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a chance at our rebirth.
हमारे पुनर्जन्म पर एक मौका.
Senast uppdaterad: 2017-10-12
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Kvalitet:
that bird gained rebirth as kakbhushandi
उसी पक्षी का पुनर्जन्म काकभुशुण्डि के रूप में हुआ ।
Senast uppdaterad: 2020-05-24
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Kvalitet:
the idea of rebirth is embedded in the notion of karma .
कर्म की धारणा में पुनर्जन्म का विचार समाहित है ।
Senast uppdaterad: 2020-05-24
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in a parallel process , the rebirth of china took place .
इसके साथ - साथ चीन का भी पुनर्जन्म हुआ ।
Senast uppdaterad: 2020-05-24
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Kvalitet:
every hindu believes in god and his oneness , in rebirth and salvation .
हर हिन्दू ईश्वर ओर उसकी अद्वितीयता में विश्वास करता है , पुनर्जन्म और मोक्ष को मानता है ।
Senast uppdaterad: 2020-05-24
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Kvalitet:
as in hindu religion islamic religion do not believe on reincarnation or rebirth .
इस्लाम में हिन्दू धर्म के समान समय के परिपत्र होने की अवधारणा नहीं है ।
Senast uppdaterad: 2020-05-24
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the motivation for rebirth is provided in the unfailing efficacy of a sage ' s curse .
पुर्नजन्म का प्रयोजन ऋषि के शाप का निष्फल प्रभाव है ।
Senast uppdaterad: 2020-05-24
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as he stroked his beard , jeevan mashay pondered over the changed notions of life and rebirth .
जीवन महाशय अपनी दाढ़ी सहलाने लगते और हंस पड़ते ।
Senast uppdaterad: 2020-05-24
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around him was centred the whole of the rebirth of bengal in the intellectual , religious and social fields of progress .
प्रगति के बौद्धिक , तरू दत्त धार्मिक और सामाजिक क्षेत्रों से बंगाल का पूरा नवोदय उन्हीं के चौगिर्द केन्द्रित था ।
Senast uppdaterad: 2020-05-24
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in many tribal groups the grandparents are believed to have taken rebirth in their own families and thus the grandchildren are named after them .
अनेक जन जातियों में यह विश्वास है कि दादा - दादी अपने ही परिवार में फिर से जन्म लेते हैं और इसी कारण नाती पोतों को उन्हीं का नाम दिया जाता है ।
Senast uppdaterad: 2020-05-24
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' it was quite natural for kolhatkar the rationalist to satirise those who made capital out of concepts like rebirth for selfish reasons .
ऐसे बुद्धिवादी व्यक्ति पुनर्जन्म - जैसी कल्पनाओं को अपनी स्वार्थसिद्धि के काम में लाने वाले व्यक्तियों का उपहास करें , यह स्वाभाविक ही था ।
Senast uppdaterad: 2020-05-24
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therefore attachment to the escape from rebirth is one of the idols which , whoever keeps , the sadhaka of the integral yoga must break and cast away from him .
अतएव , आवागमन से छुटकारे में आसक्ति एक ऐसी प्रतिमा है जिसे और कोई भले ही सुरक्षित रखे , पर २७४ योग - समन्वय जिसे पूर्णयोग के साधक को तोड़ कर अपने से दूर फेंक देना होगा ।
Senast uppdaterad: 2020-05-24
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apart from prahlad ' s , this story is also related to demon dhundi , legend based on radha krishna and the rebirth of kamdev .
प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी # 44 ; राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है ।
Senast uppdaterad: 2020-05-24
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more or less contemporary with kabir was the renowned saint guru nanak born ad 1469 who founded a new religious movement by blending the concept of the unity of god which was closely allied to the islamic concept with the hindu doctrine of rebirth .
सुप्रसिद्ध संत गुरू नानक और कबीर को लगभग समकालीन थे , जन्म 1469 ई . , जिन्होनें ईश्वर की एकात्मकता की अवधारणा को आत्मसात करते हुए एक नए धार्मिक आंदोलन की नींव रखी , जो हिंदुओं पुनर्जन्म के सिद्धांत के साथ इस्लाम की अवधारणा से घनिष्ठ रूप से संबधित रूप से संबधित था ।
Senast uppdaterad: 2020-05-24
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rajaraja varma did not want to retain the old title kerala paniniyam for the revised work as it had undergone almost a rebirth ; but his friends thought the goodwill for that name need not be lost and thus the new edition came to retain the title .
