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Dernière mise à jour : 2014-05-30
Fréquence d'utilisation : 1
Qualité :

Portugais

elevou a sua abóbada e, por conseguinte, a ordenou,

Hindi

उसकी ऊँचाई को ख़ूब ऊँचा करके उसे ठीक-ठाक किया;

Dernière mise à jour : 2014-07-03
Fréquence d'utilisation : 1
Qualité :

Portugais

por conseguinte, exterminamo-los. sabei que nisto há um sinal; porém, a maioria deles não crê.

Hindi

अन्ततः उन्होंने उन्हें झुठला दिया जो हमने उनको विनष्ट कर दिया। बेशक इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं

Dernière mise à jour : 2014-07-03
Fréquence d'utilisation : 1
Qualité :

Portugais

"o olho com que vejo deus e o olho com o qual deus me vê é a mesma." na bíblia king james, jesus disse: "a luz do corpo é o olho, se, por conseguinte, os teus olhos forem simples, todo o teu corpo será cheio de luz." o buda disse: "o corpo é um olho."

Hindi

"वह नेत्र जिससे मैं ईश्‍वर को देखता हूं और वह नेत्र जिससे ईश्‍वर मुझे देखता है, एक ही है ।" किंग जेम्‍स बाईबल में यीशु ने कहा है "शरीर का प्रकाश नेत्र है । यदि एक भी नेत्र है तो संपूर्ण शरीर प्रकाश से परिपूर्ण होगा।" बुद्ध ने कहा "शरीर एक नेत्र है ।" समाधि की अवस्‍था में, दृष्टा और देखे जाने वाला दोनों एक हैं । हम स्‍वयं विश्‍वात्‍मा हैं । जब कुंडलिनी सक्रिय होती है, यह छठे चक्र को और शंकुरूप केन्‍द्र को उद्दीप्‍त करती है एवं यह क्षेत्र अपने कुछ विकासात्‍मक कार्यों को पुन: प्राप्‍त करना आरंभ कर देता है । गूढ़ ध्‍यान शंकुरूप ग्रंथि के क्षेत्र में छठे चक्र को सक्रिय करने के लिए हजारों वर्षों से प्रयुक्‍त होता रहा है । इस केन्‍द्र की सक्रियता से व्‍यक्ति को अपने आंतरिक प्रकाश को देखने की दृष्टि मिलती है । भले ही लोकप्रसिद्ध योगी हों या गुफ़ा के एकांत में बसे शमन, या ताओवादी हों या तिब्‍बती मठवासी, सभी परंपराएं उस अवधि को समाविष्‍ट करती हैं जिसमें व्‍यक्ति तम में उतरता है । शंकुरूप ग्रंथि व्‍यक्ति का प्रत्‍यक्ष रूप से सूक्ष्‍म ऊर्जा अनुभव करने का मार्ग है । दार्शनिक नीत्‍शे ने कहा है "यदि आप रसातल पर काफ़ी देर तक नज़रें गढ़ते हैं, तो अंततोगत्‍वा आप पाते हैं कि अगाध गर्त आपको घूर रहा है।" पुराकालिक स्‍मारक या प्राचीन द्वारा वाले कब्र पृथ्‍वी पर शेष प्राचीनतम ढांचे हैं। अधिकांश ईसा पूर्व 3000-4000 की नवप्रस्‍तर अवधि के और पश्चिमी यूरोप में कुछ सात हजार वर्ष पुराने हैं। पुराकालिक स्‍मारक का प्रयोग मानव द्वारा आंतरिक तथा बाहरी संसार के बीच सेतु निर्माण के एक उपाय के रूप में निरंतर ध्‍यान में प्रवेशार्थ उपयोग किया गया था। चूंकि जब कोई निरंतर अंधकार में ध्यान केंद्रित करना जारी रखता है, तो अंततोगत्‍वा आंतरिक ऊर्जा या प्रकाश को तीसरे नेत्र के सक्रिय होने के रूप में देखने लग जाता है। सूर्य तथा चंद्रमा माध्‍यमों से संचालित जीव चक्रीय लय, शरीर के कार्यों को अधिक समय तक नियमित नहीं कर सकती और नया ताल स्‍थापित हो जाता है। हजारों वर्षों से सातवां चक्र 'ओम्' प्रतीक रूप में प्रतिनिधित्‍व करता रहा है। ऐसा प्रतीक जो तत्‍वों को प्रतिनिधित्‍व करने वाले संस्‍कृत चिह्नों से निर्मित हुआ । जब कुंडलिनी छठे चक्र से आगे उठती है तो ऊर्जा तेजोमंडल (हेलो) का सृजन आरंभ होता है । तेजोमंडल संसार के विभिन्‍न भागों में विभिन्‍न परंपराओं की धार्मिक चित्रकलाओं में अनवरत दृष्टिगोचर होती है । जागृत प्राणी के आसपास तेजोमंडल या ऊर्जा का वर्णन विश्‍व के सभी भागों में वास्‍तविक सभी धर्मों में सामान्‍य है । चक्रों को जागृत करने की विकासात्‍मक प्रक्रिया किसी एक समूह या एक धर्म की संपत्ति नहीं है बल्कि ग्रह पर प्रत्‍येक प्राणी मात्र का जन्‍मजात अधिकार है । शीर्ष चक्र दिव्‍यता से संबद्ध है, जो द्वैत से आगे है । नाम और रूप से आगे । अखेनातेन एक फरोआ था जिसकी पत्‍नी नेफरतिति थी । उसका उल्‍लेख सूर्य पुत्र के रूप में किया गया है । उसने एटेन या स्‍वयं में ईश्‍वर के शब्‍द का पुन: अनुसंधान किया, जिससे कुंडलिनी एवं चेतनता को समन्वित किया गया । इजिप्‍ट आईकोनोग्राफी में, एक बार फि‍र जागृत चेतना का ईश्‍वर या जागृत प्राणी के शीर्षों से ऊपर देखी गई सौर चक्रिका द्वारा प्रतिनिधित्‍व किया जाता है । हिन्‍दू तथा यौगिक परंपराओं में, इस तेजोमंडल को 'सहस्रार' - हजार पंखुड़ी वाला कमल कहा गया है । बुद्ध को कमल के प्रतीक से संबद्ध किया गया है । पर्णविन्‍यास वही पद्धति है जिसे खिलते हुए कमल में देखा जा सकता है । यह जीवन पद्धति का पुष्‍प है । जीवन का बीज । यह एक बुनियादी पद्धति है जिसमें सभी रूप अनुकूल हो जाते हैं । यह अंतरिक्ष का ठीक आकार है या आकाश में अंतनिर्हित गुणवत्‍ता है । इतिहास में किसी समय जीवन प्रतीक का पुष्‍प संपूर्ण पृथ्‍वी पर व्याप्त था। चीन के अधिकांश पवित्र स्‍थलों और एशिया के अन्‍य 55 204 00:20:05,567 --> 00:20:12,567 भागों में शेरों को जीवन-पुष्‍प की रक्षा करते हुए देखा जा सकता है । 1 चिंग का 64 हैक्‍साग्राम प्राय: यिनयांग प्रतीक को घेरे रहता है, जो जीवन पुष्प का प्रतिनिधित्‍व करने का एक और तरीका है । जीवन पुष्प के भीतर सभी आध्यात्मिक ठोस पदार्थों के लिए ज्‍यामितिक आधार है; अनिवार्य रूप से ऐसा स्वरूप, जिसका अस्तित्‍व हो सकता है । जीवन का प्राचीन फूल डेविड के सितारे की ज्‍यामिती से आरंभ होता है या त्रिकोणों का सामना करते हुए ऊर्ध्वगामी या अधोगामी होता है या 3डी में ये चतुष्‍फलकीय संरचनाएं हो सकती हैं । यह प्रतीक एक यंत्र है, एक प्रकार का प्रोग्राम, जो ब्रह्माण्‍ड के भीतर अस्त्त्वि में है, वह मशीन जो संसार में हमारे अंश जनित कर रही है । यंत्रों का हजारों वर्षों से चेतना जागृत करने के लिए उपकरणों के रूप में उपयोग किया जा रहा है । यंत्र का दृश्‍य रूप आध्‍यात्मिक अनावरण की आंतरिक प्रक्रिया का बाहरी प्रतिनिधित्‍व है । यह ब्रह्माण्‍ड के छिपे संगीत को प्रत्यक्ष करना है । ज्‍यामितिक रूपों एवं हस्‍तक्षेपीय पद्धतियों से समन्वित । प्रत्‍येक चक्र एक कमल, एक यंत्र, एक मनौवैज्ञानिक केन्‍द्र है, जिसके माध्‍यम से विश्‍व का अनुभव किया जा सकता है। एक पारंपरिक यंत्र, जिसे तिब्‍बती परंपरा