । हम वही सब करने का प्रयास करते हैं जिससे प्रसन्नता मिले या कुछ ऐसा प्राप्त किया जा सके जो हम चाहते हैं या उन सबसे छुटकारा, जो हम नहीं चाहते। यहां तक कि पैरामेशियम जैसा साधारण जीव यह कार्य करता है । इसे प्रेरक के प्रति प्रतिक्रिया कहा जाता है । पैरामेशियम से हटकर मनुष्यों के अधिक विकल्प हैं । हम सोचने के लिए स्वतंत्र हैं और वही समस्या का आधार है । हम चाहते क्या हैं, यही सोचना नियंत्रण से बाहर हो गया है । आधुनिक समाज की दुविधा यही है कि हम विश्व को समझना चाहते हैं, लेकिन अपनी आंतरिक चेतना से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक साधनों तथा विचारों के माध्यम से बाहरी संसार की मात्रात्मकता एवं गुणवत्ता मूल्यांकित करते हैं । चिंतन से केवल अधिक सोच-विचार एवं अधिकाधिक प्रश्न उत्पन्न होते हैं । हम जब आंतरिक संसार को जानना चाहते हैं जिससे विश्व उत्पन्न और दिशा-निर्देशित होता है, तब हम इस सारतत्व को बाहरी रूप से ग्रहण करने लगते हैं । हम इसे एक जीवंत वस्तु या अपनी प्रकृति के अंतर्भूत के रूप में ग्रहण नहीं करते । प्रसिद्ध मनश्चिकित्सक कार्ल जुंग जिन्होंने कहा "वह व्यक्ति जो बाहर देखता है, वह सपने देखता है और वह जो अपने अंदर झांकता है, वह जागृत हो जाता है ।" जागने और प्रसन्न होने की इच्छा गलत नहीं है । गलत यह है कि खुशी को बाहर तलाशा जाए, जबकि इसे केवल भीतर पाया जा सकता है । भाग चार: सोच से आगे- लेक तहोए, कैलिफोर्निया, एरिक श्मिट- गूगल के सीईओ की शिल्पविज्ञानी सम्मेलन में 4 अगस्त, 2010 को उल्लिखित विस्मयकारी सांख्यिकी । श्मिट के अनुसार, सभ्यता के प्रारंभ से 2003 तक हमने जितनी सूचना निर्मित की, उतना अब हम प्रत्येक दो दिन में उत्पन्न करते हैं । जो है 5 एक्साबाईट्स डेटा के बराबर । मानव इतिहास में कभी इतनी सोच नहीं रही और न ही ग्रह पर इतनी हलचल। ऐसा तो नहीं कि हम हर समय किसी एक समस्या का समाधान तो कर नहीं पाते, दो और समस्याएं उत्पन्न करते हैं? क्या यह सोच ठीक है जो अत्यधिक प्रसन्नता की ओर न ले जाए? क्या हम अधिक प्रसन्न हैं? अधिक स्थितप्रज्ञ? क्या इस प्रकार की सोच से अधिक आनंदित हैं? या यह हमें जीवन के गहन तथा अधिक अर्थपूर्ण अनुभव से अलग या असंबद्ध करती है? सोचना, क्रियाशील होना और कार्य करना, इन्हें जीव के अस्तित्व के साथ संतुलित करना होगा । अंततोगत्वा हम मनुष्य हैं, मनुष्य के कार्य नहीं । हम परिवर्तन और स्थायित्व एक साथ चाहते हैं । हमारा हृदय जीवन के सर्पिल से, परिवर्तन के नियम से असंबद्ध हो गया है, चूंकि हमारा सोचने वाला मस्तिष्क हमें स्थिरता, सुरक्षा तथा चेतनाओं के शमन की ओर संचालित करता है । विकृत सम्मोहन से हम हत्या, सुनामी, भूकंप एवं युद्धों को देखते हैं । हम लगातार अपना मन मस्तिष्क व्यस्त रखते हैं और उसमें सूचनाएँ भरते हैं। हर कल्पनीय उपकरण से टीवी कार्यक्रमों का प्रसारण। खेल और पहेलियाँ । पाठ संदेश । और प्रत्येक संभव मामूली कार्य । हम अपनी चेतनाओं व संवेदनों के शमन के लिए नई छवियों, नई सूचना तथा नए तरीकों से अनंत बहाव में स्वयं घिर जाते हैं । शांत आंतरिक चिंतन के समय हमें हृदय में एहसास होता है कि हमारी वर्तमान वास्तविकता से आगे भी जीवन है चूंकि हम भूखे प्रेतों के संसार में जीते हैं । अनंत लालसाओं से भरे और कभी संतुष्ट न होने वाले । ग्रहों के आसपास हमने इतने आंकड़े फैलाए हैं, जिनमें संसार के निर्धारण और समस्याओं के निर्धारण के लिए इतनी सोच, इतने विचार दिए, जो केवल इस कारण से हैं चूंकि ये मस्तिष्क से निकले हैं । सोच ने इतना सारा बखेड़ा पैदा किया है जिसमें रहने के लिए हम अभिशप्त हैं । हम बीमारियों, शत्रुता और समस्याओं से जूझते रहते हैं । विडंबना यह है कि जिसका हम प्रतिरोध करते हैं वही अस्तित्व में है । आप जिसका जितना प्रतिरोध करते हैं, वह उतना ही ताकतवर हो जाता है । मांसपेशियों के व्यायाम की तरह, जिससे आप छुटकारा पाना चाहते हैं, दरअसल उसे मजबूत बना रहे हैं । ऐसे में, सोचने का विकल्प क्या है ? इस ग्रह पर अस्तित्व बनाए रखने के लिए मनुष्य किस अन्य प्रक्रिया का प्रयोग कर सकता है? यद्यपि हाल की शताब्दियों में पश्चिमी संस्कृति ने चिंतन तथा विश्लेषण का प्रयोग करते हुए भौतिक को उद्भासित किया, तथापि अन्य प्राचीन संस्कृतियों ने आंतरिक विकास के लिए समान रूप से सुविज्ञ प्रौद्योगिकी विकसित की है । हमारे आंतरिक संसार के साथ हमारा संपर्क टूटने के कारण ही हमारे ग्रह पर असंतुलन उत्पन्न हुआ है । प्राचीन आप्त वाक्य "स्वयं को जानो" को रूप के बाहरी संसार के अनुभव की कामना से प्रतिस्थापित किया गया है ।
Laatste Update: 2019-07-06
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Он отметил, что туалетная бумага представляет собой громоздкий товар, поэтому количество складских запасов невелико, а после распродажи всего объема товара длинные ряды полок остаются пустыми, усиливая ощущение нехватки запасов.
उन्होंने बताया कि टॉयलेट पेपर एक भारी आइटम होता है, अतः इसका अधिक संख्या में स्टॉक नहीं हो पाता है, और फिर, सारा स्टॉक बिक जाने पर पीछे बड़ी-बड़ी शेल्फ़ खाली छूट जाती हैं, जिससे कमी का एहसास और कठोर हो जाता है।
Laatste Update: 2020-08-25
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