राजराज वर्मा इस संशोधित पुस्तक का नाम वही पुराना केरल पाणिनीयम् नहीं रखना चाहते थे क्योंकि इसका लगभग पुनर्लेखन कर दिया गया था परन्तु उनके मित्रों ने सोचा कि उस शीर्षक की ख्याति लुप्त न हो इसलिए वही शीर्षक रहने दिया गया ।
Senast uppdaterad: 2020-05-24
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for our entire nature and its environment , all our personal and all our universal self , are full of habits and of influences that are opposed to our spiritual rebirth and work against the whole - heartedness of our endeavour .
कारण , हमारी सारी प्रकृति तथा इसकी परिस्थिति और हमारी सब व्यक्तिगत एवं निश्वगत सत्ता कुछ ऐसे अभ्यासों और प्रभावों से परिपूर्ण है जो हमारे आध्यात्मिक नवजन्म के प्रतिकूल हैं और हमारे पूरे दिल से किये गये पुरुषार्थ का भी विरोध करते हैं ।
Senast uppdaterad: 2020-05-24
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it is because of this moha, that the worldly cycle of birth-rebirth is perpetuated get married, expand the family, then die, then marry again, then die again, and repeat the same process again how much moha should one have for one's children?
यानी इस मोह के आधार पर इस संसार के चक्कर चालु हैं। शादी करो संसार बड़ा बढ़ाओ फिर शादी करो फिर मरो। फिर शादी करो फिर मरो यही चलता रहता है। बच्चों कें लिए मोह कितना रखना चाहिए यानी फरज। मोह तो नही बिल्कुल भी नही होना चाहिए लेकिन फरज कितनी रखनी है तो कहे कि आपकी पढ़ाने की फरज है। उनकी जो जरूरियात हैं। कपड़े-लते ये-वो उसकी जरूरत वे फरज भी पूरी करनी हैं। गेम्स खेलना चाहते हों तो थोड़ी सी वह फरज फिर उनकी शादी करवाने की फरज। फिर अपने हिन्दुस्तान में तो शादी करवाने की और नौकरी धंधे पर लगना हो तो वह भी लगवा देना है। धंधे में कोई जरूरत कुछ जान-पहचान करवानी हो तो वहाँ आपको थोडी हेल्प करनी है फिर उस हेल्प में भी लिमीट। कहना है कि ये पैसे व्याज पर हैं मेरे नहीं हैं ऐसा कर के हेल्प करनी है तो उसे लौटाने का टेन्शन रहेगा नहीं तो बाप के पैसे उड़ाएगें। और फिर कहना है कि पैसे इकटठे करके तुझे तेरा घर बनाना है हं यह ध्यान में रखना। मेरी विरासत में तुझे कुछ मिलने वाला नहीं है, क्या? तो उसे जोश रहेगा वनॉ उड़ाऊ बन जाएगा यानी बेलेन्स रखना है। इस मोह से क्या होता है कि जोश यानी सब कुछ उड़ा ही देते हैं। बेटा सब तेरा ही है न तेरा ही है न ऐसे बोलते रहते है, हं। हम कहाँ साथ ले जाने वाले हैं। सब कुछ तुझे ही दे कर जाने वाले हैं सब कुछ तुझे ऐसा बोलते रहते हैं। अरे। ऐसा बोलना नहीं चाहिए। जितना दे सको उतना देना है वह आपके अंदर की बात है। बचां हुआ आप अपने धर्म के लिए खर्च करो न। आपको अपना कुछ नहीं लगेगा! सब माप के अनुसार होना चाहिए। इतने यहाँ बेटे को दीए इतने बेटीयों को दे कर फिर बाकी आप धर्म में खर्च करो जो आनेवाले जन्म की हुंडी है आपकी सीमंधर स्वामी के पास जाना है मोक्ष में जाना है तो चाहिए न! दादा कहते थे कि