में पाया जा सकता है, अर्थ की समृद्ध परतों से परिपूरित, जो कभी कभार पूर्ण ब्रह्माण्‍ड विज्ञान एवं विश्‍व दृष्टि को शामिल करता है । यंत्र सतत विकसित पद्धति है जो पुनरावृति की शक्ति या चक्र की अन्‍योन्‍य क्रिया के माध्‍यम से कार्य करता है । यंत्र की शक्ति सब कुछ है लेकिन वर्तमान संसार में समाप्‍त हो गई है, क्योंकि हम केवल बाहरी रूप में अर्थ ढूँढ़ते हैं और हम अपने अभीष्‍ट के माध्‍यम से अपनी आंतरिक ऊर्जा से इसे संबद्ध नहीं करते। पादरी, मठवासी, योगियों का पारंपरिक रूप से ब्रह्मचारी बने रहने के पीछे भी एक सही कारण रहा है। आज केवल बहुत कम लोग जानते हैं कि वे क्‍यों ब्रह्मचर्य का अभ्‍यास कर रहे हैं, चूंकि सच्‍चा प्रयोजन समाप्‍त हो गया है । सीधी-सी बात है कि जैसी भी स्थिति है, आपकी ऊर्जा अधिक जीवाणु या अंडों का उत्‍पापादन कर रही है । कुंडलिनी के और अधिक उत्कर्ष के लिए उत्तेजना नहीं है, जो उच्‍चतर चक्रों को सक्रिय करता है । कुंडलिनी जीवन ऊर्जा है, जो यौन ऊर्जा भी है । जब जागृति पाश्विक इच्‍छाओं पर कम केन्द्रित होने लगती है और उच्‍च चक्रों के वास्‍तविक प्रतिबिंबन पर आ जाती है, तो वह ऊर्जा मेरुदंड पर उन चक्रों में प्रवाहित होने लगती है । कई तांत्रिक अभ्‍यास करवाते हैं कि इस यौन ऊर्जा पर किस प्रकार नियंत्रण किया जाए, ताकि इसका उपयोग उच्‍चतर आध्‍यात्मिक विकास में किया जा सके । आपकी चेतना की मनोदशा आपकी ऊर्जा के लिए उचित स्थितियों का सृजन करती है ताकि इसका विकास किया जा सके । जैसा कि एक्‍खार्ट टोले ने कहा है "जागृति एवं उपस्थिति सदैव वर्तमान में घटित होती है।" यदि आप कुछ घटित होने का प्रयास कर रहे हैं तो आप यथास्थिति में प्रतिरोध उत्‍पन्‍न कर रहे हैं । यह सभी तरह के प्रतिरोध को दूर करना ही है, जिससे विकासात्‍मक ऊर्जा अनावृत होने लगती है । प्राचीन यौगिक परंपरा में योग क्रियाओं को ध्‍यान के लिए शरीर को तैयार करने के लिए किया जाता है । हठयोग का उद्देश्‍य केवल अभ्‍यास पद्धति नहीं, बल्कि व्‍यक्ति का आंतरिक तथा बाहरी संसार से संपर्क साधना है । संस्‍कृत शब्‍द 'हठ' का अर्थ 'सूर्य' का 'ह' तथा चंद्रमा का 'ठ' है । पतंजलि के मूल योग सूत्र में योग के आठ अवयवों का प्रयोजन बुद्ध की आठ परतों के मार्ग के समान है, जिससे व्‍यक्ति पीड़ाओं से उबर सके । जब द्वैत विश्‍व की ध्रुवताएं संतुलन में हैं, तो तीसरी वस्‍तु, उत्‍पन्‍न होती है । हम रहस्‍यपूर्ण स्‍वर्ण कुंजी पाते हैं जो प्रकृति की विकासात्‍मक शक्तियों को खोलती हैं । सूर्य एवं चंन्‍द्रमा का यह संश्‍लेषण हमारी विकासात्‍मक ऊर्जा है । चूंकि मनुष्‍य अब अनन्‍य रूप से आंतरिक एवं बाहरी संसार तथा अपने विचारों से जाना जाता है अतएव ऐसे विरल व्‍यक्ति हैं जो आंतरिक तथा बाहरी शक्तियों का संतुलन प्राप्‍त करते हैं जिससे कुंडलिनी प्राकृतिक रूप से जागृत हो जाती है । जो केवल संयम में रहते हैं, उनके लिए कुंडलिनी हमेशा रूपक, एक विचार बनी रहती है न कि व्‍यक्ति की ऊर्जा और यह चेतना का प्रत्‍यक्ष अनुभव बन जाती है । �

Dernière mise à jour : 2019-07-06
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