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maza aavadta vishay in marthi

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maza aavadta vishay में marthi

Последнее обновление: 2017-02-10
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maza aavadta vishay in marathi

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maza aavadta vishay में मराठी

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maza aavadata vishay in marathi essay

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मराठी निबंध में माजा आवादित विवाद

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maza avadta vishay in marathi language marathi

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मराठा भाषा मराठी में maza avadta vishay

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marathi essay maza aavadta sant

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मराठी निबंध मजा आवदा संत

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the fun they had in marthi translation

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मार्थी अनुवाद में उन्हें जो मज़ा आया

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mi doctor zalo tar essay in marthi

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मार्शि में मील डॉक्टर ज़ेलो टैर निबंध

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marathi essay about ramya sandhyakal in marthi

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ramya sandhyakal के बारे में मराठी निबंध

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to break the tuber of sexuality (vishay) in this current era of kaliyug (the time cycle characterized by lack of unity in thought, speech and acts) this disease is most definitely very big.

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विषय की ग्रंथि तोड़ने के लिए प्रतिक्रमण पारायण - 2009 कलियुग में यह रोग बहुत बड़ा है ही अगर किसी ने पूर्वजन्म में भावना की होगी तो ही यह रोग कम होता है लेकिन तब दूसरे प्रकार का अहंकार बढ़ गया होता है लेकिन यह दोष तो... आज हम अपने दोष लेंगे कि जहाँ दृष्टि दोष, विचार दोष चिंतवन से, कल्पनाएँ करके विषय की विकृति उभर गई हों स्पर्श किए हों, स्पर्श में और भी आगे बढ़ें हो उससे भी आगे आचार दोष इस तरह से अलग-अलग प्रकार से विषय के दोष हो गए हों जिस लेवल तक किए हों उस लेवल से वापस मुड़ना है और उसके लिए बहुत पश्चाताप करना अच्छा है क्योंकि यह रौद्रध्यान का ही एक प्रकार है कल्पनाएँ करके... सामनेवाले व्यक्ति के साथ कल्पना से विषय भोग यह एक बहुत बड़ी हिंसा ही है और एक विषय भोग से करोड़ों जीवों की हिंसा, वह तो खुली हिंसा ही है और फिर जितना पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) सुख लिया उसके रिपेमेन्ट में झगड़े-क्लेश और कषाय और आज पति-पत्नी की बात कही न कि पति डंडे से मारता है और पत्नी क्लेश करके झगड़े-तूफान करती है देखो, कई गलत कर्म बंधने में देर नहीं लगती यानी एक विषय में से कितना बड़ा संसार खड़ा हो जाता है और बच्चों के साथ क्लेश फिर जब बेटा शादी करके बहू लाता है तो बहू के साथ क्लेश बहू के बच्चों के साथ मोह यानी अत्यंत द्वेष-राग, द्वेष-राग शंका, आक्षेप और फिर अभिप्राय निरे दोषों के कारखाने खड़े हो जाते हैं लेकिन यह सिर्फ विषय के मोह में से... इसलिए आज विषय को विषय में दृष्टि दोष, विचार दोष उन सभी को हमें पश्चाताप करके धो लेना हैं कि हमें इस जगत् के एक-एक व्यक्ति के साथ का संबंध छोड़कर मोक्ष में जाना है तो जहाँ-जहाँ भाव बिगड़ गए हों वहाँ हमारा संबंध बंध जाता हैं (परपुरूष को देखकर) पत्नी भी भाव बिगाड़ती है कि कितना अच्छा है और हम भी भाव बिगाड़ते हैं कि कितनी सुंदर है आँखे मिलने पर अंदर बीज डल गए ऐसे तो कितने ही रोज़ के 25-50, या 100 सौदेबाज़ी कर लेते हैं और 7-8 साल की उम्र से जो भाव बिगड़ने शुरू हो जाते हैं वे 40-50 साल की उम्र तक फोर्स से अंदर माल फूटता ही रहता है और किसी भी जन्म में भान ही कहाँ था कि विषय गलत है और यह ज्ञान मिलने के बाद मुश्किल से समझ में आया कि विषय गलत है तो जवानी से लेकर अब तक कितने ही दृष्टि दोष, विचार दोष, चिंतवन दोष फिर स्पर्श दोष, दोष छेड़खानी द्वारा किए और आचार दोष तक के जो-जो दोष हो गए हैं बहुत पश्चाताप करना है छठी कलम में सब आ जाता है छठी कलम बार-बार बोलने जैसी है कि "विषय-विकारी दोष, इच्छाएँ, चेष्टाएँ अथवा विचार संबंधित दोष न करूँ ऐसी शक्ति दीजिए न करवाऊँ या करवाने के प्रति अनुमोदना न करूँ किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति" यह तो इतनी विकृतियाँ बढ़ गई हैं कि पुरूष को पुरूष के साथ पुरूष को स्त्री के साथ या स्त्री को स्त्री के साथ या स्त्री को पुरूष के साथ छोटा बच्चा हो या बुज़ुर्ग हो कहीं भी दृष्टि बिगाड़े बगैर रह नहीं पाते इतने कचरे खड़े हो जाते हैं दादा से जब भी पूछते कि हम कौन सी सामायिक करें तब दादा कहते थे कि विषय-विकारी दोष पर करो न क्योंकि वह इतना खतरनाक दोष है कि अधोगति में ले जाएगा और आचार दोष तो नर्क में भी ले जाए लेकिन अगर हम बहुत पश्चाताप... जितनी मिठास के साथ दोष किए हैं मिठास से भोगे हैं अगर उन्हें पश्चाताप करके धोते जाएँगे तो पश्चाताप करने से रौद्रध्यान से आर्तध्यान होगा और हृदयपूर्वक पश्चाताप करेंगे तो आर्तध्यान से धर्मध्यान में चला जाएगा हमारे गुनाह धुल जाएँगे और सेफ-साइड हो जाएगी इसलिए आज खास-तौर से एक-एक दृष्टि दोष और अन्य दोषों पर बहुत पश्चाताप करेंगे और शादी कर ली यानी हज़बेन्ड-वाइफ को विषय भोगने की स्वतंत्र्ता ही होती है लेकिन उसमें भी विषयांध होकर बहुत विकृतियों से विषय दोष भोगे हैं इस प्रकार के भी दोष किए हैं करने में कुछ बाकी ही नहीं रखा है एक को पसंद हो और दूसरे को नापसंद हो तो आमने-सामने दुःख देकर विषय भोग लिया हो यानी हकवाले में भी तकलीफ देकर भोग लिया हो अणहक में राज़ी-खुशी से लेकिन औरों को धोखा दिया दुःख दिए, विश्वासघात किया कितने बड़े गुनाह हो जाते हैं और वैसे भी कल्पना से विकृति में तो अनंत कल्पनाएँ और बचपन से... बच्चा हो या किसी भी स्थिति में, लोग भोग लेते हैं या हमें भी भोगने देने में मज़ा आ जाता है 5-7 साल की उम्र से ही सभी विकृतियाँ शुरू हो जाती हैं इस विषय की कुतुहल वृत्ति में तो कितने ही दोष हो जाते हैं यानी तरह-तरह के, बस-स्टैन्ड पर हो या स्कूल-कॉलेज में, रास्ते पर यहाँ-वहाँ जहाँ भी स्त्री पर दृष्टि पड़ी हो तो पुरूष को स्त्री के प्रति और स्त्री को पुरूष के प्रति बिगड़ती है इतना ज़्यादा यह... और मनुष्य में इसकी बहुत बड़ी ग्रंथि होती ही है विषय संज्ञा कहलाती है और कषाय में मान यानी मान और विषय सभी मनुष्यों में ये बड़े रोग होते ही हैं फिर प्रमाण में कम-ज़्यादा हो सकता है लेकिन रोग होता ही है इसे अटकण (बंधनरूप) कहते हैं अटकण यानी उसमें सारा भान भूल जाते हैं गुनाह करते समय पता ही नहीं चलता कि गुनाह कर दिया भान में आने के बाद पता चलता है कि यह तो गुनाह कर दिया इसलिए बहुत सावधान रहने जैसा दोष है जैसे मान में जोखिम है वैसे ही विषय में भी उतना ही जोखिम है इसलिए हमें हज़बेन्ड-वाइफ के बीच कंट्रोल करना ऐसा नहीं सिखाते है लेकिन एक-दूसरे को दुःख न हो जाए एक-दूसरे को समाधान रहे दादा कहते हैं न कि अगर दोनों को बुखार आया हो तो दवाई ले सकते हैं एक को आया हो और दूसरे को न आया हो तो क्लेश मत करना धीरे-धीरे तप करो, समझो और समाधानपूर्वक आगे बढ़ना लेकिन आज हम खास तौर से बचपन से लेकर आज तक किए गए विषय के सभी दोषों पर बहुत पश्चाताप करेंगे प्रतिक्रमण करेंगे और वह खास तौर पर करने जैसा है जितने भी हिंसा, चोरी, झूठ फिर यह विषय, और फिर मान से हमने सामायिक के अलग-अलग प्रकार लिए उन्हें याद रख के नोट-डाउन करके, धीरे-धीरे करते ही रहना हम पूरी ज़िंदगी के सभी दोषों को धो लेना चाहते हैं हमें और एक ही जन्म (एकावतारी) लेना है अब हम विधि करेंगे ये सारे दोष सभी की समझ में आ जाएँ, ऐसी ही बातें हैं इसमें कुछ मुश्किल नहीं है याद करना, सब दिखेगा कहाँ रहते थे? कौन से स्कूल में जाते थे? उस रास्ते पर कुछ हुआ था? स्कूल के आसपास कुछ हुआ था? जब कॉलेज में आए तब कौन था, कैसे था, सब मिलेगा आपको परिस्थितियाँ, स्थान, क्षेत्र फिर आप कहीं घूमने गए हों बस-स्टैन्ड, एरपॉर्ट, बगीचे में गैलेरी में खड़े रहें या बस-स्टैन्ड पर खड़े रहें नज़र बिगाड़ने का धंधा कहाँ-कहाँ दृष्टि बिगड़ी या विचार या कल्पनाएँ, बस या ट्रेन में चढ़ते हुए छेड़खानी कर लेते हैं स्पर्श दोष कर लेते हैं तरह-तरह के दोष हो गए होते हैं फिर सत्संग में भी आरती करते वक्त खड़े रहकर हम भगवान के सामने देखते हैं और घूमकर यह भी देखते हैं कि वह आया या नहीं, वह आई या नहीं कहीं भी दोष... भगवान की उपस्थिति में भी दोष करना नहीं छोड़ते अंदर इतनी ज़्यादा विकृतियाँ ऐसा क्यों... क्योंकि अहंकार भूखा है सारी वृत्तियाँ... पहले कभी इन दोषों के प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान किए ही नहीं है और इसलिए ये सारी बे-लगाम वृत्तियाँ विषय की ओर चली जाती हैं सभी में कम-ज़्यादा होता ही है यह दोष कम हो तो कम और ज़्यादा हो तो ज़्यादा हमारे अंदर जितना भी हो उतना अभी हम साफ करना चाहते हैं और शादी की यानी कितना मोह होगा तभी तो शादी की न?

Последнее обновление: 2019-07-06
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