ओवरड्राफ्ट निकलवा लो। कहते थे कि पुण्य में कुछ होगा तो और जहाँ ऋणानुबंध बांधना है वहीं आप इस तरह इससे जुड़ सकते हो। दादा कहते हैं जिसमें पैसे खर्च करोगे उसमें आपका दिल लगा रहेगा ऐसा नियम है। यह तो सब गटर में चला जाएगा उसकी लिमीट नहीं रखते, क्या? मोह के मारे, क्या? ऐसा अंधा मोह नहीं होना चाहिए फिर बच्चे बिगड़ते हैं। उसे लगता है कि आते ही रहते हैं न बाप कमाते हैं और मेरे लिए ही कमाते हैं न तो फिर मैं किस लिए कमाऊं। मुझे मेहनत करने की क्या जरूरत है? करो मजा। उल्टा, बिगड़ते हैं, क्या? यानी सब दादा ने तो यहाँ तक कहा है कि घर में बुजुर्ग हों पुरूष हो तो उसे थोड़े-थोड़े दिन पर पंद्रह दिनों में महीने में एक बार कहना चाहिए कि आज सब्जी के लिए पैसे नहीं हैं दलहन बना लेना। तो सब को लगेगा कि इतने पैसे हैं और ऐसा क्यों कह रहे हैं? तब कहे इनका दिमाग खराब न हो जाए घर में सब को लगेगा कि ये तो नल खोलें इसलिए पैसे आते ही हैं इसलिए खर्च करो। उन्हें ऐसा थोड़ा सा लगना चाहिए कि नहीं ऐसी छूट नहीं है सब माप के अनुसार ही खर्च करना चाहिए, ऐसा। व्यवहार में ऐसा रखना चाहिए, क्या? बहुत, एक्जेट बेलेन्स व्यवहार बताया है, क्या? कहीं भी इस मोह के लिए तो दादाने बहुत कहा है। बच्चों के प्रति मोह से ही बच्चे बिगड़ते हैं। जितना मोह रहता है न उतने ही वे बिगड़ते हैं और वीतराग रहें न तो बच्चे भी उतने अच्छे बनते हैं। इसलिए जिन-जिन लोगों ने अपने बच्चों के साथ मोह का प्रयोग बंद करके और ज्ञान से समभाव से निकाल करना है फाइल है ऐसी सब जागृति पूर्वक चालू किया तब से बहुत फर्क पड़ जाता है। बच्चे भी बहुत अच्छे सुधर जाते हैं, क्या? वे भी धर्म की ओर आ जाते हैं और मोह हो तो फिर वहाँ उतना ही मार भी पड़ेगा। द्वेष होगा बहुत माथापच्ची होगी, क्या? यानी पद्धतिसर फरज। अंदर आपको असर नहीं होनी चाहिए, क्या? बच्चे मुसीबत में आ जाएँ तो आपसे उसकी मुसीबत जितनी दूर हो सके उतना करने की फरज। हेल्प करने की फरज लेकिन आप दुःखी हो जाओ भोगवटा में आने का यह यह, मना किया है। ऐसा किसने कहा? आपकी फरज पुरी करने के लिए कहा है कोई भीतर दुःखी होने के लिए किसी ने कहा नहीं है, क्या? और वे लोग भी ऐसा नहीं मानते कि हमारे दुःख से आप भी दुःखी हो जाओ। वह तो उनको जितनी जरूरत है उतना ही उनको चाहिए उससे ज्यादा नहीं चाहिए। उनकी जरूरत पूरी हो जाए तो चलते बनते हैं, क्या? इसलिए आज हम सभी को अपने मोह को देखना है कि अपना मोह कहाँ-कहाँ तक फैला हुआ रहता है, क्या? बच्चों पर सब बच्चों के लिए कितना कुछ कर छूटें फिर भी बच्चे आपकी सुनते नहीं हों आपको आपके विरूद्ध जाते हों। हमें तो यहां तक देखने मिलतां है कि पत्नी नहीं हो बात-बात पर बहु-और बेटा दोनो मिलकर आपको गालियां देते हों चाहे जैसा करते हों ठीक से खाना भी नहीं देते हों फिर भी उसका बेटे पर का मोह नहीं गया होता वह मोह उतना ही रहता है, क्या? इतना ही नही लेकिन उस बेटे के बेटे पर भी उतना ही मोह होता है। मैने तो कई सास को देखा है। बच्चे इतने प्यारे होते हैं इतने प्यारे होते हैं कि बेटा मना करे बहु कहेगी कि आप आना ही मत कहेगी मेरी, मेरे बच्चों को आप मत छूना कहेगी आपके खराब संस्कार पडेंगे फिर भी इसे इतना आवेग आता है इतना आवेग आता है कि रोती है हाय-हाय मुझे, मेरे बेटे के बेटे के साथ खेलने भी नहीं मिलता। अरे! छोड़ो न भई तुन्हारे बेटे के साथ तो खेले अब क्या करना है कितनो को खेलाना है अभी भी ऊबे नही थकान नहीं लगी? लेकिन इस मोह को थकान भी नहीं लगती। ऊबते भी नहीं बहुत मीठा लगता है, क्या? छोड़ो न एक तरफ तुम अपने आत्मा का करो फिर भी यह मोह है न आत्मा का भी नहीं करने देता, क्या? ऐसे जूट जाते हैं ऐसे जूट जाते हैं कि इस पर भी आपको आवरण ला देता है और इसी में हीं रचे-पचे रहते हैं। बहु भी कहती है बेटा भी कहता है कि माँ अब इसमें दखल मत दो हम हमारा कर लेंगे हमारी चिंता मत करो आप माला फेरो मंदिर जाओ तो कहेगी हाँ मुझे तुम्हारी चिंता तो होगी ही न मैं नहीं करूंगी तो और कौन करेगा, लो। यानी इस मोह के स्वरूप से निपट सकें ऐसा नहीं है। यदि मोक्ष में जाना है तो तमाम प्रकार के मोह को देखना पड़ेगा जानना पड़ेगा तो उससे अलग रह सकोगे। विज्ञान से ही ये तमाम प्रकार के मोह जा सकते हैं। मैं शुद्धात्मा हूँ और जो भी मोह है जो भी भरा हुआ माल है वह मेरा नहीं है ऐसा रखोगे और उसे अलग देखोगे तो ही जाए ऐसा है। वनॉ खुद पर का मोह तो बहुत भारी विषम होता है सब जाए लेकिन यह नही जाता। इसलिए सब सावधान सावधान हो जाओ सब कि जब तक ये मोह होगा तब तक हम खाली नहीं होंगे सारे परमाणु खाली नहीं होंगे और आत्मा की जागृति या ज्ञान की जागृति में रहने नहीं देगा। आज्ञा में भी नहीं रहने देगा। यहाँ तक मोह तो होता है कि आज्ञा को भी उड़ा देता है। आप शुद्धात्मा-शुद्धात्मा करते रहो लेकिन फिर आज्ञा-वाज्ञा आए ऐसी मोह की बात आए तो वहाँ आत्मा को भी उड़ा देता है और ज्ञान आज्ञा में भी नहीं रहने देता इसलिए उसके विरूद्ध जबरदस्त मोरचा लगाना है। जबरदस्त जागृति रखनी है कि इसके ताबे में हमें आना ही नहीं है उसका सुनना ही नहीं है। उससे अलग ही रहना है उससे छूटना ही है। हमें तन्मयाकार नहीं होना है हमें सतत जागृति में रहना है। उस मोह का जरा भी, चाहे जितना दादा का सत्संग किया चाहे कितने ज्ञान में आ गए चाहे जितनी सामायिकें की हो लेकिन जब तक आपको खुद आपका मोह दिखेगा नहीं ठेठ सूक्ष्मतम तक का तब तक वह नहीं जाएगा। अभी तो स्थूल ही पार नहीं किया है यानी इन सभी के पार जाना है, क्या? उसे जागृति में रखना है। सामायिक, इसलिए तो खासतौर पर हम कहते हैं बहनों को तो खास कहा है कि हररोज एक मोह पर सामायिक करना। ये मोह इतना ज्यादा थोक में पड़ा हुआ है जब तक देखोगे नहीं तब तक वो खाली नहीं होगा। और जो बहनें जागृत हैं वो तो करती हैं। ठीक से रेग्यूलर करती हैं और कई तो फिर सो जाते हैं, क्या? वे सो गए तो फिर उनका मोक्ष भी सो ही जाएगा न और यों क्या रास्ते में पड़ा है इन सभी को देखना पड़ेगा। एक-एक पुदगल परमाणु को अलग देखोगे जानोगे तब छूट सकोगे मोक्ष में जा सकोगे। जय सच्चिदानंद जय सच्चिदानंद
Senast uppdaterad: 2019-07-06
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